रणघोष खास में जरूर पढ़िए: : आईएएस बनी दिव्या की कहानी कुछ कहती है.. जरूर पढ़े

बेटी को बोझ पराया धन कहना बंद करे समाज, दिव्या आ चुकी है..


रणघोष खास. सुभाष चौधरी

देश की सबसे महत्वपूर्ण परीक्षा यूपीएससी में सफलता को बेहद शांत ओर चुपचाप के रास्ते अपने घर लेकर पहुंची दिव्या की कहानी सभी को रामनवमी जैसे पर्व के माहौल में बार बार पढ़नी चाहिए ओर एक दूसरे को सुनानी चाहिए।

दिव्या अब आईएएस बनने जा रही है। यह देश में युवाओं का सबसे बड़ा सपना होता है। दिव्या ने यह सफलता कड़ी मेहनत और लगन से हासिल की। यह बड़ी बात नहीं है। ऐसा सभी करते है। लेकिन दिव्या आईएएस बनने के अलावा भी अलग से एक ऐसी दिव्या है जो उन परिवारों के लिए आदर्श है जिसने बेटियों को ही अपने जीवन में सबकुछ मान लिया। दिव्या का परिवार पिछले चार सालों से रेवाड़ी शहर के गढी बोलनी रोड पर स्थित अमनगनी सोसायटी में रह रहा है।

 दिव्या भारतीय नेवी से रिटायर होकर गुरुग्राम में एसएचओ के पद पर कार्यरत अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी बलराज यादव एवं सुशीला यादव की तीन बेटियों में सबसे बड़ी है। बलराज यादव रेवाड़ी जिले के गांव पुरखोतमपुर निवासी किसान स्व. भूप सिंह एवं रेवती देवी के बेटे है। बलराज यादव ने 2010 के एशियन गेम्स के नौकायन में सिल्वर मैडल लेकर अपने क्षेत्र ओर राज्य का नाम रोशन किया था। उन्होंने जिंदगी में आगे बढ़ने का जज्बा अपने पिता के संघर्ष को देखकर हासिल किया था। उसी संघर्ष में उन्होंने अपनी बड़ी बेटी दिव्या को भी सांझीदार बना लिया। जिसके चलते दिव्या हर कदम पर सफलता हासिल करती हुई आएएस के मुकाम तक पहुंच गईं।

 माता पिता हर कदम पर हौसला बनते रहे

दिव्या पांच साल तक की उम्र में गांव में रही। पिता बलराज यादव नेवी मुम्बई में कार्यरत थे। उन्होंने अपने बच्चो को बेहतर शिक्षा दिलाने के उददेश्य से परिवार को मुंबई बुला लिया। यहा से उसने नेवी स्कूल में 9 वीं तक पढ़ाई पूरी की। उसके बाद करनाल के दयाल स्कूल से 12 वीं करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी के सबसे टॉप श्रीराम कॉलेज आफॅ कामर्स में दाखिला मिल गया। एक बार इरादा सीए बनने का था लेकिन रास्ता बदलकर दिल्ली कॉलेज ऑफ इकोनमिक्स में एमकॉम में एडमिशन लेकर आगे की पढ़ाई जारी रखी। दिव्या बताती है की इसी दरम्यान गुरुग्राम में कॉरपोरेट ट्रेनिंग के दौरान उसने महसूस किया की वह जीवन में कुछ ओर ही करना चाहती है। उसका बचपन नेवी के परिवेश में बीता और गांव के पारिवारिक और सामाजिक माहौल को उसने अपने माता पिता की आंखों से बखूबी समझा है। उसका मन बार बार समाज के लिए कुछ करने के लिए आतुर होता रहा। हर कदम पर माता पिता का सहयोग मिला। उसने आईएएस बनने का इरादा बनाया। पहली लिखित परीक्षा बिना तैयारी के दी। वहा से जन्में  आत्मविश्वास उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। चौथे  प्रयास में दिव्या ने सफलता का यह मुकाम हासिल कर लिया।

 बेटियों को पराया धन और बोझ कहना बंद करे समाज

 दिव्या के बाद दो छोटी बहन दृष्टि ने 12 वीं की पढ़ाई कर ली है ओर दिव्यता अभी छोटी है। तीन बेटियों के संसार में बलराज यादव एवं सुशीला यादव बेहद खुश थे लेकिन समाज का ताना बाना बेटा नहीं होने का अहसास जरूर कराता रहा जिसका जवाब दिव्या ने अपनी दिव्यता से दे दिया। दिव्या आध्यात्मिक शक्ति और ज्ञान को जीवन की चुनौतियों से लडने का सबसे कारगर उपाय मानती है इसलिए सुबह शाम परमात्मा की प्रार्थना को जरूर देती है। उसके बेहद शांत ओर सादगी भरे व्यक्तित्व होने का प्रमाण है। वह अपनी सफलता का संपूर्ण श्रेय अपने माता पिता को देती है ओर उसके माता पिता यह श्रेय अपने माता पिता को देते हैं। यही सोच और संस्कार दिव्या और उसके परिवार को आईएएस बनने से ज्यादा बेहतर इंसान बनने का अहसास कर रहा है।

कोई छोटा बड़ा नहीं, हर कोई स्वयं में महत्वपूर्ण

 दिव्या का दृष्टिकोण है कि समाज में हर व्यक्ति अपने आप में महत्वूपर्ण है। किसी को छोटा बडा समझना ही मानसिक अपराध है। सफलता हासिल करने के लिए सबसे पहले अपने उद्देश्य को स्पष्ट करें। सुनकर हरगिज ना करें। अपना मूल्याकंन कर खुद से संकल्प ले।  अपनी क्षमता को पहचाने। साथ ही अपने सीनियर्स से लगातार सीखने की भावना रखे। ऐसा करने से लक्ष्य बेहद करीब आ जाता है।

 अमनगनी ने सकारात्मक ऊर्जा का संचार किया है

दिव्या यह बताना भी नहीं भूलती की वह जिस सोसायटी में रहती है उसकी बनावट और वातावरण सकारात्मक ऊर्जा से सराबोर रहता है। इसका असर हमारे व्यक्तित्व पर पड़ता है। उधर इस शानदार उपलब्धि पर इस सोसायटी के एमडी त्रिलोक शर्मा ने बधाई देते हुए कहा की दिव्या की यह उपलब्धि सोसायटी की अभिलाषा है। हम सोसायटी के परिवेश को लगातार सकारात्मक सोच में संपूर्ण करने के लिए प्रतिबद्ध है।