राजनीति के इस गणित को भी समझना जरूरी है..

भाजपा में भी तीन तरह के कार्यकर्ता, पहला समर्पित, दूसरा अवसरवादी तीसरा  बाजारू


    कमाल की बात यह है कि जब कार्यक्रम होते हैं तो समर्पित कार्यकर्ता ताली बजाता है, अवसरवादी मंच पर नजर आता है ओर बाजारू आयोजन के खर्चे को वहन कर मुख्य अतिथि से अलग से सीधी मुलाकात करता है।


रणघोष खास. हरियाणा,रेवाड़ी से

अन्य राजनीतिक दलों की तरह भाजपा में भी तीन तरह के कार्यकर्ताओं का जमावड़ा छोटे बड़े आयोजनों में नजर आ रहा है।  पहला समर्पित, दूसरा अवसरवादी तीसरा बाजारू। कमाल की बात यह है कि जब कार्यक्रम होते हैं तो समर्पित कार्यकर्ता ताली बजाता है, अवसरवादी मंच पर नजर आता है ओर बाजारू आयोजन के खर्चे को वहन कर मुख्य अतिथि से अलग से सीधी मुलाकात करता है।

इसकी पूरी रिपोर्ट आला कमान के पास भी है लेकिन अलग अलग तरह के कैटेगिरी के कार्यकर्ताओं को रखना उनकी मजबूरी और जरूरत भी है। अवसर वादी एवं बाजारू कार्यकर्ताओं को कंट्रोल करने के लिए हाईकमान लगातार प्रयास कर रहा है। इसके लिए जिला मुख्यालयों पर होने वाले खर्चों के लिए अलग से बजट का प्रावधान भी किया गया है लेकिन बजट सीमित होने की वजह से मनी एंड मसल पॉवर वालों को भी पार्टी कार्यकर्ता का पटटा पहनाकर  जिम्मेदारी दी जा रही है जो प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तौर पर आयोजनों का खर्चा वहन कर ले। इसके बदले अवसरवादी एवं बाजारू कार्यकर्ताओं को खर्च की गई राशि के बदले दमदार नेताओं से आसानी से मुलाकात करने का अवसर मिल जाता है। साथ ही उनकी उन फाइलों में भी करंट आ जाता है जो बिना किसी दबाव व सिफारिश के धूल फांकती आ रही थी। कुछ ऐसे भी होते हैं जिनके निजी मसले होते हैं या किसी जांच में आरोपी या दोषी करार हो जाते हें। ऐसे लोग लोग तेजी से पार्टी के नाम का चोला पहनकर अपने छिपे एजेंटे को पूरा करने में लगे रहते हैं। कुछ बाजारू एवं अवसरवादी कार्यकर्ता  अपने काराबोर में सरकारी टेंडर लेने, अफसरशाही में अपना प्रभाव बनाने के लिए मीडिया के सहयोग से सुर्खियां बटोरते हैं ताकि सरकारी अधिकारी एवं कर्मचारी उनके निजी कार्यों को प्राथमिकता एवं गंभीरता से ले। पार्टी विचारधारा से जुड़ने के नाम पर  सत्ताधारी सरकार की पार्टियों में बाजारू एवं अवसरवादी कार्यकर्ताओं की मौजूदगी तब तक रहती है जब तक वे सत्ता में रहते हैं। जैसे ही सत्ता बदलती है ऐसे कार्यकर्ता भी गिरगिट की तरह रंग बदलकर उस दलो में प्रवेश कर जाते हैं जिनकी सरकार बनने जा रही है। इसका सबसे बड़ा खामियाजा उन कार्यकर्ताओं को भुगतना पड़ता है जो कई सालों से पार्टी के साथ समर्पण भाव से जुड़े रहते हैं। आर्थिक तौर पर मजबूत नहीं होने की वजह से सत्ता में होने के बावजूद एकाध को छोड़कर  अधिकांश को जिम्मेदारी कार्यक्रमों में ताली बजाने व नारेबाजी करने तक रह जाती है। दरअसल पर्दे के पीछे  सत्ता चलाने वाले सीनियर्स पदाधिकारी, विधायकों एवं मंत्रियों को भी आर्थिक तौर पर मजबूत होने के लिए अवसरवादी एवं बाजारू कार्यकर्ताओं की कदम कदम पर जरूरत रहती है। जनता में बने रहने के लिए उनके खर्चें भी इतने ज्यादा होते हैं कि चाहकर भी सरकार से मिलने वाली सुविधा ऊंट के मूंह में जीरा जितनी रहती है। इसलिए उन्हें रखना सभी की मजबूरी रहती है। जिला भाजपा कार्यालयों में यह चर्चा भी खूब रही की कुर्सी टेबल, ऐसी व अन्य सुविधा देने वाले जिला कार्यकारणी में पदाधिकारी तक बन गए। पता होने के बाद भी चुप रहना समझदारी माना गया। इसके अलावा कोई चारा भी नहीं था। कुल मिलाकर ऐसी स्थिति में

आर्थिक तौर पर बेहद सामान्य व कमजोर कार्यकर्ता एवं पदाधिकारी असहज व निराश ज्यादा नजर आ रहे हैं  जिन्होंने समर्पण भाव से पार्टी की विचारधारा को कभी कमजोर नहीं होने दिया। इससे उलट धन बल से व चंडीगढ़- दिल्ली में महत्वपूर्ण पदों पर बैठे सीनियर नेताओं से सीधा रसूक बनाकर पैराशूट से पदाधिकारी बनने वाले मीडिया में बने रहने से लेकर मंच पर असरदार नेताओं के साथ फोटो में आकर अपना एजेंडा पूरा कर रहे हैं। कार्यक्रमों में वे उस तरह दिखते हैं जिस तरह बॉस को देखकर गेट पर खड़ा सुरक्षा गार्ड सैल्यूट मारता है।

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