रोहतक संसदीय सीट पर सीधी सपाट बात

मोदी गांरटी के सामने दीपेंद्र ज्यादा असरदार, मुश्किल में शर्मा जी    


रणघोष खास. सुभाष चौधरी सीधे रोहतक से 

हरियाणा की रोहतक संसदीय सीट जिस पर देश- प्रदेश के रणनीतिकारों की पैनी नजर रहती है। जहां से तय हुई हार जीत सीधे हरियाणा की राजनीति को इधर से उधर कर देती है। इस बार इस सीट पर भाजपा की मोदी गारंटी भी यहां से पार्टी उम्मीदवार डॉ. अरविंद शर्मा को मौजूदा हालात में दुबारा जीत की तरफ ले जा पाने में खुद से ही जूझती नजर आ रही है। यहा से कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार दीपेंद्र हुडडा बेहद मजबूत नजर आ रहे हैं। इसकी वजह दीपेंद्र से ज्यादा यहां के मतदाता खुलकर भाजपा के इरादों को मुश्किल में डाल रहे हैं।

इस सीट की दिलचस्प बात यह है की कांग्रेस व मतदाताओं से ज्यादा भाजपा के भीतर एक बड़ा धड़ा डॉ. अरविंद शर्मा को दुबारा टिकट दिए जाने पर हैरानी जता रहा है। यहां बता दे की जिस गुटबाजी एवं धड़ेबाजी के लिए कांग्रेस सबसे ज्यादा बदनाम थी उसके सारे लक्षण अब भाजपा के भीतर खामोशी के साथ नजर आ रहे हैं। अंतर इतना है की कांग्रेस में ये सार्वजनिक तौर पर नजर आते हैं भाजपा में अंदर ही अंदर इसका असर रहता है।  डॉ. अरविंद शर्मा के पिछले पांच सालों में दिए गए बयानों पर गौर करे तो वे स्वयं इस सीट पर जबरन धकेले जाने वाली स्थिति में नजर आए। 2019 में वे मांग रहे थे करनाल सीट हाईकमान ने उन्हें रोहतक में उतार दिया। उस समय किसी तरह मोदी लहर ने डॉ. शर्मा की नैया पार लगा दी थी। जिसके चलते दीपेंद्र महज 7503 वोटों से यह चुनाव हार गए थे। टिकट मिलने के बाद डॉ. शर्मा  इस बार भी मोदी गारंटी लेकर उन गांवों की तरफ भी चल पडे जहां उन्हें पहुंचने में  पांच साल लग गए थे। जिसके चलते डॉ. शर्मा को लोगों के विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है। उधर दूसरी तरफ दीपेंद्र हुडडा हार के बावजूद लोगों से मिलते रहे। जिसका फायदा उन्हें अब अपने सौम्य व्यवहार, काम करने के तौर तरीके के तौर पर मिलता नजर आ रहा है। हालांकि पिछली बार भी दीपेंद्र अपनी जीत को लेकर आश्वस्त थे लेकिन ऐन वक्त पर पासा पलट गया था। इस बार भी मतदान होने तक राजनीति हालात कभी भी किसी भी समय बदल सकते हैं। हमारा यह विश्लेषण मौजूदा हालात पर है जो आने वाले दिनों में बदलती परिस्थितियों के हिसाब से बदलता रहेगा।

लोकसभा जीत गए तो राज्यसभा खो देंगे दीपेंद्र

इस सीट पर दीपेंद्र हुडडा मजबूत होते हुए भी अच्छी खासी परेशानी में है। वे वर्तमान में राज्यसभा सांसद है। जाहिर चुनाव जीतने के बाद उन्हें राज्यसभा सीट छोड़नी पड़ेगी जो सीधे भाजपा के खाते में चली जाएगी। अगर चुनाव में नहीं उतरते हैं तो भाजपा स्वाभाविक तौर पर मजबूत हो जाएगी। उधर दीपेंद्र रोहतक से नहीं लड़ने की स्थिति में आगामी हरियाणा विधानसभा चुनाव में इतने असरदार नहीं हो पाएंगे जितने इस चुनाव में लड़कर पूरे हरियाणा में अपना प्रभाव कायम करने में साफतौर से नजर आ रहे हैं। कुल मिलाकर दीपेंद्र के लिए यह चुनाव कुछ पाने के लिए कुछ खोने वाली स्थिति जैसा बन चुका है।