नेता कब गांधीवादी से गोडसेवादी बन जाए यही खतरनाक राजनीति

रणघोष खास. एक भारतीय की कलम से


हमारे देश में अनेक राजनैतिक दल हैं जो दक्षिणपंथी, वाम पंथी, मध्य मार्गीय अनेक प्रकार की क्षेत्रीय विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। परन्तु प्रायः इन दलों के नेताओं में वैचारिक प्रतिबद्धता अथवा वैचारिक समर्पण नाम की कोई चीज़ बाक़ी नहीं रह गयी है। कौन सागांधीवादीकब गोडसेवादी बन जाये, कौन सा लोहियावादी अथवा समाजवादी कब दक्षिणपंथी बन जाये कुछ कहा नहीं जा सकता। इन नेताओं केवैचारिक पाला बदलके कारण भी बताने के कुछ और हक़ीक़त में कुछ और ही होते हैं। मिसाल के तौर पर इन दिनों कांग्रेस के अनेक नेता दल बदल करते समय यह कहते सुने जा रहे हैं कि आज की कांग्रेस पहले वाली कांग्रेस नहीं रही। कोई कहता है कि कांग्रेस आत्महत्या कर रही है। कोई नेहरूगाँधी परिवार पर पार्टी को मज़बूत कर पाने का आरोप लगा रहा है। परन्तु हक़ीक़त तो यह है कि देश में धार्मिक ध्रुवीकरण की सफल राजनीति करने के बाद सत्ता में आने वाली भारतीय जनता पार्टी के समक्ष उन रीढ़विहीन विचारविहीन नेताओं द्वारा समर्पण किया जा रहा है जो लंबे समय तकसत्ता सुखभोगे बिना नहीं रह सकते। जिन्हें अपने साथसाथ अथवा अपने बाद अपने बच्चों परिजनों के लिए पार्टी प्रत्याशी के रूप में टिकट की गारंटी चाहिए। या जो कांग्रेस में रहते हुए स्वयं को उपेक्षित महसूस कर रहे थे अथवा जो अपना जनाधार समाप्त कर चुके थे। कांग्रेस दरअसल हमेशा ही अपने हीविभीषणोंसे कमज़ोर हुई है। जितनी बार कांग्रेस विभाजित हुई, देश का कोई अन्य दूसरा दल विभाजित नहीं हुआ। परन्तु कांग्रेस में पूर्व में कामराज, ब्रह्मानंद रेड्डी, नारायण दत्त तिवारी, अर्जुन सिंह, जी के मूपनार, जगजीवन राम हेमवती नंदन बहुगुणा आदि नेताओं के समय काल के पार्टी विभाजन काफ़ी हद तक पार्टी की अपनी मूल धर्मनिरपेक्ष विचारधारा को भी साथ लेकर चल रहे थे। तभी इन नेताओं ने या तो गांधीवादी विचारधारा युक्त अपने अलग राजनैतिक संगठन बनाये या फिर आगे चल कर पुनः कांग्रेस में ही विलय कर गये।परन्तु कल तक गाँधी की हत्या का शोक मनाने वाले आज हत्यारे गोडसे का गुणगान करने वालों की पंक्ति में जा खड़े होंगे, यह संभवतः हमारे ही देश की अवसरवादी विचारविहीन राजनीति का दुर्भाग्य है। कल तक देश को गांधीवादी विचारधारा वाला धर्म निरपेक्ष राष्ट्र बनाने का सपना देखने वाले आज हिन्दू राष्ट्र निर्माण के अग्र योद्धा बन जायेंगे, इस बात की उम्मीद किसी भी विचार सिद्धांतवादी राजनीतिज्ञ से तो हरगिज़ नहीं की जा सकती।इस सन्दर्भ से जुड़ी दूसरी सबसे बड़ी सच्चाई यह भी है कि आज जो भी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टियाँ भाजपा को सत्ता से हटाने के लिये गोलबंदी कर रही हैं दरअसल इन्हीं दलों के अनेक नेता ही आज इन परिस्थितियों के ज़िम्मेदार भी हैं। भाजपा अथवा संघ आज सत्ता में इसलिए मजबूत है क्योंकि  तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों उनके नेताओं ने ही सत्ता की मलाई खाने के चलते समय समय पर भाजपा से गठबंधन कर उसे मज़बूती प्रदान करते आये हैं। और आज जब इन्हींविभीषणोंकी बदौलत भाजपा ने पूर्ण बहुमत की सत्ता हासिल कर ली है तो अब यही थाली के बैंगन इनसे वैचारिक सैद्धांतिक लड़ाई लड़ने के बजाये स्वयं हीगिरगिटबनने में अपनाउज्जवल राजनैतिक भविष्यतलाश रहे हैं। गांधीसुभाषआज़ादभगत सिंहराज गुरुसुखदेवअशफ़ाक़ुल्लाह के सपनों के स्वर्णिम भारत की कल्पना कीजिये और आज के अवसरवादी, रीढ़विहीन, सत्तालोभी विचार विहीन नेताओं के चरित्र इनकी महत्वाकांक्षा को देखिये। हम स्वयं इस निष्कर्ष पर पहुंच जायेंगे कि देश किस राजनैतिक वैचारिक खात्में की ओर बढ़ रहा है। यह परिस्थिति पूरे विश्व में भारतीय राजनीति के स्तर को बदनाम करती है। आज नहीं तो कल, अब तो यह देश के विचारवान लोगों, युवाओं, छात्रों किसानों को ही तय करना होगा कि देश की राजनीति में स्वार्थी अवसरवादी दलबदलुओं को क्या स्थान दिया जाए।धर्मजाति की राजनीति पहले ही देश को बहुत नुक़सान पहुंचा चुकी है। इसके लिए महज भाजपा को ही दोषी मानकर अन्य राजनीतिक दलों को क्लीन चिट देना भी एक ओर बड़ी भूल होगी।  अब देश को एकजुट होकर आगे ले जाने की ज़रूरत है। और इसके लिए वैचारिक समर्पण प्रतिबद्धता रखने वाले नेताओं की ज़रुरत है कि थाली के बैगनों की। जो भी नेता अपने राजनैतिक जीवन मेंगांधीगोडसेगांधीकरता फिरे और ख़ुद जनता कोसिद्धांत दर्शनबताता फिरे समझ लीजिये कि ऐसे नेता का संबंध ज़रूर किसीगिरगिटघराने से है और देशहित में इनका इलाज करना देश की जनता की सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *