– अब इस मामले की जांच एडीसी कार्यालय ने शुरू की
रणघोष खास. रेवाड़ी
शहर की नामी शिक्षण संस्था शिशु शाला स्कूल को बंद कर उसकी करोड़ों की जमीन को इधर उधर करने के खेल में अभी भी कई राज छिपे हुए हैं। अधिकारियों की माने तो अभी तक यह सामने नहीं आ रहा है कि स्कूल बचाने वाले व बेचने वालों में असली नायक व खलनायक कौन है। जिन्हें स्कूल को चलाने की जिम्मेदारी मिली हुई थी उसमें अधिकांश चुपचाप बैठकर नजारा देख रहे हैं। जिन अधिकारियों पर भरोसा किया जा रहा है वे कितने ईमानदार है वह लगातार बदल रही जांच रिपोर्ट से सामने आ रहा है। सबसे बड़ी बात जो लड़ाई लड़ रहे हैं वह कितने ईमानदार है और भविष्य में रहेंगे यह चुनौती भरा सवाल है। वजह अभी तक जितनी भी जांच चल रही है उसमें कुछ सवाल ऐसे भी है जो लड़ाई लड़ने वालों पर ही खड़े हो रहे हैं। मसलन जिस तहसीलदार ने स्कूल की जमीन की रजिस्ट्री या वसीयत को रजिस्टर्ड किया उसके खिलाफ मोर्चा क्यों नहीं खोला गया। इतना ही नहीं जब जमीन स्कूल को चलाने वाली प्रबंधन समिति के नाम पर नहीं है तो समिति के कुछ सदस्य किस आधार पर जमीन को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं यह समझ से परे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं की स्कूल बचाने वाले नायक की तरह नजर आ रहे हैं तो उनके साथ आमजन, सामाजिक कार्यकर्ताओं व प्रबुद्ध वर्ग का समर्थन, नेताओं की सक्रियता खुलकर सामने क्यों नहीं आ रही। हालांकि इस मामले की जांच अब एडीसी की टीम ने शुरू कर दी है लेकिन अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि यह लड़ाई सही दिशा में लड़ी जा रही है या फिर इसके पीछे भी कोई बड़ा खेल नजर आ रहा है जो समिति के अधिकांश सदस्यों की खामोशी से साफ नजर आता है।
इसमें कोई दो राय नहीं की तहसील में जमीन से जुड़े काम ईमानदारी से होते हैं। यह कहना- सोचना ओर भरोसा करना ठीक उसी तरह है जिस तरह भूखे शेर से यह उम्मीद की जाए कि वह गिड़गिड़ाने पर रहम कर शिकार को छोड़ देगा। अभी तक की रिपोर्ट के अनुसार शिशुशाला स्कूल की जमीन को 2017 में कुछ प्रोपर्टी डीलरों ने उस समय की प्राचार्य से मिलकर निजी व्यक्ति के नाम वसीयत को आधार बनाकर ट्रांसफर कर दिया था। जिस तहसीलदार ने इस कार्रवाई को अंजाम दिया वह अब सरकार की तरफ से कराई जा रही जांच में भी फंसे हुए हैं। इस पूरे खेल में जिला फर्म एवं रजिस्ट्रार का एक कर्मचारी समेत इस स्कूल की प्रबंधक समिति के कुछ सदस्य भी बहती गंगा में अपना हाथ धो चुके है। इसलिए इनकी जांच रिपोर्ट पर सवाल खड़े होते रहे हैं। बताया जा रहा है कि इस जमीन की खरीद फरोख्त करते समय इकारनामा के नाम पर 3 करोड़ की राशि को काम के अंजाम तक पहुंचाने के इरादे से बांटा गया था लेकिन कुछ लोगों की ईमानदार सोच के चलते यह शिक्षण संस्था डीलरों का शिकार होने से बच गईं। वे कितने समय तक संघर्ष करते रहेंगे यह देखने वाली बात होगी। अभी इसका मामला कोर्ट में चल रहा है और संस्थान को चलाने के लिए जिला प्रशासन ने प्रशासक नियुक्त किया हुआ है। 14 मार्च 2017 सुनंदा दत्ता एवं अन्य ने स्कूल की जमीन को लेकर डीड को रजिस्टर्ड कराया गया है। यहां बता दें कि यह स्कूल मॉडल टाउन में सबसे महंगी जमीन वाला जमीन पर बना हुआ है जिस पर कई भूमाफियों की नजर थी। इस स्कूल को दत्ता बहनें चलाती आ रही थी जिसमें शहर की नामी हस्ती कहलाए जाने वाले 32 से ज्यादा लोग सदस्य के तौर पर सहयोग करते आ रहे थे। पिछले कुछ सालों से स्कूल को बेचने की योजनाएं बनती चली गईं। समिति सदस्यों में कुछ का ईमान भी बिक गया जैसा उनकी खामोशी व बयानों से साफ नजर आ रहा है। इस स्कूल को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे सदस्यों का कहना है कि यह बहुत बड़ा जमीन का स्कैंडल है। किसी बड़ी जांच एजेंसी से जांच कराई जाए तो बड़े असरदार लोग भी बेनकाब हो जाएंगे।