सैनिक स्कूल के नाम पर सीधी सपाट बात

बेहतर शिक्षा का टेंडर जारी करने वालो किन्नरों से सीख लो


बच्चो को बाजारू माल बनाकर उनके भविष्य मत बेचो


-किन्नर समाज का वो चेहरा है जो अपने असल स्वरूप पर गर्व करता हुआ लोगो के बीच में डंके की चोट पर खुद पर  इतराता है


रणघोष अपडेट. रेवाड़ी. देशभर से सुभाष चौधरी 

पिछले कुछ दिनों से एक तरफ निजी स्कूल व अपनी मनमर्जी से इधर उधर खुले कोचिंग सेंटर एवं एकेडमी सैनिक स्कूल लिखित परीक्षा में क्वालीफाई बच्चो की प्रदर्शनी लगाकर उन्हें बेचने के लिए सभी हदों को पार कर रहे हैँ वही दूसरी तरफ रेवाड़ी के सैनिक स्कूल प्रबंधन में जो घटनाए हो रही हैं वह बेहद शर्मसार करने वाली है। इस पूरे खेल में अगर कोई  हर पल मर रहा है वह बच्चे और उनके अंधे माता पिता जो सबकुछ जानते और समझते हुए अपने स्वार्थ के लिए बच्चो को बेहतर इंसान बनाने की बजाय उसे पैकेज वाला प्रोडेक्ट बनाने के लिए शिक्षा की इस बाजारू दलदल में धकेल रहे हैं।

एनएच-11 पर गांव गोठड़ा स्थित सैनिक स्कूल में पिछले कुछ दिनों से जो घटनाए हो रही हैं। वो जोर जोर से चिल्ला रही है कि जिसे आप राष्ट्रीय स्तर का अनुशासित, बेहतर भविष्य, गौरव- गर्व करने वाला शिक्षण संस्थान मानकर इतराते हैँ वहां कार्यरत कुछ शिक्षकों एवं अधिकारियों में बेहतर इंसान और गुरु की गरिमा खंडित हो चुकी है। उनके शरीर पर चोला दिखाने के नाम पर अच्छा खासा वेतन और समाज के सामने सोशल एवं नेशनल स्टेटस वाला रह गया है। सोचिए इस सैनिक स्कूल में वहीं बच्चे पहुंचते हैं जो लाखों में चुनिंदा होते हैं। इन बच्चो के चयन होने पर प्राइवेट स्कूल, कोचिंग सेंटर एवं एकेडमी कई सालों उनके नाम को तब तक भुनाती है जब तक ज्यादा से ज्यादा बच्चो के दाखिला करने की उनकी हवस पूरी ना हो जाए।  इतना ही नहीं शातिर तरीके से सैनिक स्कूल लिखित परीक्षा में क्वालीफाई हुए बच्चो को माला पहनाकर खुली गाड़ी में प्रदर्शनी के तौर पर गांव गांव एवं आस पास क्षेत्रों में घुमाने की फूहड़ संस्कृति का सार्वजनिक प्रदर्शन आम हो गया है।  सोचिए जब कुछ दिनों बाद इन्हीं बच्चों का मैरिट आधार पर चयन नहीं होता है उनकी मानसिक  स्थिति पर क्या गुजरेगी। इसके लिए इन बच्चो के माता पिता पूरी तरह से जिम्मेदार है जो खुद की सस्ती लोकप्रियता, कच्चे लालच एवं अपने स्वार्थ में अपने बच्चों के भविष्य को  बेहतर शिक्षा का टेंडर जारी करने वाली इन शिक्षण संस्थानों को गिरवी रख देते हैँ। माता पिता भूल जाते हैं ये वो शिक्षण संस्थाए है जो फीस नहीं देने पर उनके बच्चो को निकालने में एक पल की देरी नहीं करती। बेहतर शिक्षा और भविष्य का सब्जबाग दिखाकर उन्हें अपने जाल में फंसा लेती है। अगर हमारा यह दावा झूठा है तो ये शिक्षण संस्थाए कुछ दिन बाद सैनिक स्कूल में चयनित होने वाले बच्चो की सूची भी जारी करे और उनका जुलूस भी इसी तरह से निकाले जो लिखित परीक्षा के आधार पर निकाला था। हैरान हो जाएंगे अकेले रेवाड़ी सैनिक स्कूल में जिले भर से हर साल 10 बच्चो का भी चयन नहीं होता है जबकि लिखित परीक्षा के नाम पर क्वालीफाई होने वाले बच्चो की संख्या एक स्कूल से कम से कम 20 से शुरू होकर  200 तक हजारों  में पहुंच जाती है।

कम से कम किन्नरों से ही प्रेरणा ले शिक्षण संचालक

समाज में किन्नर को समाज अलग अलग नजरों से देखा जाता है। किन्नर परिवार में खुशी के अवसर पर ढोल नगाडो के साथ पहुंचते हैं। ढेर सारा आशीर्वाद देते हैं और बेहतर भविष्य की कामना करते हैं। किन्नर की इस कार्यप्रणाली में कोई मिलावट नहीं होती। वे जैसे हैं उसी पर गर्व करते हुए अपनी बात रखते हैं। नाराज भी होते हैं तो सार्वजनिक प्रदर्शन करते हैं और खुश होने पर भी उनका वहीं  अंदाज रहता है। वे अपने पेशे में कोई चालाकी या मक्कारी नहीं दिखाते। यही वजह है की पिछले दिनो शहर के सती कालोनी निवासी शमशेर सिंह ने पोता होने की खुशी में आए किन्नरों को अपना 100 गज का प्लाट देकर उनकी गरिमा को गर्व से भर दिया। इस परिवार का यह सम्मान बताता है की आर्थिक तौर पर मजबूत होने से इंसान बड़ा नहीं होता उसके लिए बेहतर इंसान होना भी जरूरी है।