डंके की चोट में पढ़िए कैसे एक एनजीओ शिक्षा विभाग का विकल्प बनता चला गया..

10 साल में 7 से ज्यादा ठिकाने बदले, जहां भी रहे विवाद छोड़कर आ गए


समझ में नहीं आता सरकारी सिस्टम् अंधेरे में हैं या उसने देखना बंद कर दिया..


 रणघोष खास. सुभाष चौधरी


2013-14 में दिल्ली से अच्छे खासे परिवारों से कुछ युवा घूमते फिरते रेवाड़ी पहुंचते हैं। कई माह तक महेंद्रगढ़- रेवाड़ी जिले के स्कूलों में घूमते हैं। खुद को दिल्ली आईआईटी से बताते हैं। इनमें एक नवीन मिश्रा जिनका दावा है कि वे 40 लाख का पैकेज छोड़कर इस क्षेत्र में जरूरतमंद परिवारों के बच्चों के सपने साकार करने आए हैं। हम जैसे पत्रकारों को विश्वास में लेकर धड़ाधड़ खबरें भी छपवाते हैं। मीडिया कवरेज होने से बने माहौल से  कुछ प्राइवेट व सरकारी स्कूलों से बच्चों को पढ़ाने को लेकर सहमति भी बन जाती है। जिला प्रशासन के अधिकारियों से मुलाकात कर उन्हें बिहार पटना से आनंद कुमार के सुपर-30 के विजन को यहां शुरू करने के लिए राजी कर लिया जाता हैं। आईटीएन बताने का अपना प्रभाव भी रहता है। शानदार माहौल बनते ही विकल्प नाम की एक संस्था का जन्म होता है। उसे प्रशासन की तरफ से  रेवाड़ी शहर के बाल भवन में नि:शुल्क पढ़ाने के नाम पर अच्छी खासी जगह मिल जाती है। पढ़ने पढ़ाने का दौर शुरू हो जाता है। शुरूआती चरण में आईआईटी व नीट में बेहतर परिणाम आने का दावा किया जाता हैं लिहाजा भरोसा मजबूत होता चला जाता है। अचानक विकल्प का बाल भवन से मोहभंग होने लगता है। नि:शुल्क पढ़ाने से उसे परहेज होने लगती है। वह शहर के सेक्टर तीन उसके बाद राजीव चौक के आस पास अच्छा खासा भवन किराए पर ले लेती हैं। उसमें उन्हीं बच्चों को रखा जाता है जो तय फीस जमा कराते हैं उधर बाल भवन में नि:शुल्क पढ़ाने के नाम पर औपचारिकता चलती रहती है ताकि इमेज बनी रहे। कुछ समय बाद बाल भवन में कक्षाएं बंद कर दी जाती है।  इसके बाद विकल्प बावल रोड स्थित एक निजी भवन में कक्षाएं लगानी शुरू कर देता है। यहां भी कुछ माह बाद विवाद होने पर वह इसी रोड पर एक प्राइवेट स्कूल का भवन किराए पर ले लेता हैं। यहां से विकल्प पूरी तरह अपनी रंगत में आकर शिक्षा के बाजार में एंट्री कर जाता है। लाखों रुपए के विज्ञापन अखबारों में प्रकाशित होने लग जाते हैं। देखते ही देखते ही विकल्प एक प्राइवेट एजुकेशनल इंस्टीटयूट के तौर पर स्थापित हो जाता है। लाखों रुपए भवन व हॉस्टल का किराया, शिक्षकों व स्टाफ भर्ती पर खर्च होते हैं। अन्य जिलों एवं राज्यों से भी बच्चे यहां आने शुरू हो जाते हैं। बाजार में प्रतिस्पर्धा जबरदस्त होने से विकल्प के शुरूआती चरण  दिखाए सपनों में तेजी से मिलावट नजर आने लगती हैं लिहाजा पढ़ाई एवं फीस को लेकर अभिभावकों से विवाद व मारपीट की घटनाएं भी पुलिस थानों में पहुंचना शुरू हो जाती है। विकल्प प्रबंधन इसे सुनियोजित योजना के तहत साजिश बताता है। मीडिया का अच्छा खासा विज्ञापनदाता होने की वजह से बहुत सी घटनाएं दब जाती है। इसी दौरान चंडीगढ़ से जिला प्रशासन के पास सुपर-100 का प्रपोजल आता है जिसकी कमान विकल्प के हाथों में होती है। इसके तहत सरकारी स्कूल में प्रतिभाशाली बच्चों का चयन कर उन्हें आईआईटी व नीट की नि:शुल्क तैयारी कराई जाएगी। 2018 में  नारनौल रोड स्थित सरकारी डाइट में सुपर-100 की कक्षाएं शुरू हो जाती हैं। विकल्प की टीम एक तरफ डाइट को संभालती है दूसरी तरफ अपना प्राइवेट इंस्टीटयूट चलाती है। जिन बच्चों को सुपर-100 में दाखिला नहीं हो पाता उन्हें प्राइवेट इंस्टीटयूट में एक निर्धारित फीस के आधार पर ले लिया जाता है।

यहां बता दें कि सुपर-100 के तहत प्रदेशभर में सरकारी स्कूलों के उन बच्चों को लिया जाता है जो विकल्प द्वारा ली गई परीक्षा की टॉप सूची में आते हैं। इन बच्चों के रहने व खान पान का पूरा खर्च सरकार वहन करती हे। अधिकारियों की माने तो सरकार एक बच्चे पर करीब दो ढाई लाख रुपए खर्च कर रही थी। निगरानी  तौर पर शिक्षा विभाग के अधिकारियों की जिम्मेदारी लगा दी जाती है जो महज खानापूर्ति के अलावा कुछ नहीं होती। करीब दो साल तक विकल्प डाइट में अपनी सेवाएं देने के बाद शहर के आस पास प्राइवेट भवन की तलाश में जुट जाता है। देवलावास में उसे जगह मिल जाती है। यहां सितंबर 2022 में अभिभावकों के साथ विवाद व हंगामें का विडियो वायरल होने से यह संस्था फिर विवादों में आ जाती हैं। अब तीन दिन पहले सेक्टर चार स्थित पुराना सैनिक स्कूल भवन इस संस्थान को दिए जाने पर बवाल खड़ा हो गया है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि जिला प्रशासन को नहीं पता कि यह भवन विकल्प को कैसे मिल गया। उन्हें बस शिक्षा मंत्री के उदघाटन करने की सूचना प्राप्त हुई थी। खुद भाजपा नेता एवं अनेक सामाजिक संगठनों ने भवन दिए जाने के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि इस पूरे मामले में अभी तक  सरकार को अंधेरे में रखा गया या उसने जानबूझकर देखना ही बंद कर दिया था। इसका सच विकल्प के अभी तक घोषित किए गए नीट एवं आईआईटी के परिणामों व कार्यप्रणाली की निष्पक्ष जांच से ही सामने आ सकता है।

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