नए साल 2022 में दक्षिण हरियाणा के कुछ बड़े नेता राजनीति में करेंगे नया प्रयोग

जिन्हें वे अपना वफादार मानते हैं, असल वे अपने नेता को फ्रेंचाइजी की तरह इस्तेमाल करते हैं


  • वर्तमान में हरियाणा सरकार में भाजपा सहयोगी जेजेपी के अंदर कार्यकर्ता के नाम पर ज्यादा घमासान मचा हुआ है

 रणघोष खास. सुभाष चौधरी


दक्षिण हरियाणा की राजनीति में बड़े नेता कुछ नया करने जा रहे हैं। यह प्रयोग एकदम अनूठा होगा। इसकी शुरूआत केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के दिलों दिमाग से राजनीति को बखूबी समझ चुकी उनकी बेटी आरती राव की सोच से होने जा रही है। आरती राव का मानना है कि उनके पिता के पास समर्थकों की जो फौज है उसमें जिस हिसाब से जो समय एवं ताकत के साथ जो नई भर्ती होनी चाहिए वह अलग अलग कारणों से नहीं हो पा रही है। आरती राव को यह अनुभव उस समय बैचेन करने लगा जब उन्होंने 23 सितंबर को पटौदा में हुई रैली के बाद अपने कार्यकर्ताओं में उत्साह बनाए रखने के लिए अपने आवास पर गोलमेज मीटिंग की। यह रामपुरा हाउस के इतिहास में नया प्रयोग था। आरती राव ने महसूस किया मिलने वालों में अधिकांश वहीं चेहरे थे जो आमतौर पर नजर आते हैं। यही से उन्हें महसूस करना शुरू कर दिया। उन्होंने रूटीन में मिलने वाले कार्यकर्ताओं से आग्रह करना शुरू कर दिया है कि वे अपने साथ नए चेहरे खासतौर से युवा पीढ़ी को लेकर आए। कोई दिक्कत है तो चर्चा करें। इसी दिशा में अब आरती राव खुद मैदान में उतर रही है और पिता- दादा की पुरानी जड़ों को दुबारा से मजबूत करने के लिए महेंद्रगढ़ जिले के अंतिम क्षोर तक बसे गांवों में पहुंचने की योजना पर अमल करना शुरू कर दिया है। जनवरी 2022 में कार्यकर्ता मिलन कार्यक्रमों की शुरूआत महेंद्रगढ़ जिले में हो रही हैं। ओमीक्रान वायरस के बढ़ते प्रभाव को देखकर शैडयूल बदल सकता है। अमूमन यही स्थिति समय समय पर राव इंद्रजीत सिंह के कद को समय समय पर चुनौती देते आ रहे पूर्व मंत्री राव नरबीर सिंह की है। उनकी तरकश में भी वहीं पुराने तीर है जो खुद कमान में आकर चलते हैं। निशाना सही नहीं लगा तो नरबीर सिंह जिम्मेदार होंगे लग गया तो खुद भरपूर फायदा ले जाएंगे। इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुडडा व राज्य सभा सांसद दीपेंद्र हुड्‌डा दक्षिण हरियाणा में अपनी राजनीति जमीन को मजबूत करने में सफल नजर आ रहे हैं। उन्हें पता है कि छोटे से छोटा कार्यकर्ता मान सम्मान का भूखा है इसलिए वे मनोभाव के हिसाब से सीधे उनके बुलावे पर मिलने पहुंच जाते हैं इसके लिए उन्हें बिचौलिए नेता की जरूरत नहीं पड़ती। हुडडा यह भी बखूबी समझते हैं कि किस छोटे बड़े नेता का कब किस समय ओर किस हिसाब से इस्तेमाल करना है। इसलिए वे कार्यकर्ताओं से संबंध बनाते हैं ओर क्षेत्र के नेताओं से बराबर का हिसाब करके चलते हैं उन्हें पता है कि मौका परस्ती की हवा आएगी तो ये नेता गायब हो जाएंगे लेकिन कार्यकर्ता वहीं खड़ा मिलेगा।

