बड़ी खबर: नेशनल हाइवे 11 की जमीन अधिग्रहण पर बड़ा खेल, डीसी की जांच रिपोर्ट से हुआ खुलासा

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रणघोष अपडेट. रेवाड़ी

रेवाड़ी- नारनौल से गुजरता नेशनल हाइवे-11 अपने निर्माण से पहले जमीन अधिग्रहण के समय दी जाने वाले मुआवजा में बंदरबांट को लेकर अभी तक विवादों में घिरा हुआ है। एक बड़ा खुलासा प्रताप सिंह यादव पुत्र छबीलाराम पुत्र हरदेव गांव ढाणी सातो, उपतहसील मनेठी, रेवाड़ी केस में  डीसी कोर्ट की जांच रिपोर्ट में हुआ है जिसमें तत्कालीन डीआरओ ने मुआवजा राशि निर्धारण बिना मौके पर जाकर कागजों में तय कर दी। हालांकि यह जांच 19 दिसंबर 2022 को हुई थी लेकिन  मसला आज भी त्यो का त्यो है।  मसलन जिस जमीन पर पेट्रोप पंप था उसकी जमीन को गैर मुमकिन पेट्रोल पंप दिखाकर उसका मूल्याकंन कृषि भूमि के तौर पर गलत कर दिया। जिला राजस्व अधिकारी रेवाड़ी द्वारा शिकायकर्ता की अराजी का निरीक्षण नहीं किया गया और ना ही फिल्ड स्टाफ से कोई रिपोर्ट प्राप्त की गईं। जिला राजस्व अधिकारी को चाहिए था कि उपरोक्त अवार्ड घोषित करने से पूर्व उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखकर आदेश पारित किया जाता। लेकिन उनके द्वारा ऐसा नहीं करके अवार्ड पारित करने में चूक की गईं। उपरोक्त के दृष्टिगत मौजूदा केस जिला राजस्व अधिकारी एवं सक्षम प्राधिकारी भूमि अर्जन, रेवाड़ी को रिमांड करके निर्देशित किया जाता है कि उपरोक्त अराजी की सीएलयू के दृष्टिगत पुन: नियमानुसार मूल्याकंन करके गुण- दोष सबूत आदि के आधार पर मुआवजा निर्धारित किया जाए।

नेशनल हाइवे-11 जमीन अधिग्रहण पर हुआ करोड़ों का खेल

यह तो तत्कालीन डीसी अशोक कुमार गर्ग की कोर्ट में एक मामले का खुलासा हुआ है। शिकायकर्ता सामाजिक कार्यकर्ता एवं आरटीआई एक्टिविस्ट अरूण राव ने तमाम चुनौतियों से लड़ते हुए अपनी लड़ाई का जारी रखा। उनकी यह लड़ाई अभी जारी है। इस जांच रिपोर्ट से जमीन अधिग्रहण से जुड़े  अधिकारी, मुआवजा तय करने वाली एजेंसियों की विश्वसनीयता पूरी तरह घेरे में आ चुकी है। ऐसे एक नहीं अनेक मामले अभी भी जमीन अधिग्रहण मामलों की कोर्ट में चल रहे हैं जिनके सबूतों से  यह साबित हो रहा है कि जिस जमीन के मालिकों ने मुआवजा तय करने वाली एजेंसी व संबंधित अधिकारियों से सांठगांठ व कमीशनखोरी तय हुईं  उनका मुआवजा अलग अलग तौर तरीकों व चालाकियों ने निर्धारण से दो से तीन गुणा जारी हो गया। जिसने ऐसा नहीं किया उसकी राशि निर्धारण से भी कम जारी कर दी गई ताकि वह परेशान होकर भ्रष्ट्र तंत्र के हिसाब से उनका कमीशन तय कर दे। शिकायतों में नेशनल हाइवे से सटे कुंड बस स्टैँड, कुंड बैरियर, पाली स्टैँड की जमीन का अधिग्रहण करते समय किए गए खेल का खुलासा किया गया है। कुंड बस स्टैँड पर तो 40-50 साल पुराने भवनों को चार पांच साल पुराना दिखाकर अच्छा खासा मुआवजा जारी कर दिया।  साथ ही सबूत मिटाने के लिए अधिकारियों से पहुंचने से पहले ही जेसीबी से भवनों को ध्वस्त कर दिया गया। इसी तरह कुंड बैरियर पर भी कुछ पीड़ित परिवार अभी तक उचित मुआवजा की लड़ाई लड़ रहे हैं। वे दिल्ली स्थित एनएचएआई मुख्यालय से लेकर केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी तक उनके साथ हुए अन्याय की जांच कराने की शिकायत दर्ज करा चुके हैं। उनका मामला भी कोर्ट में विचाराधीन है।

