पटना बैठक से पहले नीतीश की बीमारी को मीडिया ने राजनीतिक बना दिया

रणघोष अपडेट. देशभर से 

विपक्षी एकता के सूत्रधार विपक्षी दलों की पटना बैठक से तीन दिन पहले बीमार पड़ गए। उन्हें तमिलनाडु में मुख्यमंत्री स्टालिन के निमंत्रण पर मंगलवार को जाना था। नीतीश ने अपनी जगह डिप्टी सीएम तेजस्वी को भेज दिया। लेकिन मात्र इतने घटनाक्रम से तमाम राजनीतिक कयासबाजियां शुरू हो गईं। नीतीश के अचानक बीमार होने के अर्थ तलाशे जाने लगे। यह सब तब है, जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, ममता बनर्जी, स्टालिन आदि ने पटना जाने की पुष्टि की है। स्टालिन ने कल मंगलवार के कार्यक्रम में दोहराया है कि वो पटना जरूर जाएंगे। बहरहाल, राजनीति में जितने मुंह उतनी बातों का दौर टीवी चैनल लेकर आए हैं और वहीं पर तमाम कयासबाजियां जन्म लेती हैं, जबकि जमीनी हकीकत कुछ और होती है।  23 जून को पटना में लगभग 20 विपक्षी दलों की बैठक होने वाली है। तमिलनाडु के कलैगनार कार्यक्रम में नीतीश की गैरमौजूदगी मीडिया की बहुत बड़ी खबर हो गई। मीडिया पंडितों ने कहा कि अगर नीतीश वहां जाते तो विपक्षी एकता को बल मिलता। जबकि मेजबान स्टालिन ने बिहार के डिप्टी सीएम का स्वागत करते हुए कहा कि नीतीश जी नहीं आए तो कोई बात नहीं। मैं तो पटना जाऊंगा।पटना बैठक से पहले बिहार कांग्रेस ने राहुल गांधी को “भविष्य के पीएम” के रूप में पेश करना शुरू कर दिया है। नीतीश की बीमारी को इस नाराजगी से जोड़ा जा रहा है कि नीतीश कांग्रेस के इस अभियान से खुश नहीं हैं और उन्होंने अंतिम समय में बैठक से हाथ खींच लिए हैं। जबकि हकीकत ये है कि जमीन पर बड़े स्तर पर तैयारी हो रही है। नीतीश खुद तय कर रहे हैं कि किस विपक्ष के नेता को कौन रिसीव करेगा, कहां ठहराया जाएगा, खाने में पसंद नापसंद का ख्याल तक रखा जा रहा है। लेकिन कयासबाजियों का समापन नहीं हो रहा है। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में तो यहां तक लिखा गया है कि कांग्रेस नीतीश का कद बढ़ने से असहज है। …और बैठक कैंसिल होने की नौबत तक आ सकती है।बिहार कांग्रेस के प्रवक्ता असित नाथ तिवारी ने इसे खारिज करते हुए कहा, “हम निश्चित रूप से राहुल गांधी को भविष्य के पीएम के रूप में देखते हैं, लेकिन हर कोई जानता है कि वह 2024 का चुनाव नहीं लड़ सकते हैं (मानहानि के मामले में उनकी सजा के बाद)। स्वास्थ्य कारणों से नीतीश कुमार तमिलनाडु नहीं गए और लोग राई का पहाड़ बना रहे हैं।”जेडीयू के मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “किसी पार्टी में अपने नेता को भविष्य के पीएम के रूप में देखने में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन यहां (पटना बैठक में) यह कोई मुद्दा नहीं है। हमारा विचार पटना बैठक को भव्य रूप से सफल बनाना है। स्वास्थ्य कारणों से नीतीश कुमार एम के करुणानिधि स्मारक समारोह में शामिल नहीं हुए। उन्होंने यह भी बताया कि पटना में विभिन्न विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने के लिए नीतीश ने कितना प्रयास किया है। बहरहाल, इन्हीं राजनीतिक कयासबाजियों के बाद स्टालिन का पटना बैठक के बारे में बयान आ गया। स्टालिन ने ट्वीट भी किया। स्टालिन ने जोर देकर कहा कि वह पटना बैठक में भाग लेने के लिए उत्सुक हैं। पटना में, सीएम नीतीश कुमार उस जंगल की आग को बुझाने के लिए लोकतंत्र का पहला दीया जलाने जा रहे हैं। मैं भी पटना जा रहा हूं। स्टालिन ने कहा मैं आपको पूरे विश्वास के साथ कह रहा हूं, मैं भी करुणानिधि की विरासत का प्रतिनिधित्व करने के लिए पटना जा रहा हूं। अगर मैं पटना नहीं जाता हूं, तो तमिलनाडु की हजारों साल पुरानी विरासत मिट जाएगी। स्टालिन ने “तमिलनाडु के लोगों और करुणानिधि के प्रशंसकों से जंगल की आग बुझाने में मदद करने” का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि भाजपा शासन की पुनरावृत्ति “तमिलनाडु, इसकी संस्कृति और भारत के भविष्य के लिए हानिकारक” होगी। हमें पूरे भारत में तमिलनाडु में पार्टियों के एक ही सफल, धर्मनिरपेक्ष सामूहिक को दोहराने की जरूरत है। जीत जरूरी है, और उसके लिए एकता सर्वोपरि है। ”  तेजस्वी ने तमिलनाडु में स्टालिन के कार्यक्रम में बिहार और तमिलनाडु के बीच “समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के साझा मूल्यों” की बात की और “सामाजिक न्याय के ताने-बाने को बुनने के लिए सामूहिक प्रयास करने का आह्वान किया ताकि प्रत्येक नागरिक मूल्यवान महसूस करे और कोई भी पीछे न रहे।” उन्होंने कहा, “मुझे खुशी है कि स्टालिन करुणानिधि के सामाजिक न्याय की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।”बहुत साफ है कि स्टालिन ने भी सारी शंकएं मिटा दी हैं और बिहार के प्रतिनिधि के रूप में वहां गए तेजस्वी ने भी सारी धारणाओं को खारिज कर दिया है। कयासबाजियों को यह समझ नहीं आ रहा है कि नीतीश खुद अपनी बीमारी पर कुछ नहीं बोले। अगर कुछ भी ऐसा होता तो वो बयान जरूर देते।

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