रणघोष खास. वंदिता मिश्रा
भारत के संविधान का अनुच्छेद-163(1) बिल्कुल साफ शब्दों में यह घोषणा करता है कि- राज्यपाल को उसके अन्य सभी कार्यों में (विवेकाधीन शक्तियों के अतिरिक्त) सहायता करने और सलाह देने के लिए मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक मंत्रिपरिषद अस्तित्व में रहेगी। शमशेर सिंह बनाम पंजाब राज्य(1974) की सात सदस्यीय पीठ द्वारा दिए गए निर्णय के अनुसार- राज्यपाल कुछ असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर अपने मंत्रियों की सलाह के अनुसार ही अपनी औपचारिक संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग करेंगे। इस निर्णय में, विधानसभा की परंपरा में और संविधान की मूल भावना में यह भी सन्निहित है कि राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद-176 के अनुपालन में दिया गया अभिभाषण राज्य की मंत्रिपरिषद द्वारा ही तैयार किया जाएगा। राज्यपाल का दायित्व है कि वह तैयार किए गए अभिभाषण को शब्दशः वैसा ही पढ़े जैसा उसे दिया गया है जबतक कि उसमें ऐसा कुछ न लिखा हो जो संविधान की मूल भावना और राष्ट्रीय एकता को चोट पहुंचाने वाला हो। लेकिन तमिलनाडु के वर्तमान राज्यपाल आर. एन. रवि ने उनको तमिलनाडु सरकार द्वारा तैयार करके दिया गया राज्यपाल का अभिभाषण वैसा नहीं पढ़ा जैसा उन्हे दिया गया था। एम के स्टालिन की मंत्रिपरिषद ने राज्यपाल के अभिभाषण के लिए 67 बिन्दु वाला दस्तावेज तैयार किया था। राज्यपाल रवि ने अपने ‘विवेक’ का इस्तेमाल करते हुए इस दस्तावेज के कुछ हिस्सों को बोलना जरूरी नहीं समझा। उन हिस्सों को पढ़कर यह जानना चाहिए कि राज्यपाल रवि ने इन्हे क्यों छोड़ा होगा?उनके द्वारा अभिभाषण से निकाल दिया जाने वाला पहला हिस्सा था- “यह सरकार सामाजिक न्याय, आत्म-सम्मान, समावेशी विकास, समानता, महिला सशक्तिकरण, धर्मनिरपेक्षता और सभी नागरिकों के प्रति करुणा के आदर्शों पर स्थापित है। थानथाई पेरियार, आंबेडकर, पेरुनथलाइवर कामराजार, पेरारिग्नार अन्ना और मुथमिज़ह अरिगनार कलैग्नार जैसे दिग्गजों के सिद्धांतों और आदर्शों का पालन करते हुए, यह सरकार शासन के बहुप्रशंसित द्रविड़ मॉडल को अपने लोगों तक पहुंचा रही है”। यह जानना रोचक होगा कि राज्यपाल रवि को इस हिस्से में क्या आपत्तिजनक लगा होगा? ‘धर्मनिरपेक्षता’?, आंबेडकर? सामाजिक न्याय? महिला सशक्तिकरण या शासन का ‘द्रविड़ मॉडल’? आखिर क्या सोचकर उन्होंने अपने संवैधानिक सम्बोधन से इन शब्दों को हटाने का निर्णय लिया होगा? 1976 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे आर एन रवि ने गलती से यह हिस्सा छोड़ दिया होगा, ऐसा मानने का कोई कारण नहीं। सरकार और संविधान को समझने वाला एक शिक्षित व्यक्ति ऐसा क्यों करेगा, वर्तमान राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में इसे समझना इतना भी जटिल नहीं है। “संविधान के तहत राज्यपाल के पास ऐसा कोई कार्य नहीं है जिसे वह स्वयं निष्पादित कर सकता है; कोई भी कार्य नहीं। हालाँकि उनके कोई कार्य नहीं है लेकिन उसके कुछ कर्त्तव्य जरूर हैं और सदन को इस बात का ख्याल रखना चाहिए”।