रेवाड़ी में विक्रम यादव की घटना ने खड़ा किया सवाल

नाम और पैसा कमाने वाले भी क्यों कर लेते हैं सुसाइड


खुद भी जरूरत से ज्यादा जिम्मेदारी मत ओढ़िए. दर्द बर्दाश्त करते रहना बहादुरी नहीं है. बहादुरी उसका समझदारी से मुकाबला करने में है.


रणघोष खास. सुभाष चौधरी


शहर के नामी परिवार के नामी चेहरे विक्रम यादव की सुसाइड की घटना की असल वजह जांच से सामने आएगी। जिनके नाम सामने आए हैं वे भी अपने क्षेत्र में पहचान रखते हैं। विक्रम यादव ने अपने सुसाइड नोट में इन लोगों को जिम्मेदार माना है। अब सवाल यह है सुसाइड करने वालों में अब नाम ओर पैसा कमाने वालों की संख्या ही ज्यादा क्यों हैं। आइए इन घटनाओं से सबक लेते हुए इस वजह के कारणों को समझे। इस घटना सेयह कहना भी गलत है कि आत्महत्या करने वाले कमजोर होते हैं।अपने जीवन में व्यक्ति एक साथ कई भूमिकाओं में होता है. पुत्र/पुत्री, भाई/बहन, पति/पत्नी, पिता/माता और दोस्त. कई अन्य भूमिकाएं कारोबार और प्रोफेशन से जुड़ी हुई होती हैं।  जब किसी व्यक्ति की सांस टूटती है तो उसके साथ उन सभी रिश्तों को डोर भी टूट जाती है जिन्हें थामे वह जीवन के सफर पर चल रहा था।  इसलिए मृत्यु दुख देती है। अगर मृत्यु की वजह खुदकुशी हो तो उस व्यक्ति के करीबी लोगों के दिल में गहरी टीस रह जाती है। वो सभी इस अफसोस को सीने में लेकर जीते हैं कि शायद थोड़ा सतर्क रहते तो वह उनके साथ होता। सब जानते हैं कि मौत जीवन का अंतिम सत्य है और उसकी आखिरी मंजिल भी. बहुतों ने बुद्ध को भी पढ़ा होगा और गीता को भी. यह अहसास तो सभी को होता है कि “सब अनित्य है” लेकिन ऐसे मामलों में सब ज्ञान धरा रह जाता है। हमेशा यही लगता है कि जाने वाले के दिमाग में चल रहे द्वंद को थोड़ा पहले महसूस करना चाहिए था और विशेषज्ञों की मदद लेनी चाहिए थी. शायद वो उसे उस मानसिक भंवर से बाहर निकाल लेते, जिसमें डूब कर उसने प्राण त्यागने का फैसला लिया.। आत्महत्या करने वालों के परिवार वाले जीवन का शेष सफर इसी अहसास के साथ पूरा करते हैं। कुछ करीबी लोगों को इस अहसास के साथ जीते देखा है। ऐसे ही मौकों पर लगता है कि पीड़ा को बयां करने में शब्दों की क्षमता कितनी सीमित है! कोई भी शब्द उन चीखों और सिसकियों को बयां नहीं कर सकता जो भीतर उठती हैं मगर बाहर नहीं निकल पातीं।

हर 40 सेकेंड में कोई न कोई करता है खुदकुशी

अगर आप अखबार पढ़ते हैं तो पाएंगे कि अमूमन हर रोज किसी न किसी की खुदकुशी की खबर छपी होती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि हर 40 सेकेंड में दुनिया में एक व्यक्ति खुदकुशी करता है? डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के मुताबिक विश्व में हर साल 8 लाख और भारत में  एक लाख 35 हजार लोग आत्महत्या करते हैं। कुछ अन्य संगठनों के मुताबिक भारत में प्रति वर्ष खुदकुशी का आंकड़ा 2 लाख से ज्यादा है. मतलब  यहां हर घंटे 20-25 लोग अपनी जान ले रहे हैं. समाज, जिसमें हम सभी शामिल हैं और सरकार की संवेदनहीनता देखिए कि इतनी बड़ी संख्या पर होने वाली मौतों पर हम खुलकर चर्चा भी नहीं करते हैं।

क्या होती हैं सुसाइड की वजह

आत्महत्या की सबसे बड़ी वजह तनाव, डिप्रेशन और मानसिक समस्याएं हैं. हमारे यहां डिप्रेशन समेत मानसिक समस्याओं को लेकर वैज्ञानिक नजरिया विकसित ही नहीं हो सका है। अगर कोई डिप्रेशन का शिकार है तो हम उसे कमजोर समझते हैं. अगर हम खुद डिप्रेशन का शिकार हैं तो उसके बारे में दूसरों को बताने से हिचकते हैं और उससे अकेले ही जूझते रहते हैं। हमारी यह विकृत सोच डिप्रेशन के शिकार व्यक्ति को गहरे अवसाद से भर देती है. उसका डिप्रेशन बढ़ने लगता है. डिप्रेशन का शिकार कोई भी हो सकता है. अमीर और गरीब, आम और खास, मर्द और स्त्री, बच्चे, जवान और बुजुर्ग – कोई भी इसकी चपेट में आ सकता है. इसकी कोई भी वजह हो सकती है। इसलिए अगर आप किसी गहरे अवसाद से गुजर रहे हैं तो किसी अपने से उसके बारे में बात कीजिए। यदि कोई आपका अपना अचानक गुमसुम रहने लगा हो तो आगे बढ़ कर उससे बात कीजिए. हो सकता है कि उसे मदद की जरूरत हो।  युवाओं और बुजुर्गों का खास ख्याल रखिए. बच्चों पर अपने सपनों का बोझ मत लादिए। खुद भी जरूरत से ज्यादा जिम्मेदारी मत ओढ़िए. दर्द बर्दाश्त करते रहना बहादुरी नहीं है. बहादुरी उसका समझदारी से मुकाबला करने में है.

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