जेजेपी में कार्यकर्ता कम अवसरवादी ज्यादा


राज्य सरकार में सहयोगी के तौर पर अपनी राजनीति जमीन को तेजी से मजबूत करती जेजेपी के भीतर भी ऐसे कार्यकर्ताओं की जमात ज्यादा नजर आ रही है जो मौका देखकर एंट्री कर गई है। यहां भी वे अलग अलग पदों पर आसीन होकर सिस्टम में अपने हितों को पूरा करते हुए हर समय नजर आएंगे। उनके हिसाब से सबकुछ ठीक चल रहा है तो वे चुप रहेंगे नहीं तो हल्ला मचाकर हाईकमान को अपने हिसाब मैनेज करने का काम करेंगे। यहां चौधरी देवीलाल, डॉ. अजय चौटाला व नई पीढ़ी के तौर पर डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला एवं दिग्विजय सिंह चौटाला की विचारधारा के प्रति समर्पित कार्यकर्ता कतार में पीछे नजर आते हैं या बड़ी चतुराई से धकेल दिए जाते हैं। इनेलो- जेजेपी में राजनीति बंटवारे के चलते सबसे ज्यादा खामियाजा सबसे पुराने कार्यकर्ताओं को भुगतना पड़ रहा है जो पिछले 15 सालों से अधिक समय से चौटाला परिवार से जुड़े रहने का खामियाजा भुगत रहे हैं। चौटाला परिवार की नई पीढ़ी इन कार्यकर्ताओं तक इसलिए नहीं पहुंच पा रही है क्योंकि रास्ते में उनके नाम की फ्रेंचाइजी चलाने वाले कार्यकर्ता पहले ही उनका रास्ता बदल देते हें। इसलिए आज भी सरकार होते हुए भी  महेंद्रगढ़, रेवाड़ी, गुरुग्राम एवं मेवात में जेजेपी उतनी मजबूत नहीं है जितना उसे सत्ता की चौधर की वजह से हो जाना चाहिए था।

 अपने नेता को फ्रेंचाइजी की तरह इस्तेमाल करते हैं मठाधीश समर्थक


केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह एवं उनकी बेटी आरती राव के दिलों दिमाग में यह बात समझ में आ चुकी है कि उनके नाम को कुछ मठाधीश कार्यकर्ता फ्रेंचाइजी की तरह इस्तेमाल करते हैं। वे कभी गांव में अपना प्रभाव जमाते हैं तो अधिकांश समय सरकारी दफ्तरों में निजी अनाप शनाप कार्य को करवाने के लिए। कोई काम अटक जाता है तो गलत ढंग से रिपोर्ट कर अपने नेता की शक्तियों का प्रयोग करने में भी पीछे नहीं हटते। इन्हीं मठाधीश कार्यकर्ताओं की वजह से जो लोग जुड़ने का इरादा भी बनाते हैं तो वे इनके प्रभाव को देखकर पीछे हटना शुरू कर देते हैं

 पुराने कार्यकर्ताओ को डर नए जुड़ गए तो उनकी चौधर खत्म


इन नेताओं में आधे से ज्यादा पुराने कार्यकर्ताओं को यह डर रहता है कि अगर उन्होंने अपने गांव या आस पास क्षेत्र के नए लोगों को नेताजी से मिलवा दिया तो उनकी चौधर खत्म हो सकती है। इसलिए वे अपने स्वार्थ के चलते नए लोगों को केवल भीड़ के तौर पर एकत्र करते हैं मुलाकात के माध्यम से नहीं..। इसका सबसे बड़ा खामियाजा उन नेताओं को भुगतना पड़ता है जिसका असल वजूद ही जमीनी राजनीति पर टिका हुआ है। वर्तमान में केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती है।

  मीडिया में भी नेता के नाम पर खुद को ज्यादा चमकाते हैं


अपने नेता का अपने हिसाब से इस्तेमाल करने में महारत हासिल कर चुके ये कार्यकर्ता मीडिया में भी आए दिन किसी ना किसी बहाने खुद को अपने नेता का खास दिखाने के लिए उनका नाम आगे रखकर अपनी राजनीति को  चमकाने का प्रयास करते हैं। वे या तो मिले पद का इस्तेमाल करेंगे या किसी ना किसी कार्यक्रम के बहाने उनके यशोगान करने के बहाने। मीडिया में बने रहने के पीछे अधिकांश का छिपा एजेंडा किसी तरह अपने निजी हितों को अपन नेता के प्रभाव से पूरा कराना होता है। आमतौर पर समर्पित एवं अनुशासित कार्यकर्ता मीडिया में  छपास रोग की बीमारियों से खुद को बचाकर चलते है लेकिन सोशल ओर डिजीटल मीडिया के इस दौर में वे अलग थलग पड़ते जा रहे हैं। इन कार्यकर्ताओं का दर्द है कि  नेता जी को वे महज चुनाव के समय ही याद आते हैं। इन्हीं मठाधीश कार्यकर्ताओं के  चलते जमीनी स्तर के नेताओं की फौज में वह ताकत पहले वाली नहीं रही जो एक दौर में हुआ करती। इसलिए अपने वजूद को बचाने के लिए ये नेता मजबूरन हवा के रूख के हिसाब से राजनीति के समुद्र में उस नौका की तलाश में जुट जाते हैं  जो उन्हें सुरक्षित किनारे पर छोड़ दे ओर वे डूबने से बच जाए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *