पतंजलि विज्ञापन केसः सुप्रीम कोर्ट ने रामदेव, बालकृष्ण को अदालत में तलब किया

रणघोष अपडेट. देशभर से 

बार एंड बेंच कानूनी वेबसाइट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने बाबा रामदेव, आचार्य बालकृष्ण को पतंजलि आयुर्वेद के भ्रामक विज्ञापनों पर उनके खिलाफ अवमानना ​​कार्यवाही में कारण बताओ नोटिस का जवाब दाखिल नहीं करने पर व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होने का निर्देश दिया। 27 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने भ्रामक विज्ञापनों के लिए पतंजलि आयुर्वेद की आलोचना की और कंपनी के उत्पादों को रोग के इलाज के रूप में प्रचारित करने से प्रतिबंधित कर दिया था। अदालत ने पतंजलि आयुर्वेद और उसके प्रबंध निदेशक, आचार्य बालकृष्ण को नोटिस जारी किया।0 अदालत के निर्देशों के उल्लंघन पर सवाल उठाया और संभावित अवमानना ​​कार्यवाही की चेतावनी दी। लेकिन पतंजलि ने इसका जवाब नहीं दिया।जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने पतंजलि आयुर्वेद और उसके अधिकारियों को पिछले वर्ष 21 नवंबर को की गई अपनी प्रतिबद्धता के अनुसार, किसी भी दवा प्रणाली (विशेषतौर पर एलोपैथी) की आलोचना करने वाले किसी भी मीडिया बयान, चाहे वह प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक प्रारूप में हो, जारी करने के खिलाफ चेतावनी दी थी।अदालत ने अपने फैसले में विभिन्न बीमारियों के इलाज में इसकी दवाओं की प्रभावशीलता के बारे में पतंजलि आयुर्वेद के कथित झूठे दावों और विज्ञापनों में गलत बयानी के बारे में सरकार से सवाल करते हुए टिप्पणी की कि पतंजलि देश को गुमराह कर रही है।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार इलाज के संबंध में भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए पतंजलि आयुर्वेद को कड़ी फटकार लग चुकी है। हालांकि कंपनी ने पिछले साल नवंबर में कोर्ट को आश्वासन दिया था कि इस तरह का अब कोई बयान या विज्ञापन नहीं दिया जाएगा। अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह देखते हुए कि कंपनी ने अपने वचन का उल्लंघन किया है।  शीर्ष अदालत ने इस बीच पतंजलि आयुर्वेद को अपने उत्पादों का विज्ञापन या ब्रांडिंग करने से भी रोक दिया, जो ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम 1954 में दी गई बीमारियों से संबंधित हैं। अदालत ने पतंजलि आयुर्वेद को मेडिकल की किसी भी प्रणाली के विरोध में कोई भी बयान देने को लेकर आगाह किया। इस मामले पर दो सप्ताह बाद कार्रवाई की जायेगी। जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही थी। इसमें टीकाकरण अभियान और आधुनिक दवाओं के ख़िलाफ़ अपमानजनक अभियान और नकारात्मक विज्ञापनों को नियंत्रित करने की मांग की गई थी। कोर्ट ने केंद्र सरकार से भी पूछा कि पतंजलि के विज्ञापनों के संबंध में ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम 1954 के तहत उसकी ओर से क्या कार्रवाई की गई है। जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज से कहा, ‘पूरे देश को धोखा दिया गया है! आपने दो साल तक इंतजार किया, जब अधिनियम कहता है कि यह (भ्रामक विज्ञापन) निषिद्ध है।’ केंद्र के विधि अधिकारी ने इस बात पर सहमति व्यक्त करते हुए कि भ्रामक विज्ञापनों को स्वीकार नहीं किया जा सकता है, अधिनियम के तहत कार्रवाई करना संबंधित राज्यों का काम है। केंद्र सरकार से एक हलफनामा दाखिल कर यह बताने को कहा गया है कि उसने क्या क़दम उठाए हैं।