रणघोष खास. भगवान बव्वा अंग्रेजी प्रवक्ता
मन चंगा तो कठौती में गंगा प्रसंग बिल्कुल स्पष्ट बताता है कि वे उस पंडित पर बिल्कुल भी नाराज़ नहीं हुए जो गंगा द्वारा भेजा कंगन उन्हें नहीं बल्कि अपने राजा को दे आए और फिर पंडित की जान को खतरा देख उन्होंने गंगा मां का आह्वान किया और अपनी चमड़ा भिगोने के काम आने वाली कठौती में ही गंगा को बहा दिया और प्रार्थना की कि पंडित की समस्या के समाधान हेतु उन्हें एक और वैसा ही कंगन देने की कृपा करें। संत रविदास जी को भक्त रविदास, गुरू रविदास, रैदास के नामों के साथ भी जाना जाता है। वह पन्दरहवीं सदी में भारत देश की पावन धरा पर अवतरित हुए।उनके जीवन पर भक्ति-विचारधारा पर गहरा प्रभाव पड़ा। वह एक समाज-सुधारक, मानववादी, धार्मिक मानव, चिंतक और महान कवि थे। उन का सम्बन्ध भारतीय जाति व्यवस्था के अनुसार चमार जाति के साथ था । उन के रचित बहुत से शब्द श्री गुरू ग्रंथ साहिब में भी सम्मिलित किए गए हैं । उनकी सभी रचनाएं ईश्वर, गुरू, ब्रह्मांड और कुदरत के साथ प्रेम का संदेश देती हुई मानवता को सर्वोपरि मानती हैं । गुरु रविदास महाराज अपनी वाणी के माध्यम से समूचे जगत के हित की कामना करते हुए आज की लोकतांत्रिक व्यवस्था को भी सबक देते नज़र आते हैं । राज्य को सदैव बिना किसी भेदभाव के कल्याणकारी ही होना चाहिए। “ऐसा चाहूँ राज मैं , जहाँ मिले सबन को अन्न.छोट-बड़ो सब सम बसै, रैदास रहे प्रसन्न। संत शिरोमणि रविदास महाराज कुरीतियों के खिलाफ निर्भय होकर आवाज उठाते थे. उन्होंने मध्यकाल में प्रचलित कुरीतियों को खुलकर चुनौती दी । अपनी वाणी से उन्होंने समाज में यह भाव प्रचलित किया कि कोई भी व्यक्ति जन्म के आधार पर श्रेष्ठ नहीं होता है। उन्होंने लिखा है कि “रैदास बाभन मत पूजिए जो होवे गुन हीन, पूजिए चरन चंडाल के जो हो गुन परवीन।,आज भी उनका साहित्य जन चेतना को जागृत कर एक नये समतामूलक समाज के निर्माण में अपनी भूमिका निभा रहा हैं। संत रविदास महाराज बेख़ौफ़ होकर समाज में फैले आडम्बरों के खिलाफ़ अपनी आवाज बुलंद करने वाले एकमात्र संत के रूप में स्थापित हैं । संत रैदास ने एक जगह सीधे-सीधे शब्दों में लिखा है कि “रैदास जन्म के कारने होत न कोई नीच,नर कूं नीच कर डारि है, ओछे करम की कीच”। आइए आज हम सब गुरु रविदास महाराज की जयंती पर उनके दिखाए मार्ग पर चलने का संकल्प लेकर इस दिवस की महता एवं सार्थकता बढ़ाएं ।