 कमाल: डीसी के खिलाफ एनएचएआई कोर्ट में गईं, पार्टी अरूण राव को बना दिया

इस पूरे मामले का दिलचस्प पहलु देखिए। जिस मुआवजा राशि के सही निर्धारण को लेकर आर्बिट्रेटर कोर्ट बनाई गईं। उसके फैसले के खिलाफ ही एनएचएआई सेशन कोर्ट में चली गई है। कमाल की बात है कि इसमें पार्टी शिकायकर्ता को बनाया गया है जबकि जांच व निर्णय कोर्ट ने सुनाया है। शिकायकर्ता अरूण राव का कहना है कि उनकी जमीन अधिग्रहण करते समय नियमों को ताक पर रखा गया है। सीएलयू जमीन को कृषि दिखाकर बिना मौके पर देखे रिपोर्ट बना दी गईं। अगर वे अधिकारियों से मुआवजा को लेकर कमीशन तय कर लेते तो राशि अच्छी खासी हो जाती और विवाद भी नहीं होता। इन कार्यालयों में दलालों का रैकेट सक्रिय है। वह लेन देन तय करता है। अगर निष्पक्ष जांच होती है तो वे सबूतों के साथ खुलासा करने के लिए तैयार है।

 जानबूझकर रोका जाता है मुआवजा ताकि सेवा पानी हो जाए

हालात यह है कि जमीन अवार्ड होने के बाद जारी मुआवजा को भी किसी ना किसी बहाने से रोका जाता है ताकि नीचे कर्मचारी से लेकर अधिकारियों की सेवा पानी हो जाए। यहां दो तरह से खेल चलता है। पहला कम मुआवजा को सही करने या चालाकी से उसे कई गुणा करने के नाम पर अच्छा खासा कमीशन का खेल चलता है। अगर कमीशन नहीं मिलता है तो उसे कोर्ट कार्रवाई में लंबा उलझा दिया जाता है। दूसरे मामले में  जिस राशि का अवार्ड हो गया। उसे देने के लिए मकान मालिक को अलग अलग कारणों से परेशान किया जाता है ताकि वह हताश होकर घूम रहे दलालों के पास चला जाए। दलालों के हाथों में कमीशन आते ही फाइल में  करंट आ जाता है। इस तरह की शिकायतें सीएम विंडो के माध्यम से सीएम तक पहुंच गई है। जिससे कुछ को मुआवजा मिल गया है अन्य लोग दूर दराज की वजह से लड़ाई नहीं लड़ पाते हैं ओर दलालों के सामने दंडवत हो जाते हैं। अरूण राव ने कार्यालयों में रोज घूमने वाले ऐसे दलालों की आरटीआई लगाई है कि इनकी क्या भूमिका है जो बेधड़क अधिकारियों के सामने  आए दिन नजर आते हैं।

 इस भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ आखिर दम तक लड़ाई जारी रहेगी

जिला उपायुक्त रेवाड़ी कोर्ट से लड़ाई जीत चुके अरूण राव का कहना है कि जमीन अधिग्रहण के नाम पर बहुत बड़ा खेल चलता है। यह लड़ाई छोटी नहीं है। कदम कदम पर कमीशनखोरी का जाल बिछा हुआ है। ऊपर से नीचे तक चलता है। चंद अधिकारियों ने अपना दामन बचाया हुआ है।  जिसके चलते तंत्र के कुछ अवशेष बचे हुए हैं। नेशनल हाइवे-11 में जमीन अधिग्रहण के समय मुआवजा देते समय बहुत बड़ा खेल हुआ है। हम केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी एवं राष्ट्रीय जांच एजेंसियों तक रिपोर्ट पहुंचा रहे हैं। साथ ही न्यायालय के समक्ष भी पेश होकर इस खेल का पूरी तरह पर्दाफाश करके ही रहेंगे।

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