सुपर-100 प्रोजेक्ट ने सरकार को किसी लायक नहीं छोड़ा, अब बच्चे बता रहे असलियत

 रणघोष खास. सुभाष चौधरी


गुरुवार को गांव देवलावास में राज्य सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट सुपर-100 को चला रही विकल्प एनजीओ शिक्षा की उन तमाम मर्यादाओं को खंडित करने का दुस्साहस कर रही है जिसमें शिक्षा उनके लिए बाजार के अलावा कुछ नहीं है। राज्य के दूर दराज क्षेत्रो से आए अभिभावकों को अपने बच्चों से मिलने के लिए पुलिस का सहारा लेना पड़ रहा है। इस संस्था के कथित पदाधिकारी पढ़ाई के नाम पर बच्चों को उनसे मिलने नहीं दे रहे हैं। पता चलते ही समाज के लोग शिक्षा विभाग पहंचे। इसके बाद पुलिस में शिकायत दर्ज कराई तब जाकर बच्चे अपने माता पिता से मिले। इतना ही नहीं तीन दिन पहले कुछ बच्चे हास्टल में परेशान होकर भाग गए थे। उन्होंने भी पूर्व  विधायक रणधीर सिंह कापड़ीवास की मौजूदगी में जो खुलासा किया वह हैरान करने वाला था।

आखिर यह क्या हो रहा है। राज्य सरकार ने इस संस्था को लेकर आंखें बंद की हुई है कुछ अधिकारियों ने उनकी आंखों में धुल झोंक रखी है या फिर इस संस्था के तहत शुरू किए गए प्रोजेक्ट में बरस रही धन वर्षा ने शर्म को शर्मसार किया हुआ है। गुरुवार को इस हास्टल से निकली छात्राओं ने जो बताया वह इस संस्था की वकालत करने वाले अधिकारियों वे नेताओं के मुंह पर जोरदार तमाचा है। ना इस संस्था के पदाधिकारी नीट व आईआईटी के सही रजल्ट को सार्वजनिक नहीं करते, ना बच्चों से उनके माता पिता से आसानी से मिलने नहीं देते। किसी की भी इस संस्था के भवन में जाने की एंट्री नहीं है। भवन मालिकों से लेकर मजदूरों की मजूदरी तक के विवाद पुलिस में पहुंच रहे हैं। ऐसे में इस संस्था से यह उम्मीद करना कि यह सरकारी स्कूलों से आईआईटीएन व डॉक्टर्स पैदा कर रही है। सरासर छलावा के अलावा कुछ नहीं है। कितनी चालाकी से सरकारी स्कूल के प्रतिशाली विद्यार्थियों को अलग अलग टेस्ट के माध्यम से सुपर-100 के लिए चुना जाता है। ऐसे में कोई बताए कि जब विद्यार्थी ही इतना होनहार है तो जाहिर है कि वह सफलता की राह पर चल पड़ा है। जितना रजल्ट देने का यह संस्था दावा कर रही है कुल मिलाकर अब इस संस्था में पढ़ने वाले विद्यार्थियों ने इसकी असलियत से पर्दा हटाना शुरू कर दिया है जिससे बच पाना अब संभव नहीं होगा।  माता-पिता अपने बच्चे के उस स्थान पर पहुंचना चाहते हैं जहां वे सोते है, बैठते है और खाते पीते है। यह उनका हक है। बच्चों की तकलीफ, दर्द के वे बराबर सांझीदार है। वे तभी आए हैं जब बच्चों को परेशानी में देखा होगा। वे अपने बच्चे के रहन सहन को अपनी नजरों से संतुष्ट करना चाहते थे इसलिए आए।  इस संस्था में यह कैसी शिक्षा दी जा रही है जो माता- पिता को अपने बच्चों से मिलने से रोक रही है। ये कैसे गुरु है जो गुस्से में आकर चेतावनी देते हैं कि दो साल बाद पता चलेगा तुम्हारा भविष्य कहां है। यानि बच्चो का भविष्य किस दिशा में जाकर तय होगा यह ऐसे हठधर्मी, बाजारू एवं अपने ज्ञान पर धमंड करने वाले एवं खुद को महामंडित करने वाले तय करेंगे। कमाल है जब अभिभावक अपना दर्द बयां कर रहे थे उस समय जिला शिक्षा अधिकारी से लेकर शिक्षा विभाग के कर्मचारी खुद को असहाय महसूस कर रहे थे। दरअसल इनकी कोई गलती नहीं है ये वेतनभोगी शिक्षक है। इनके अंदर का इंसान उतना ही हिलोरे मारता है जितना इनकी नौकरी पर आंच तक नहीं आए। वह शिक्षा हरगिज नहीं हो सकती जो बेहतर इंसान होने का अहसास नहीं कराए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *