कुछ नहीं होना मिल बांटकर खाओ, हिस्सा ना मिले तो खबर छपवाओ
-इस तरह के मामलों में मीडिया हर बार की तरह इस बार भी बंदर – बंदरिया बनकर मदारी बने भ्रष्टाचारियों के खेल को पूरा कर जाते हैं और शहर का नागरिक ताली बजाकर खुश हो जाता है।
रणघोष खास. सुभाष चौधरी
हरियाणा के रेवाड़ी शहर में पार्कों के रख रखाव को लेकर मच रहे शोर से एक बार फिर भ्रष्टाचार निवस्त्र होकर सड़कों पर नाचने लगा है। इस तरह के अधिकांश मामले उस समय सार्वजनिक होते हैं जब आपस में बंट रहे हिस्से को लेकर कोई नाराज हो जाए। अगर समय रहते उसे राजी कर लिया तो ठीक नहीं तो वह अखबारों व चैनलों में सुर्खियां बनकर भष्टाचार के दाम बढा देता है। यह एक ऐसा खेल है जिसकी शुरूआत भ्रष्टाचार के खिलाफ होती है लेकिन अंत भ्रष्टाचार के भंडारे की तरह होता है जिसमें खाने वाले, खिलाने वाले, बनाने वाले एवं खर्च करने वाले एक दूसरे का सम्मान करते हुए नजर आते हैं। इस पूरे तमाशे में भ्रष्टाचारी मदारी की तरह मीडिया को बंदर बनाकर उससे खबरों की शक्ल में तरह तरह का करतब कराकर अपने खेल की अच्छी खासी वसूली कर जाता है।
सेक्टरों के कुछ जागरूक नागरिकों एवं रिटायरमेंट होने के बाद संस्थाएं बनाकर बने समाजसेवियों ने एक साल पहले शहर में पार्कों की हो रही दुर्दशा को लेकर सीधे तौर पर ठेकेदार, नगर पार्षद, नप के अधिकारियों की कमीशनखोरी को जिम्मेदार ठहराया था। काफी हद तक उनके आरोप सही थे। यह नई बात भी नहीं है। नप में भ्रष्टाचार को सम्मान के तौर पर कमीशन बोला जाता है जिसकी जितनी हैसियत उसे उसी हिसाब से हिस्सा मिलता है। यह ठीक उसी तरह होता है जिस तरह धार्मिक स्थलों पर दक्षिणा देखकर पुजारी तिलक व प्रसाद देता है। इसी दरम्यान नप में गलती से कोई फाइल ईमानदारी से निकल जाए तो उसे असली भ्रष्टाचार माना जाता है। वर्तमान में शहर की दो एसोसिएशन पर भ्रष्टाचार में डुबकी लगाने के आरोप सामने आए हैं। आरडब्ल्यूए सेक्टर चार की वैधता को नगर पार्षद विजय राव ने कटघरे में खड़ा कर दिया है। साथ ही पार्को के नाम पर एसोसिएशन को किए गए भुगतान की जांच कराने का मसला भी उठा दिया है। एसोसिएशन की समिति इन आरोपों को खारिज कर रही है। उलटा विजय राव के मामलों को उजागर करने की तैयारी में जुट गई है। इससे पहले पार्कों में ठेकेदारों की तरफ से किए गए कार्यों की जांच अभी भी जिला प्रशासन की टेबल पर विचारधीन है। दूसरी तरफ रेजांगला पार्क विकास समिति के भीतर भी नप की आई ग्रांट को लेकर विवाद गहरा चुका है। यहां भी ग्रांट को कागजों में चालाकी से इधर उधर किया गया है। इस समिति की तरफ से मीडिया के प्लेटफार्म से भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते आ रहे परमात्मा शरण अब खुद ही घिरते जा रहे हैं। स्थिति यह बनी हुई है कि जिसे हिस्सा नहीं मिल पा रहा है वह अखबारों में ईमानदार व जागरूक नागरिक का तमका लगाकर भ्रष्टाचार की मंडी में अपने रेट तय करा रहा है। जहां तक अधिकारियों की तरफ से की जाने वाली जांच का सवाल है उनकी पांचों उंगली घी में है। जितना बड़ा विवाद होगा उतनी तेजी से उनके रेट बढ़ेगे। इन पूरे मामले में राजनीति अपना अलग से काम कर रही है। जहां सभी एक ही धड़े के हैं वे शांत है जहां विरोधी है वे मौका देखकर एक दूसरे के कपड़े उतारने में लग गए हैं। इसलिए यह कह पाना सहज आसान नही है कि आरोप लगाने वाले ओर कटघरे में खड़े होने वालों में कौन सबसे ज्यादा ईमानदार व भ्रष्ट है। इतना जरूर है कि इस तरह के मामलों में मीडिया हर बार की तरह इस बार भी बंदर – बंदरिया बनकर मदारी बने भ्रष्टाचारियों के खेल को पूरा कर जाते हैं और शहर का नागरिक ताली बजाकर खुश हो जाता है।
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