प्रिंट में भी पढ़िए चंदा इज everywhere की कहानी

देश की 20 लाख महिलाओं की जिंदगी से मुलाकात करा रही चंदा


रणघोष खास. सुभाष चौधरी

यह कहानी है भारत की उन 20 लाख महिलाओं की। जिसे हम कूड़े बीनने वाली कहते है। ये हर रोज कचरों के ढेर में परिवार के लिए रोटी तलाशती है। इन्हें नहीं पता बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, महिला सशक्तिकरण, महिला आरक्षण। वे इतना जानती है मां है वो..। रेवाड़ी शहर में रहने वाली 75 साल की चंदा देश के हर कोने में दिखा जाती है। ऐसी कितनी चंदा रोज हमारे पास से होकर गुजर जाती हैं। कभी अहसास हीं नहीं हुआ।  चंदा का जन्म देश की आजादी के समय हिंदू- मुसलमान की लड़ाई के वक्त हुआ था। वह इतना ही जानती है। थोड़ी सी समझदार हुई तो छुटनलाल से शादी हो गईं। तीन बच्चों की मां बनने के बाद वह वह दुनिया से चला गया। भाई के कहने पर  लालाराम से शादी हो गईं। चार बेटियां दो बेटों का परिवार। बेटियां ससुराल चली गईं। पिता की देखा देखी छोटी सी उम्र में बेटों ने चोरी छिपे शराब की दो घूंट क्या पी। सबकुछ उजाड़ता चला गया। लालाराम का शरीर भी जवाब दे चुका है। उसकी दवा का खर्चा चंदा के शरीर की हडि्डयों में बची खुची ताकत को खत्म करता जा रहा था।   सोचा था बहु घर संभाल लेगी। वो भी बच्चो को छोड़ पड़ोसी के के साथ चली गईं। पहले बेटा कभी कभार पीता था, जब से वह गई। रोज सुबह शाम नशे में कभी बाप के साथ तो कभी बच्चों से मारपीट करता। चंदा हर पल मर रही थी लेकिन फिर भी जिंदा है।  मां है वो..। 10 मिनट की इस फिल्म में चंदा की जिंदगी के तमाम पहुलओं को बेहद संजीदगी के साथ पर्दे पर उतारा गया है। फिल्म समाज की उस मानसिकता को बदलने की दिशा में एक कारगर  प्रयास है जिसे हम कूड़े बुनने वाली कहते हैं असल में वो एक ऐसी मां है जो अपने परिवार के लिए कचरों के ढेर में रोटी तलाशती है। लिखने से ज्यादा फिल्म देखकर ही इसे महसूस किया जा सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *