मुझे कुछ कहना है……हे भोलेनाथ 24 मार्च के बाद मेरा क्या होगा.. मत जाओ

-कितना अच्छा होता कथा में आप वचन करा लेते बहू अपनी सास की और सास अपनी बहू की कभी बुराई नहीं करेगी। चलो अच्छा हुआ नहीं कराया। ऐसा कर देते तो कथा सुनने कौन आता..।


रणघोष खास. प्रदीप हरीश नारायण

हे भोलेनाथ आप महाशिव पुराण कथा के बहाने कब मेरे जीवन में उतर गए पता ही नहीं चला। 18 मार्च को आपने हरियाणा में रेवाड़ी की वीर भूमि पर पंडित प्रदीप मिश्रा के मुख से बही रसधारा में  ऐसा डुबाया की मेरे शरीर के रोम रोम में समाया पाप धुलता चला गया । 23 मार्च तक मेरा शरीर गंगाजल की तरह पवित्र रहेगा। 24 मार्च के बाद क्या होगा। मुझे छोड़कर मत जाओ। तुम जहां भी जा रहे हो मुझे साथ ले चलो।

जब से आप रेवाड़ी में कथा के बहाने पधारे हैं। मै और मेरे परिवार को मानो मोक्ष मिल गया हो। आपकी कथा सुनकर मेरे शरीर की बीमारियां स्वत: खत्म होती चली गईं। भीड़ में किसी बहन ने मेरे गले की चेन छिन ली तो मैने बुरा नहीं माना। जरूर इसमें कोई ना कोई भलाई थी। चमत्कार उस समय हो गया जब आपकी दिव्य दृष्टि से पुलिस ने चोर को पकड़ लिया। भला इतनी जल्दी पुलिस कभी किसी चोर को आज तक पकड़ पाई है। सुबह कथा स्थल पर पहुंची और शाम को लौटी तो बहू ने घर संभाल रखा था। यह सब आपकी लीला है। अब वह मेरी बुराई भी नहीं करती। मुझे चिंता भी है की कथा समाप्त होते ही वह पहले जैसी ना हो जाए। उसने मुझे कह भी दिया मां जितना सत्संग में रहोगी घर में आपकी जगह शांति बनी रहेगी। कितना अच्छा होता कथा में आप वचन करा लेते बहू अपनी सास की और सास अपनी बहू की कभी बुराई नहीं करेगी। चलो अच्छा हुआ नहीं कराया। ऐसा कर देते तो कथा सुनने कौन आता..। हे प्रभु जिस कथा स्थल पर आने के लिए पहले ऑटो वाले 20 रुपए लेते थे। आपके यहां आने से सीधे 50 रुपए ले रहे हैं। आपकी वजह से  उनका जीवन कितना बदल जाएगा यह सब आपकी कृपया है। कथा स्थल पर पानी की बोतल 15 की जगह 50 में गंगाजल की तरह बिकी। किसी को बुरा नहीं लगा आप जो साक्षात  नजर आ रहे थे। आपके करीब पहुंचने के लिए भीड़ में जमकर धक्का मुक्की हुई। ऐसा लगा आप स्वयं आकर मेरे शरीर में समा रहे हो। खड़े बाउंसर ने काफी कुछ कहा। मुझे लगा वे भोलेनाथ के दूत बनकर मेरी चिंता कर रहे है।  मै कितनी भाग्यशाली हूं मुझे कथा के प्रांरभ में प्रसाद के रूप में पास मिल गया। मैने उसे घर के मंदिर में रखा और कोटि कोटि प्रणाम किया। यह पास नहीं था आपसे सीधी मुलाकात का रास्ता था जो मेरे अच्छे कर्मों की वजह से मुझे यह प्राप्त हुआ। कब कथा के पांच दिन गुजर गए पता ही नहीं चला। बहु की मां बीमार चल रही थी। उसे जाना था। मेरी कथा सुनने की इच्छा को वह मुझे  मना नहीं कर पाईं और नहीं गईं। कितनी बदल गई। यह सब आपका प्रताप है। पति दिन में तीन समय दवाई मेरे हाथ से ही लेते हैं। उन्होंने भी मुझे कथा में आने से नहीं रोका। यह सब आपकी लीला है। आपसे इतनी ही अरदास है दुबारा जल्दी आना। आपके कदम पड़ते ही हमारा जीवन आनंद से संपूर्ण हो जाता है। कथा समापन से एक दिन पहले मेरी समधन (बहू की मां) दुनिया में नहीं रही। भला होनी को कौन टाल सकता है। कथा पूरी होने के बाद वह मिलने चली जाएगी। कितनी भाग्यशाली है मेरी समधन मोबाइल पर मुझसे रोज महाशिवपुराण कथा में सुनाए दृष्टांत को सुनती थी..। उसे इतनी जल्दी अपने पास बुला लोगे यह महाकाल का चमत्कार नहीं तो क्या है..।