डंके की चोट पर बात गुरुग्राम लोकसभा सीट की

असली राव इंद्रजीत भाजपा में या रामपुरा हाउस में, आइए पता करते हैं..


-भाजपा के चेहरे पर राम का भाव, अंदर गुटबाजी का रावण कर रहा तांडव


-कायदे से अब राव को तय करना है की असली इंद्रजीत भाजपा में रह रहा है या रामपुरा हाउस में। इतना जरूर है की अभी तक अपने मिजाज की राजनीति करता आ रहा यह नेता भाजपा में आने के बाद अपने असल वजूद को ही तलाश रहा है।


रणघोष खास.  प्रदीप हरीश नारायण

देश के 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा मोदी गारंटी के नाम पर अपना सबकुछ दांव पर लगा चुकी है। देश की सबसे बड़ी पार्टी और विश्व के सबसे बड़े इस संगठन में बाहर से तो एकदम शांत नजर आ रहा है लेकिन अंदर- बाहर एक दूसरे के खिलाफ बहुत कुछ चल रहा है। कहने को भाजपा कार्यकर्ताओं  के चेहरे पर राम जैसी भावना,पहनावा, बोलचाल और पार्टी कार्यालयों में नजर आ रही कार्यशैली हिंदुत्व के स्वरूप को प्रदर्शित कर रही है लेकिन उनके शरीर के भीतर अलग अलग वजहों से फैलती  गुटबाजी- धड़ेबाजी का रावण तांडव करता नजर आ रहा है। गुरुग्राम सीट से इसकी शुरूआत करते हैं। भाजपा की टिकट पर राव इंद्रजीत सिंह तीसरी बार और अपने राजनीति जीवन में छठीं बार सांसद बनने के मकसद से मैदान में उतर चुके हैं। उनके पास अपने कार्यकर्ताओं की अलग से फौज है तो भाजपा संगठन के तौर पर सेना भी बराबर खड़ी है। राव इस बार भी अपनी फौज से ज्यादा सेना के सेनापति पीएम नरेंद्र मोदी की गारंटी पर खुद को सुरक्षित मान रहे हैं। मौजूदा हालात में मोदी गारंटी ही उनके लिए राम बाण है। इस सीट पर राव स्थानीय स्तर पर पार्टी के भीतर पूरी तरह से बिखरे हुए हैं। एक बहुत बड़ा विरोधी धड़ा उनके साथ नही है। वह औपचारिकता की रस्म निभाकर खामोशी से वक्त गुजार रहा है। राव भी उनके साथ कभी नही रहे। यहा हिसाब बराबर है। यह सीट भाजपा बेहद सुरक्षित मानकर चल रही है। इसी वजह से मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की ट्रेन में टिकट होते हुए भी उम्मीदवार चेन रोककर उतरकर इधर उधर भाग रहे हैं। राव बेशक यहा से जीत जाए लेकिन यह भी सच है की उनकी निजी राजनीति का दायरा पिछले 10 सालों में सिकुडता चला गया। थोड़ा पीछे जाइए। जब राव कांग्रेस की टिकट से मैदान में उतरते थे जनता उन्हें रामपुरा हाउस के नाम पर वोट देती थी। कांग्रेस नाम तो महज सिंबल के तौर पर चलता था। उन्हें कांग्रेस सरकार में गांधी परिवार या पीएम रहे डॉ.मनमोहन सिंह के नाम पर वोट नहीं मिलते थे।  2013 में भाजपा ज्वाइन करने के बाद से आज तक राव यह हिम्मत नहीं जुटा पाए की जनता उन्हें रामपुरा हाउस के नाम पर ताकत दे। वे मोदी के नाम से ही अपनी नैया पार लगाते आ रहे हैँ। चुनाव में उनके भाषण की शुरूआत मोदी से शुरू होकर मोदी पर खत्म होती है। देखा जाए तो यह राव की भविष्य की राजनीति में अपनी विरासत को बचाए रखने के लिए शुभ संकेत नही है। कायदे से राजनीति विरासत संभालने के हिसाब से उनकी बेटी आरती राव को 2014 में विधायक के तौर पर स्थापित हो जाना चाहिए था। वह टिकट के भरोसे दस साल पीछे चली गई। 2024 में भी कुछ भी स्पष्ट नही है। उसके बाद उम्र तकाजा इस दिग्गज नेता को थका देगा। यह भी हकीकत है। गौर करिए 1952 से 2014 तक 62 साल की लंबी सफल राजनीति पारी रामपुरा हाउस अपने दम पर खेलता आ रहा है। राजनीतिक दल इस हाउस से अनुमति लेकर ही अपनी जमीन तैयार करते थे। पिछले दस सालों में सबकुछ पलट गया। इसी रामपुरा हाउस की हैसियत देश की सत्ता में एक मंत्री बने रहने के अलावा किसी लायक नही रही। जबकि आरती राव की उम्र के भाजपा में ऐसे नेताओं की भरमार है जिसका कद राव से बड़ा है। ऐसे में यह उम्मीद करना की 2024 के लोकसभा एवं हरियाणा विधानसभा चुनाव में रामपुरा हाउस अपने पुराने वजूद में लौट आएगा। बहुत मुश्किल है। यह तो राव को तय करना है की असली इंद्रजीत भाजपा में रह रहा है या रामपुरा हाउस में। इतना जरूर है की अभी तक अपने मिजाज की राजनीति करता आ रहा यह नेता भाजपा में आने के बाद अपने असल वजूद को ही तलाश रहा है।