रणघोष अपडेट. रेवाड़ी
कायदे से शिक्षा विभाग में जिला शिक्षा अधिकारी का पद खत्म कर ठेकेदारों की भर्ती कर देनी चाहिए। जिससे कनीना में हुए स्कूली बस हादसे के जिम्मेदार लोगों को अपने गुनाह छिपाने की पूरी छूट मिल जाए। रेवाड़ी के शिक्षा अधिकारी महोदय की कार्यप्रणाली से इसे महसूस करिए। जिससे यह साफ महसूस होता है की वे मासूमों की मौत से ज्यादा जवाबदेह और जिम्मेदारों को कैसे बचाया जाए को लेकर ज्यादा चिंतित नजर आ रहे है।
रेवाड़ी के जिला शिक्षा अधिकारी महेंद्र सिंह खनगवाल की 13 अप्रैल को बुलाई मीटिंग का नजारा देखिए। शर्म के मारे डूब जाएंगे। यह मीटिंग महेंद्रगढ़ जिले के कनीना क्षेत्र में शराबी चालक की वजह से पलटी स्कूली बस हादसे में मारे गए 6 मासूमों की घटना को लेकर बुलाई गई थी। मीटिंग में प्राइवेट स्कूलों में बच्चो की सुरक्षा को लेकर बनी यातायात पॉलिसी एवं अन्य तरह की खामियों को लेकर यह पता करना था की कई सालों से चलते आ रहे इन नियमों का कितने प्राइवेट स्कलों ने ईमानदारी से नियमों से पालन किया। शिक्षा अधिकारी की हैसियत देखिए। स्कूल संचालकों ने मीटिंग में अपने स्कूल के क्लर्कों भेज दिया। डीईओ को यह अपने स्टेटस के खिलाफ लगा। उन्होंने उन्हें वापस भेज दिया। उसके बाद कुछ प्राइवेट स्कूल संचालक और प्राचार्य आए जब जाकर डीईओ साहब संतुष्ट हुए। इसके बाद हादसे में मारे गए मासूमों को याद किया। दो मिनट के मौन में इन शिक्षकों और अधिकारियों ने मासूमों के दर्द को कितनी गहराई से महसूस किया होगा इसका अहसास मौन धारण के तुरंत बाद महसूस हो गया जब प्राइवेट स्कूल संचालकों से कहा गया की उन्हें एक शपथ पत्र दिया जाएगा। जिसमें उन्हें बच्चो की सुरक्षा को लेकर किए गए इंतेजाम का ब्यौरा व अन्य जानकारी देनी होगी । शिक्षा विभाग दो तीन दिन में यह शपथ पत्र स्कूलों में पहुंचा देगा। उसे भरने के लिए स्कूल संचालकों को 10 दिन की छूट मिलेगी। आपसी मेलजोल अच्छा रहा तो छूट की सीमा आगे बढ़ सकती है। यहा बता दे की आमतौर पर शिक्षा अधिकारी अपनी डयूटी के समय कम रिटायरमेंट के बाद एक माह से अधिक समय तक चलने वाले अपने सम्मान समारोह में आने वाले उपहारों एवं मिलने वाले बेशुमार प्यार की वजह से ज्यादा चर्चा में रहते हैं।
बच्चे शिक्षा अधिकारियों के हित पूरा नहीं कर सकते
यहां बता दे यह अभी तक का शिक्षा विभाग के अधिकारियों का शानदार रिकार्ड रहा है की उनकी डयूटी प्राइवेट स्कूलों के हितों की चिंता करने में ज्यादा रही है। बच्चे एवं उनके माता पिता उनकी प्राथमिकता इसलिए नही है की वे अधिकारियों की जरूरतों को पूरा कर सके। सोचिए बच्चो की सुरक्षा को लेकर बने नियम कैसे कारगार साबित हो सकते हैं जब सरकार ही इस विभाग के माध्यम से अपनी पार्टी की रैलियों में इनकी बसों का जमकर इस्तेमाल करती है। ऐसे में अधिकारी बहती गंगा में हाथ क्यों नहीं धोएंगे।
मीडिया की हैसियत विज्ञापन का टुकडा
शो कॉल्ड स्ट्रीमिंग मीडिया इसलिए चुप रहता है कि उनके लिए स्कूल संचालक सबसे बडे विज्ञापनदाता होते हैं। जब भी किसी स्कूल का कारनामा इधर उधर से सामने आता है वह झट मुंह बंद करने के लिए विज्ञापन का टुकड़ा फेंक उनका मूंह बंद करवा देता है। यकीन ना हो तो प्रकाशित विज्ञापनों में छिपे असल सच को जान लो। विज्ञापन की राशि भी बच्चो के फीस से ही वसूली जाती है।
डीईओ खनगवाल जी जनता इन पांच सवालों का जवाब मांग रही है
- क्या सोचकर आपने प्राइवेट स्कलों को 10 दिन की छूट दी
- बच्चो की सुरक्षा पॉलिसी जब से लागू हुई अभी तक क्या कार्रवाई हुई
- क्या हादसे बताकर आते हैं
- क्या आप शपथ पत्र देंगे की आगामी 10 दिनों में कोई घटना नहीं होगी
- आप खुद ही कह रहे है की रेवाड़ी में 38 से ज्यादा स्कूल गैर मान्यता चल रहे हैं, नोटिस देकर ही खानापूर्ति पूरी कर दी, कार्रवाई क्यों नही की
- आपकी मीटिंग में स्कूल मुखिया नहीं आते क्या उनकी नजरों में इस पद की इतनी ही हैसियत रह गई है
- इस पद पर रहते हुए कोई भी शिक्षा अधिकारी अपने लंबे कार्यकाल के दौरान एक कार्य ऐसा बताए जिस पर वह गर्व महसूस करता हो।
- खनगवाल जी इस हिसाब से घटना के जिम्मेदार शराबी बस चालक को भी छूट दिलाइए