रणघोष खास. एसके सिंह
दिल्ली हाई कोर्ट ने पिछले दिनों एक रोचक टिप्पणी की। उसने कहा, “अगर चुनाव वास्तविक मुद्दों पर लड़े और जीते जाते, तो आज शहर की स्थिति कुछ और होती, लेकिन चुनाव इस बात पर लड़े जा रहे हैं कि सरकारें क्या मुफ्त दे रही हैं।” वैसे तो न्यायाधीश विपिन सांघी और जसमीत सिंह की खंडपीठ ने यह टिप्पणी दिल्ली में डेंगू के बढ़ते मामलों पर सुनवाई के दौरान की, लेकिन यह बात प्रदूषण जैसे मामलों में भी सटीक बैठती है। दिल्ली और आसपास के शहरों यानी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में हवा की क्वालिटी एक महीने से बेहद खराब से गंभीर के बीच बनी हुई है। प्रदूषण स्तर बताने वाला एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) 2 सिंतबर को दिल्ली में 469 था। उस दिन यह देश का सबसे अधिक प्रदूषित शहर था। इस एक महीने में एनसीआर के गाजियाबाद ने कई बार सबसे प्रदूषित शहर का ‘खिताब’ हासिल किया।हर साल पंजाब और हरियाणा में खेतों में पराली जलाई जाती है, दिवाली पर पटाखे छोड़े जाते हैं, पूरे साल चलने वाला वाहन और औद्योगिक प्रदूषण तो मौजूद रहता ही है। सरकारें आदेश जारी कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेती हैं और लोग जहरीली सांस लेने को मजबूर होते हैं। धीरे-धीरे प्रदूषण स्तर अपने आप कम होने लगता है और हम सब कुछ भूल जाते हैं, अगले नवंबर में फिर यह सब झेलने के लिए।यही सब इस बार भी दोहराया गया। फर्क यह था कि इस बार सुप्रीम कोर्ट लगातार सुनवाई कर रहा था। पर्यावरण कार्यकर्ता आदित्य दुबे की याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र और दिल्ली की सरकारें हालात पर चिंता तो बहुत जता रही थीं, लेकिन कार्रवाई के नाम पर दलील दे रही थीं कि ‘प्रदूषण नियंत्रित करने के सभी उपाय किए जा रहे हैं।’ कोर्ट को मजबूरन कहना पड़ा कि सब कुछ अच्छा है लेकिन नतीजा शून्य है। कोर्ट ने 2 दिसंबर को पूछा, “अब तो पराली नहीं जलाई जा रही है फिर भी प्रदूषण इतना क्यों है?”वायु गुणवत्ता बताने के लिए पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत बने सफर इंडिया के प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ. बी.एस. मूर्ति आउटलुक से कहते हैं, “उत्सर्जन घटाए बिना नियंत्रण संभव नहीं है। पराली के कारण थोड़े दिनों ही स्थिति गंभीर रहती है। प्रदूषण के मुख्य स्रोत वाहनों और उद्योगों के उत्सर्जन हैं। तीसरा कारण धूल है, जो वाहनों के चलने से भी उड़ती है। दिल्ली में साल के 50-60 फीसदी समय प्रदूषण स्तर खराब या बेहद खराब ही रहता है।”इसलिए सुप्रीम कोर्ट सरकारी कदमों को कामचलाऊ मानता है। कोर्ट ने कहा, “हम दुनिया को क्या संदेश दे रहे हैं? दिल्ली वासियों को हर साल गंभीर प्रदूषण का सामना क्यों करना चाहिए?”लेकिन यह हाल सिर्फ दिल्ली का नहीं है। स्विस संगठन आइक्यूएयर के अनुसार दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में 22 भारत के हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर (रिसर्च एंड एडवोकेसी) अनुमिता रायचौधरी कहती हैं, “समस्या सिर्फ दिल्ली-एनसीआर में नहीं, बल्कि गंगा के पूरे मैदानी इलाके में स्थिति नाजुक है। उत्तर भारत की सैटेलाइट तस्वीर देखें तो पाएंगे कि गंगा के पूरे मैदानी इलाके में समान स्तर का प्रदूषण है। हर साल जाड़े में स्थिति गंभीर हो जाती है। साल के बाकी दिनों में भी यहां प्रदूषण स्तर औसत मानक से ज्यादा ही रहता है।” राष्ट्रीय स्तर पर पीएम 2.5 का सालाना औसत मानक 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है, जबकि वास्तव में यह 60 पर रहता है। जाड़े में दैनिक स्तर मानक से दो-तीन गुना बढ़ जाता है।