शिक्षा जगत में दैनिक रणघोष का सबसे बड़ा खुलासा

फार्म-6 में छिपा हुआ है प्राइवेट स्कूल का असली सच


 202 स्कूलों में जमा सालाना फीस 500 करोड़, शिक्षकों पर खर्च हुए150 करोड़, बचे 350 करोड़, फिर भी बढ़ाते रहे फीस


अगर ईमानदारी से प्राइवेट स्कूलों की कमाई समान तौर पर प्रत्येक स्कूल में  बांट दी जाए तो हर स्कूल की रोजाना आय उतनी है जितना जिले के डीसी का एक माह का वेतन ।


रणघोष खास. सुभाष चौधरी


प्राइवेट शिक्षण संस्थाओं की बुनियाद क्या सच में शिक्षा के मूल्यों पर टिकी है। अगर यह दावा किया जा रहा है तो यह शिक्षा जगत का सबसे बड़ा झूठ है। जिसे वे खुद ही साबित कर रहे हैं। दैनिक रणघोष के पास जिला रेवाड़ी के 202 प्राइवेट स्कूलों द्वारा फार्म-6 के नाम पर जमा कराए जाने वाली सत्र 2018-19 एवं 2019-20 की रिपोर्ट है। उस समय कोविड-19 का देश में हमला नहीं हुआ था। इस रिपोर्ट में प्रत्येक स्कूल का आय- व्यय का लेखा जोखा होता है। शिक्षकों को कितना वेतन दिया जाता है, बच्चों से क्या फीस ली जाती है। सुविधा के नाम पर क्या क्या संसाधन  है ओर स्कूल प्रबंधन ने विद्यार्थियों की बेहतरी के नाम पर कितनी राशि कहां कहां खर्च की का पूरा उल्लेख होता है। इस रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद मोटे तौर पर जो तस्वीर सामने आईं। उससे पैरो तले जमीन खिसक जाए तो बड़ी बात नहीं है। इन रिपोर्ट का मोटे तौर पर ऑडिट किया गया तो 202 स्कूलों में 6 हजार के आस पास शिक्षक और गैर शिक्षक स्टाफ है। हम स्पष्ट कर दें कि यह संख्या थोड़ी कम ज्यादा भी हो सकती है। स्कूल प्रबंधन ने पूरी जिम्मेदारी के साथ शिक्षकों एवं गैर शिक्षकों का जो वेतन दर्शाया हुआ है। वह योग्यता एवं विषय की महत्ता के आधार पर अलग अलग है। रणघोष ने सीए के सहयोग से जो मोटे तौर पर वेतन का जो खाका तैयार किया। उसके मुताबिक शिक्षकों एवं कर्मचारियों के वेतन पर ये संस्थाएं 150 करोड़ रुपए के आस पास खर्च कर रही है। इन संस्थाओं में नर्सरी से लेकर 12 वीं तक  एक लाख के लगभग विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। सभी स्कूलों की फीस उपलब्ध सुविधाओं एवं ब्रांड वैल्यू के आधार पर अलग अलग है। इसलिए हमने केवल मंथली फीस को औसत आधार बनाकर कम से कम  50 हजार रुपए सालाना प्रति विद्यार्थी निर्धारित की। इसमें एडमिशन फीस, टयूशन, विकास शूल्क, स्कूली ड्रेस-पुस्तकों पर मिलने वाला कमीशन, ट्रांसपोर्ट एवं अन्य खर्चें शामिल नहीं किया है। इस हिसाब से इन स्कूलों के पास करीब 500 करोड़ रुपए तो सालाना केवल मंथली फीस के तोर पर आ रहे हैं। यानि शिक्षकों एवं कर्मचारियों के वेतन को घटा दिया जाए तो 350 करोड़ के आस पास की राशि स्कूल प्रबंधनों के पास बचत के तौर पर जमा रहती है। इस बचत राशि में स्कूल संचालकों के उस तर्क को भी शामिल कर सकते हैं जिसमें उनका कहना है कि अभिभावक फीस जमा नहीं करते, स्कूल में शिक्षण के अलावा अन्य गतिविधियों पर भी अच्छा खासा बजट खर्च हो जाता है। जिसका उल्लेख वे फार्म-6 में दिखाते हैं ताकि कुल आय ज्यादा नजर नहीं आए ओर वे आसानी से हर साल फीस में बढ़ोतरी कर सके। लेकिन हम यहां पुन: स्पष्ट करना चाहते हैं कि हमने टयूशन, विकास शूल्क, स्कूली ड्रेस-पुस्तकों पर मिलने वाला कमीशन, ट्रांसपोर्ट के नाम पर होने वाली बचत को शामिल नहीं किया है। अगर उसका हिसाब लगा दिया जाए तो कुछ देर के लिए दिमाग काम करना बंद कर देगा।

शिक्षकों का दावा कागजों में जो दिखाया उसका 60 प्रतिशत मिलता है

इसके अलावा प्राइवेट शिक्षकों ने जो खुलासा किया है वह हैरान करने वाला है। इनका कहना है कि रिपोर्ट में जो वेतन दिखाया गया है वह तो उन्हें मिलता ही नहीं है। बल्कि उसका 50 से 60 प्रतिशत दिया जाता है। उनके हस्ताक्षर उस वेतन पर कराए जाते हैं जिसका उल्लेख रिपोर्ट में किया गया है। चुप रहना उनकी मजबूरी है। विरोध करेंगे तो नौकरी से निकाल दिए जाएंगे। ऐसा करने पर दूसरे स्कूल भी उन्हें इसी आधार पर नौकरी पर नहीं रखेंगे। इसलिए वे सबकुछ बर्दास्त करने में विवश है। इसकी जानकारी स्कूल में चपरासी से लेकर शीर्ष अधिकारी तक को है।

