बावल में कहीं धारूहेड़ा वाली कहानी ना बन जाए, हारते आ रहे मीडिया पैकेज वाले दावेदार

रणघोष खास. सुभाष चौधरी

बावल नगर पालिका चुनाव की तस्वीर ठीक एक साल पहले धारूहेड़ा नगर पालिका में हुए चुनाव की शक्ल में बदलती जा रही है। जो उम्मीदवार पार्टी के बैनर तले, साम दंड भेद के साथ जीत का दावा कर रहे हैं जमीनी स्तर पर उन्हें काफी पसीना बहाना पड़ेगा। यहां बता दें कि इस तरह के चुनाव में किसी पार्टी का बैनर, बाहरी छोटे- बड़े नेता का प्रभाव व बाहरी हस्तपेक्ष बहुत कम असर दिखाता है। सबसे बड़ी बात सरकार चला रही भाजपा- जेजेपी कार्यकर्ता यहां एक दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। यही माहौल धारूहेड़ा में बना हुआ था जहां जेजेपी उम्मीदवार मान सिंह के पक्ष में भाजपा कार्यकर्ता दूर तक नजर नहीं आए। यही स्थिति बावल में है जहां भाजपा प्रत्याशी शिव नारायण जाट की जीत- हार भाजपा विशेषतौर से राज्य के कैबिनेट मंत्री डॉ. बनवारीलाल के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन चुकी है। यहां जेजेपी सार्वजनिक तौर पर बजाय गठबंधन का धर्म निभाने के निर्दलीय उम्मीदवार दीनदयाल सैनी को जीताने में लगी है। ऐसे में दोनों पार्टियों का गठबंधन चरित्र भी सामने आ चुका है। इसके अलावा कांग्रेस विचारधारा के तौर पर एडवोकेट बीरेंद्र सिंह कांग्रेसी नेता पूर्व मंत्री डॉ. एमएमल रंगा से मिले समर्थन के साथ लगातार मजबूत दावेदारी में आ चुके हैं। इन सबके बीच आजाद उम्मीदवार के तौर पर पूर्व चेयरमैन चंद्रपाल चौकन इस चुनाव में हर किसी को चौंका देंगे तो बड़ी बात नहीं होगी। इसकी प्रमुख वजह चौकन की सादगी, साफ छवि, साधारण चेहरा एवं मिलनसार व्यवहार उसकी असल ताकत बना हुआ है। आप से सहीराम, निर्दलीय चेहरा किसान नेता रामकिशन महलावत भी समीकरण बिगाड़ने में लगे हुए हैं। भाजपा को अच्छी खासी परेशानी में डालने वाला पंजाबी समाज से नया चेहरा किरण मेहंदीरत्ता भी समीकरण को बदलने की पोजीशन में आ चुकी है। मजबूत दावेदारों में जीत का अंतर बेहद कम रहेगा इसलिए चुनाव में तनाव की स्थिति को देखते हुए प्रशासन पहले से ही बहुत अलर्ट हो चुका है। चुनाव में हार जीत का मापदंड जातिगत समीकरण से ही तय होगा यह भी स्पष्ट नजर आ रहा है। बावल में आप प्रत्याशी के समर्थन में प्रचार करने के लिए हरियाणा प्रभारी डॉ. सुशील गुप्ता आ चुके  हैं भाजपा से अभी स्थानीय नेता ही प्रचार में लगे हुए हैं। तीन दिन बचे हुए हैं केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह की तरफ से भी ऐसी कोई हलचल सामने नहीं आई है जो भाजपा उम्मीदवार की ताकत को बढ़ा सके। नगर पालिका धारूहेड़ा चुनाव में तो खुद सीएम मनोहरलाल ने जनसभा को संबोधित किया था।

भाजपा को अगर पंजाबी, ब्राह्मण और वैश्य मतदाताओं साथ मिलता है तो तस्वीर बदल सकती है लेकिन जिस तरह ऐन वक्त पर लंबे समय तक कांग्रेस में रहे शिवनारायण जाट को भाजपा की टिकट मिली है उससे भाजपा के अंदर ही एक बड़ा धड़ा अंदरखाने खिलाफत में चल रहा है। इसलिए जिला स्तर के भाजपा नेता चुनाव प्रचार में  आने से कतरा रहे हैं। कुल मिलाकर कोई यह दावा करें कि धन- बल व मीडिया पैकेज से चुनाव जीता जा सकता है तो यह सबसे बड़ी भूल होगी। धारूहेड़ा नगर पालिका चुनाव में जीते कंवर सिंह इसके सबसे बड़े प्रमाण है। ज्यादा दूर जाने की जरूरत नही है।

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