मणिपुर में हुआ था बवाल, 3700 KM दूर केरल में क्यों उबाल; BJP का क्या हाल

केरल का त्रिशूर और मणिपुर की राजधानी में दूरी 3700 किमी से ज्यादा की है, लेकिन यहां बीते साल हुई हिंसा का मुद्दा उतना ही गर्म नजर आ रहा है। एक ओर जहां भारतीय जनता पार्टी को दक्षिण भारत के इस राज्य में लोकसभा सीट का खाता खुलने की उम्मीद है। वहीं, कांग्रेस 35 फीसदी ईसाई मतदाताओं वाले इस इलाके में मणिपुर के मुद्दे को जमकर उठा रही है। संभावनाएं जताई जा रही हैं कि इस सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है।

केरल में क्यों है मणिपुर का मुद्दा
कांग्रेस ने त्रिशूर से राज्य के चार बार मुख्यमंत्री रहे दिवंगत के करुणाकरण के बेटे के मुरलीधरन को मौका दिया है। ईसाई बहुल इलाके में वह कहते हैं, ‘इस चुनाव की जितनी चर्चा देश में है, उतनी ही बाहर भी है। इसकी वजह बीते 10 सालों में हुई अहम घटनाओं ही हैं, जिसमें मणिपुर भी शामिल है। बीते एक साल से मणिपुर जल रहा है और समुदाय से जुड़े कई लोग मारे गए हैं।’ उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार भी मणिपुर नहीं गए, ‘लेकिन इस साल तीन बार त्रिशूर आए हैं।’ भाषण के बाद वह यही संदेश लेकर पुथुक्कड़ का रुख करते हैं कि उन्हें 35 फीसदी ईसाई मतदाताओं का साथ मिलेगा।

अब कई लोगों का कहना है कि त्रिशूर के ईसाई समुदाय में भाजपा की पैठ नहीं होने की वजह उसका कथित तौर पर मणिपुर में दंगों से गलत तरीके से निपटना है। 2023 में हुए दंगों में 200 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी और कई चर्च समेत धार्मिक स्थल नष्ट कर दिए गए थे। इसके बाद केरल के कई चर्च की तरफ से पीएम मोदी और भाजपा पर सवाल उठाए थे। 29 जून 2023 को साइरो-मालाबाह कैथोलिक चर्च ने मणिपुर में हुई हिंसा को नरसंहार करार दिया था। आर्चबिशप जोसफ पम्पलानी ने कहा था, ‘हिंसा को शांत करने में केंद्र और राज्य सरकारें असफल हुई हैं। मणिपुर में हुआ तनाव नरसंहार में बदल गया, जो देश के इतिहास में अनुसाना था। इससे गुजरात में हुए दंगों का एक और वर्जन तैयार हो गया था।’ नवंबर 2023 में चर्च के त्रिशूर आर्चडायोसीस के मुखपत्र कैथोलिक सभा में लिखा था, ‘चुनाव आ रहे हैं और केरल में मणिपुर दंगों को छुपाने का बड़ा प्रयास किया जा रहा है। पार्टी इसमें विशेष दिलचस्पी लेकर केंद्र में सत्ता में वापस लौटना चाहती है। इसका उदाहरण पार्टी के एक नेता का सिनेमा के डायलॉग जैसा बयान है, जो त्रिशूर जीतना चाहता है।’ इसमें कहा गया था कि लोकतंत्र में भरोसा करने वाले इसे नहीं भूलेंगे।

भाजपा की तैयारी
यहां भाजपा ने नेशनल अवॉर्ड विजेता कलाकार सुरेश गोपी को टिकट दिया है। खास बात है कि 2019 में इस सीट पर भाजपा का वोट शेयर करीब 17 फीसदी बढ़ गया था। अब जब मणिपुर के मुद्दे पर गोपी से हिंदुस्तान टाइम्स ने बातचीत का प्रयास किया, तो ईसाई समुदाय तक पहुंच के भाजपा के प्रयास के बारे में बात करने से बचते नजर आए। उन्होंने जवाब दिया, ‘कृपया मुझसे ऐसे सवाल न करें। मैं मतदाताओं को त्रिशूर और देश की जनता की तरह ही देखता हूं।’ उन्होंने कहा, ‘बीते 10 साल में केंद्र में किया काम हमारी रीढ़ की हड्डी है। यह बहुत मजबूत है। लोग शासन की उदारता का अनुभव कर रहे हैं और यह हमारा समर्थन है। हमें मौका दीजिए और हम साबित करेंगे। त्रिशूर के लोग बदलाव के लिए मतदान करेंगे।’

मणिपुर का मुद्दा कितना बड़ा
कांग्रेस ब्लॉक कमेटी के उपाध्यक्ष विपिन चाको कहते हैं कि अगर मणिपुर का मुद्दा भाजपा ठीक से संभालती, तो उन्हें अच्छी संख्या में ईसाई वोट मिल सकते थे। दीपिका अखबार के त्रिशूर ब्यूरो चीफ पॉल मैथ्यू के कैथोलिक चर्च से संबंध अच्छे हैं। वह बताते हैं कि गोपी का प्रचार अभियान तेजी के साथ शुरू हुआ, लेकिन अंतिम चरण में कमजोर होता नजर आ रहा है। वह कहते हैं, ‘चर्च के त्रिशूर आर्चडायोसिस ने मणिपुर हिंसा का मुद्दा मजबूती के साथ उठाया है और यहां भाजपा के खिलाफ नाराजगी दिखाई दे रही है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘सेंट थॉमस कॉलेज में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में चर्च नेतृत्व ने अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा पर निशाना साधा था। ऐसे में जब तक यहां ईसाई समुदाय का बड़ा हिस्सा पार्टी के लिए मतदान नहीं करता है, तब तक यहां जीत की संभावनाएं ज्यादा नहीं हैं।’ उन्होंने कहा, ‘असली लड़ाई मुरलीधरन और सुनील कुमार (सीपीआई उम्मीदवार) के बीच है। दोनों अच्छे और लोकप्रिय उम्मीदवार हैं, जो क्षेत्र को जानते हैं।’ हालांकि, इस क्षेत्र में गोपी की लोकप्रियता और उनके कामों से भी इनकार नहीं किया जा सकता।  मन्नूती में कार्गो ड्राइवर सोजन भी उनकी तारीफ करते नजर आ रहे हैं। वह बताते हैं, ‘मुझे भाजपा पसंद नहीं है, क्योंकि वह सांप्रदायिक हैं, लेकिन मुझे गोपी पसंद है क्योंकि वह अच्छे आदमी हैं। हम हमारी परेशानियों को लेकर आसानी से उनके पास जा सकते हैं। हमें यहां बदलाव चाहिए और मुझे लगता है कि वह कुछ यहां प्रगति कर सकते हैं।’