फीस एंड फंड रेगुलेटरी कमेटी की कार्रवाई जीरो

ऐसा नहीं है कि फार्म-6 जमा कराने के बाद प्राइवेट स्कूलों की जिम्मेदारी खत्म हो जाएगी। शिक्षा अधिनियम 158 के तहत प्राइवेट स्कूलों की फीस एवं फंड को निर्धारित करने के लिए कमेटी बनी हुई है। जिसमें कमीश्नर चेयरमैन, एडीसी सचिव, डीईओ, डीईईओ सदस्य होते हैं। चेयरमैन द्वारा सीए मनोनीत किया जाता है। इस कमेटी का कार्य स्कूलों की तरफ जमा फार्म-6 के तहत आने वाली रिपोर्ट की ऑडिट करना होता है। अधिनियम में यह प्रावधान होता है कि हर साल 5 प्रतिशत स्कूलों का ड्रा के माध्यम से ऑडिट कराना अनिवार्य होता है। इसके अलावा शिकायत के आधार पर अलग से ऑडिट करना भी जरूरी है। एजुकेशन एक्ट के अनुसार स्कूलों को गैर लाभकारी संस्था बताया गया है। प्रत्येक स्कूल को हर साल फार्म-6 का ब्यौरा शिक्षा विभाग में जमा कराना अनिवार्य है। एक्ट में स्पष्ट तौर से लिखा हुआ है कि कोई भी स्कूल सरप्लस फंड होने के बावजूद मासिक टयूशन फीस एवं अन्य फंड में बढ़ोतरी नहीं कर सकता। इसके लिए शिक्षा निदेशालय की  स्वीकृति जरूरी होती है।

 प्राइवेट स्कूलों से अपील है कि वे इस खुलासे को गलत साबित करें

हमारी प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन एवं संचालकों से अपील है कि वे अपने स्तर पर प्रकाशित इस खुलासे को गलत साबित करें। हमने अधिकारियों का पक्ष इसलिए नहीं लिया। उन्हें पता है। इस तरह की खबरें उनके लिए कमाई का जरिया बनती है। अगर ऐसा नहीं है तो फाइलों में शिकायतें दफन नहीं होती।

घाटा दिखाकर हर साल कर रहे फीस में बढ़ोतरी

एक्ट में इतना सबकुछ स्पष्ट होने के बावजूद हर साल आधे से ज्यादा स्कूल खुद को संघर्ष व घाटे में दिखाकर बिना शिक्षा निदेशालय की स्वीकृति के ही फीस बढ़ा देते हैं।

कमेटी ने कार्रवाई के नाम पर रिमाइंडर ही जारी किया

मंडल आयुक्त गुरुग्राम की अध्यक्षता में गठित फीस एंड फंड रेगुलेटरी कमेटी ने कुछ शिकायतों पर कार्रवाई भी शुरू की थी लेकिन वह महज शिक्षा विभाग को रिमाइंडर जारी करने के अलावा कुछ नहीं कर पाईं। ऐसा आरोप है कि शिक्षा अधिकारी एवं कमेटी के सदस्य निजी स्कूलों से मिली भगत करके मामले को रफा दफा कर देते हैं। कुछ मामलों में शिकायतकर्ता के निजी हित पूरे होने पर कार्रवाई स्वत: ही खत्म हो जाती है।

जस्टिस अनिल देव की कमेटी कर चुकी है प्राइवेट स्कूलों का खुलासा

दिल्ली में प्राइवेट स्कूलों की कमाई की असलियत का खुलासा 5 साल पहले जस्टिस अनिल देव सिंह कमेटी कर चुकी है। जिसके आधार पर दिल्ली सरकार ने बिजली कंपनियों के बाद अब निजी स्कूलों के खातों की जांच भी कैग से कराने का निर्णय लिया था। उसके बाद यह मामला कोर्ट में भी पहुंचा था ओर प्राइवेट स्कूलों को मनमाने ढंग से प्राप्त की गई फीस को वापस लौटाना पड़ा था। जस्टिस देव की कमेटी के मुताबिक ऐसे स्कूलों की संख्या लगभग 200 है।

कोर्ट के आदेश पर बनाई गई थी कमेटी

वर्ष 2009 में निजी स्कूलों ने छठे वेतन आयोग के सिफारिशों को लागू करने के लिए 25 से 30 फीसदी तक फीस बढ़ोतरी की थी। स्कूलों ने छात्रों से वर्ष 2006 से ही बढ़ी हुई फीस वसूली थी। इसके खिलाफ अभिभावक महासंघ की ओर से अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिस पर विचार करते हुए हाईकोर्ट ने अगस्त 2011 में सेवानिवृत्त जज जस्टिस अनिल देव सिंह की अध्यक्षता में कमेटी बनाई थी।कमेटी अब तक 450 स्कूलों को दोषी पा चुकी है। कमेटी ने पाया कि स्कूलों ने छठे वेतन आयोग के नाम पर फीस तो बढ़ा दी, लेकिन छठे कमीशन के मुताबिक स्टाफ की सैलरी नहीं बढ़ाई। कई स्कूलों ने फीस बढ़ाने के रिकॉर्ड (बैंक खाता, खर्चों का हिसाब आदि) देने में आनाकानी की थी।

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