2009 में हुए परिसीमन के काले सच से सबक लेना जरूरी है

झज्जर रेवाड़ी से छोटा, आबादी में बराबर, फिर भी विधानसभा सीटें ज्यादा


Laxman Yadav-1रणघोष खास. लक्ष्मण यादव,  विधायक कोसली 

2009 के बाद अब  2026 में हरियाणा में होने जा रहे परिसीमन को लेकर अंदरखाने तैयारियां चल पड़ी है। परिसीमन एक तरह से  लोकसभा और राज्य विधानसभा सीटों की सीमाओं को पुनर्निर्धारित करने का कार्य है जिसका उद्देश्य परिवर्तित जनसंख्या का समान प्रतिनिधित्व तय करना होता है। 2009 में तत्कालीन हरियाणा कांग्रेस सरकार ने जो परिसीमन कराया वह पूरी तरह स्वार्थ की राजनीति में सना हुआ था। प्रदेश राजनीति की दिशा व दशा तय करते आ रहे दक्षिण हरियाणा के अस्तित्व को पूरी तरह से खत्म करने का दुस्साहस किया गया था। जिसका काला सच क्षेत्र की जनता के सामने रखना बेहद जरूरी है। ताकि 2026 में कोई यह  हरकत नहीं कर पाए।  आइए 2009 में किए गए परिसीमन से रेवाड़ी ओर झज्जर जिले की मौजूदा पृष्ठभूमि से इस काले सच को समझते हैँ

रेवाड़ी जिले में विधानसभा बजाय बढ़ाने के तोड़कर 3 ही रख दी

23 सितंबर 1989 में रेवाड़ी नए जिले के तौर पर स्थापित हुआ था। इसका क्षेत्रफल 2011 की जनगणना के अनुसार 1594 किमी ओर आबादी 9 लाख 332 थी। वर्तमान में यह आबादी 10 लाख से ज्यादा पार हो चुकी है। 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में कोसली सीट पर मतदाताओं की संख्या 2 लाख 39 हजार 722, बावल की 2 लाख 22 हजार एवं रेवाड़ी में 2 लाख 32 हजार 359 थी। जिले में 348 से ज्यादा ग्राम पंचायतें हैँ। 2009 में हुए परिसीमन में जाटूसाना- साल्हावास को खत्म कर कोसली नई विधानसभा बनाई गईं। इससे पहले बंसीलाल की सरकार में साथ लगते कनीना विधानसभा को खत्म कर दिया गया था। कायदे से बढ़ती आबादी, रहन सहन, सामाजिक मेल मिलाप एवं भाईचारे के आधार पर जिले में विधानसभा सीटों की संख्या बढ़नी चाहिए थी लेकिन सोची समझी साजिश के तहत वोटों का जातीय एवं क्षेत्रीय के आधार पर धुव्रीकरण कर दिया गया ताकि इस क्षेत्र का राजनीति वजूद कभी उभर नहीं पाए ओर चंडीगढ़ में हमारी आवाज को सुनने वाला कोई नहीं हो।

 झज्जर में चार विधानसभा सीटें वो भी कम वोटरों के आधार पर

झज्जर रेवाड़ी से 8 साल बाद 15 जुलाई 1997 को जिले के तौर पर अस्तित्व में आया था। उस समय इसकी आबादी 2011 की जनगणना के आधार पर रेवाड़ी जिले से बराबर ही थी। 2009 के परिसीमन में झज्जर जिले में झज्जर, बादली, बेरी एवं बहादुरगढ़ विधानसभा घोषित हुईं। 2019 के विधानसभा चुनाव के आधार पर झज्जर सीट पर मतदाताओं की संख्या 166897, बेरी में मतदाताओं की संख्या 170067, बहादुरगढ़ में 2 लाख 11 हजार 542 एवं बादली विधानसभा सीट पर मतदाताओं की संख्या 170455 थी।

रेवाड़ी विधानसभा सीटों पर मतदाता 2 लाख पार, झज्जर में दो लाख से कम

 परिसीमन समानता के लिए किया जाता है। 2009 में तो सबकुछ जातीय एवं क्षेत्रीय आधार पर बांट दिया गया। झज्जर से पुराना ओर आबादी में बराबर होने के बावजूद रेवाड़ी की प्रत्येक विधानसभा सीटों पर मतदाताओं की संख्या  दो लाख से ज्यादा रखी गई जबकि झज्जर की चार विधानसभा सीटों में तीन पर मतदाताओं की संख्या दो लाख से काफी कम थी। इससे साफ जाहिर होता है कि उस समय की कांग्रेस  सरकार के मुखिया भूपेंद्र सिंह हुडडा ने अपने राजनीति हितों के लिए दक्षिण हरियाणा के टुकड़े टुकड़े करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। हुडडा चाहते थे कि दक्षिण हरियाणा को पूरी तरह बिखेरकर रख दिया जाए ताकि यहां से कोई मजबूत नेतृत्व चुनौती नहीं दे पाए। इतना ही नहीं यह क्षेत्र हमेशा के लिए अन्य जिलों की चौधर के रहमों करम पर जिंदा रहे। यहीं वजह है कि कांग्रेस सरकार ने विकास के नाम पर दक्षिण हरियाणा के साथ ना केवल जमकर भेदभाव किया साथ ही यहां के कांग्रेसी नेताओं के हाथों में कटोरा थमा दिया ताकि वे उनके सामने बराबरी के तौर पर खड़ा नहीं हो पाए। नतीजा कांग्रेसी नेताओं ने अपनी सरकार में रहते हुए अपना संपूर्ण विकास जरूर किया लेकिन क्षेत्र को राम भरोसे छोड़ दिया। भाजपा सरकार ने आने के बाद मुख्यमंत्री मनोहरलाल के मार्गदर्शन में विकास में भेदभाव के लगे दागों को काफी हद तक साफ किया है।

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