रणघोष अपडेट. देशभर से
यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) यानी समान नागरिक संहिता बिल आज शनिवार को राज्यसभा में पेश किया गया। लेकिन इसे प्राइवेट बिल के तौर पर बीजेपी सांसद ने पेश किया है। सरकार ने इस बिल को पेश नहीं किया है लेकिन बीजेपी का पूरा समर्थन इस बिल को है। आखिर ऐसा क्यों है कि इस बिल को सरकार अपनी ओर से पेश न करके किसी सांसद से इसे प्राइवेट बिल के रूप में पेश करवा रही है। ऐसी सरकार जिसने कश्मीर से धारा 370 हटवा दिया, कश्मीर को तीन हिस्सों में बांट दिया, ऐसी सरकार जिसने अयोध्या में राम मंदिर का वादा पूरा किया वो यूसीसी पर ऐसा रवैया क्यों अपना रही है। लोकसभा में उसके पास प्रचंड बहुमत है। राज्यसभा में उसने किसान विरोधी कानून जो वापस लिया जा चुका है, पास करा लिया था। कई और कानून पास कराए हैं, उसके लिए यूसीसी को पास कराना आसान है लेकिन वो ऐसा क्यों नहीं कर रही है। उत्तराखंड में यूसीसी पर कानून बन गया है। गुजरात में बीजेपी का यह चुनावी वादा था। यूपी और मध्य प्रदेश में इस पर काम हो रहा है। सोशल मीडिया पर आज शनिवार को यह टॉप ट्रेंड में शामिल है। इसके कुछ वाजिब कारण हैं, जिन पर बीजेपी और केंद्र की मोदी सरकार बहुत सधे हुए कदमों से आगे बढ़ रही है। सबसे बड़ा कारण है 2024 का लोकसभा चुनाव। वो इस मुद्दे पर चुनाव लड़ने का इरादा रखती है। इसीलिए पहले राज्यों में इस पर कानून बनवाए जा रहे हैं और चर्चा कराई जा रही है। बीजेपी का मकसद है कि 2024 के चुनाव तक इस मुद्दे को जिन्दा रखा जाए और फिर या तो इस कानून को सरकार अपना बिल लाकर पास करा लेगी या फिर देश की जनता से इस पर वोट मांगेगी। क्योंकि राम मंदिर, धारा 370, तीन तलाक पर अब वो वोट मांग नहीं सकती है। हर आम चुनाव में यूसीसी बीजेपी के घोषणा पत्र में शामिल रहता है। आरएसएस का भी यूसीसी एक सपना है। मोदी के नेतृत्व में इसे पास कराना इस समय ज्यादा आसान है, कोई नहीं जानता की 2024 में बीजेपी की क्या स्थिति बनेगी। लेकिन मोदी सरकार की रणनीति अलग है। उसने धारा 370, तीन तलाक और राम मंदिर पर चर्चा कराकर, आंदोलन चलाकर मनचाहा फल प्राप्त किया है, इसलिए इस मुद्दे पर वो देश में व्यापक चर्चा करवाकर भावनात्मक रुझान चाहती है।हिमाचल से क्या मिला संकेतः केंद्र सरकार के इस पर सीधे न आने की एक और भी खास वजह है। हिमाचल विधानसभा चुनाव में बीजेपी के संकल्प पत्र में यह मुद्दा शामिल था। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने अपनी रैलियों में बार-बार जिक्र किया था कि इस बार सरकार बनते ही सबसे पहले समान नागरिक संहिता कानून को लागू किया जाएगा। यहां तक की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने हिमाचल की अपनी रैलियों में इसका जिक्र किया। लेकिन हिमाचल की जनता ने इसे भावनात्मक ढंग से न लेते हुए इस मुद्दे को रिजेक्ट कर दिया। उनके सामने अपने स्थानीय मुद्दे इतने थे कि यूसीसी उस हवा में उड़ गया। गुजरात में भी यही वादा किया गया था। वहां बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिला, लेकिन यह मुद्दा वहां भी भावनात्मक रूप से गायब था। गुजरात का मतदाता खुलकर कह रहा था कि प्रधानमंत्री मोदी हमारी शान हैं। गुजरात ने मोदी को वोट दिया। बीजेपी को वोट नहीं दिया। इसी तरह यूपी में मैनपुरी लोकसभा और खतौली विधानसभा उपचुनाव बीजेपी हार गई। अगर यह मुद्दा भावनात्मक बन गया होता तो मैनपुरी और खतौली में भी बीजेपी जीत जाती। रामपुर उसने जीता जरूर है लेकिन 31 फीसदी मतदान में जीतना कोई कमाल नहीं है, जब वहां पर पुलिस और प्रशासन मतदान को लेकर गंभीर आरोपों में घिरा हुआ हो।
मुसलमानों की चुप्पी परेशान करने वाली
समान नागरिक संहिता पर मुसलमानों और मुस्लिम संगठनों की चुप्पी भी बीजेपी को परेशान कर रही है। बीजेपी को उम्मीद थी कि जिस तरह तमाम बीजेपी शासित राज्य यूसीसी पर घोषणाएं कर रहे हैं, उसका मुसलमान खुलकर विरोध करेंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। मौलाना महमूद मदनी ने जरूर देवबंद सम्मेलन में इसके खिलाफ बोला लेकिन मुस्लिम उलेमाओं ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। कई मुस्लिम उलेमा और संगठनों ने खुलकर कहा कि सरकार फौरन इस कानून को लाए। ताकि उसकी नीयत पता चले। समान नागरिक संहिता में ध्रुवीकरण की असीम संभावनाएं हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी विरोध किया लेकिन इसे बहुत तूल नहीं देने की सलाह मुसलमानों को दी। शिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने बयान में कुछ ज्यादा ही होशियारी दिखाई। उसने कहा कि सरकार पहले यूसीसी का डॉफ्ट सार्वजनिक करे कि वो क्या बदलाव करेगी तब उस पर चर्चा हो और सभी का रुख सामने आए। लेकिन मीडिया ने ऐसे बयानों को महत्व नहीं दिया और वो बयान सोशल मीडिया का हिस्सा बनकर रह गए। हालांकि कुछ चैनलों पर टीवी वाले मौलाना इसका विरोध करते नजर आए लेकिन टीवी चैनल और वो मौलाना मिलकर कोई लहर पैदा नहीं कर पाए जिस पर बीजेपी को खेलने का मौका मिलता।