डंके की चोट पर : सेल पर सरकारी बैंक, हड़ताल पर 10 लाख कर्मचारी, क्या करना चाहती है मोदी सरकार

रणघोष खास.  एसके सिंह की कलम से


देश के सरकारी और ग्रामीण बैंकों में लगातार तीन दिनों तक काम नहीं होगा। यूनाइडेट फोरम ऑफ बैंक यूनियन्स के बैनर तले 9 संगठनों ने 15 मार्च और 16 मार्च को हड़ताल की घोषणा की है। दरअसल  केंद्र सरकार की ओर से देश के कई बैंकों के निजीकरण का प्रस्ताव रखा गया है, जिसके विरोध में बैंक हड़ताल का ऐलान किया गया है।

सरकारी बैंकों में निजी निवेश के लिए उसका एनपीए कम होना जरूरी है और बैड बैंक इसमें मददगार होगा, इसलिए बैंक निजीकरण और बैड बैंक का गठन, दोनों फैसलों को एक-दूसरे से जोड़कर देखा जाना चाहिए।

इन दिनों एक बैंक की बहुत चर्चा है- बैड बैंक। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी 2021 को बजट में इसका जिक्र किया, जिस पर बाद में रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी सहमति जताई। बैंक और उद्योग जगत इस कदम से खुश हैं। बैंक इसलिए कि उनके डूबे कर्ज (एनपीए) कम होंगे। इंडस्ट्री इसलिए क्योंकि एनपीए कम होने के बाद बैंक उन्हें ज्यादा कर्ज दे सकेंगे। बजट में इस साल दो सरकारी बैंकों के निजीकरण की भी घोषणा हुई है। दरअसल, बैंक निजीकरण और बैड बैंक का गठन, दोनों फैसले एक-दूसरे से जुड़े हैं। निजी हाथों में सरकारी बैंकों को सौंपने की अच्छी कीमत मिले, इसके लिए जरूरी है कि उसका एनपीए कम हो। बैड बैंक इसमें मददगार होगा।

बैड बैंक और कुछ नहीं, बल्कि ऐसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी (एआरसी) है। यह सामान्य बैंकों के एनपीए डिस्काउंट पर खरीदता है और बाद में उस एनपीए की रिकवरी की कोशिश करता है। देश में पहले से कई एआरसी हैं। नई एआरसी का स्वरूप राष्ट्रीय होगा। इसका गठन इसलिए किया जा रहा है क्योंकि मौजूदा एआरसी बहुत छोटे हैं। पिछले तीन वर्षों के दौरान इन्होंने बैंकों का सिर्फ छह फीसदी एनपीए खरीदा है।

बैंक निजीकरण और बैड बैंक का गठन, दोनों के लिए काफी तेजी से काम हो रहा है। बैड बैंक के लिए आवेदन मंगाने और नियुक्तियां करने में समय लगेगा, इसलिए कुछ सरकारी बैंकों के वरिष्ठ अधिकारियों को इसमें डेपुटेशन पर भेजा जा सकता है। इसमें सात सरकारी बैंकों, दो निजी बैंकों और दो सरकारी फाइनेंस कंपनियों की बराबर हिस्सेदारी हो सकती है। इंडियन बैंक्स एसोसिएशन ने सभी बैंकों से 500 करोड़ रुपये से ज्यादा के एनपीए की जानकारी मांगी है। इससे पता चलेगा कि बैड बैंक बनाने के लिए कितनी पूंजी चाहिए। शुरुआती आकलन के मुताबिक बैड बैंक 70 बड़े अकाउंट के दो से ढाई लाख करोड़ रुपये के एनपीए ले सकता है। निजीकरण के लिए भी बैंकों के नाम जल्दी ही तय हो सकते हैं। चर्चा है कि बैंक ऑफ महाराष्ट्र, बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में से किन्हीं दो को चुना जा सकता है। निजीकरण से पहले उस बैंक का एनपीए बैड बैंक खरीद सकता है। बैंक को और आकर्षक बनाने के लिए उसके कुछ कर्मचारियों को दूसरे सरकारी बैंकों में ट्रांसफर किया जा सकता है।

निजीकरण के पक्ष में यह दलील दी जाती है कि इससे मैनेजमेंट प्रोफेशनल होगा। लेकिन अतीत में निजी बैंकों में अनेक गड़बड़ियां पाई गई हैं। ऐसे में यह दलील कितनी सही है, इस पर क्रिसिल रेटिंग्स के सीनियर डायरेक्टर कृष्णन सीतारमण कहते हैं, “हमें एक औसत देखना होगा। ऐसा नहीं कि सभी सरकारी बैंकों का प्रदर्शन खराब और निजी बैंकों का अच्छा है। लेकिन एनपीए के मामले में ज्यादातर निजी बैंक, सरकारी बैंकों से बेहतर हैं। पर्याप्त मॉनिटरिंग और सुपरविजन रहे तो निजीकरण में कोई बुराई नहीं है।”

यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस ने निजीकरण के फैसले के खिलाफ 15 और 16 मार्च को हड़ताल बुलाई है। संगठन के संयोजक देवीदास तुलजापुरकर का कहना है कि निजी बैंक ‘एकाउंटिंग प्रॉफिट’ के लिए काम करेंगे, जबकि सरकारी बैंक ‘सोशल प्रॉफिट’ के लिए काम करते हैं। सामाजिक योजनाओं में इन बैंकों का योगदान बहुत कम होता है। तुलजापुरकर के अनुसार जनधन योजना में निजी बैंकों की हिस्सेदारी पांच फीसदी से भी कम है। मुद्रा, स्वधन, स्टैंड अप इंडिया, मेक इन इंडिया योजनाओं का भी यही हाल है।

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