स्मृति शेष.. समाजसेवी- उद्योगपति पूर्णचंद भट्‌टेवाला

दिलों दिमाग से सबसे जवान 79 साल के इस शख्स को भूलाना आसान नही होगा..


-बच्चों के साथ बच्चा, जवान के साथ जवान बने रहने के अंदाज ने लाला पूर्णचंद को कभी उम्र दराज नहीं होने दिया। 


रणघोष अपडेट. रेवाड़ी


 शहर की नामी शिक्षण संस्थान पब्लिक एजुकेशन बोर्ड के तहत आने वाली शिक्षण संस्थाओं में विभिन्न पदों पर रहकर अपनी सेवाएं देने वाले 79 वर्षीय समाजसेवी- उद्योगपति पूर्णचंद भट्‌टेवाला का मुस्कराता चेहरा अब नजर नही आएगा। लेकिन  36 बिरादरी  विशेष तौर से वैश्य समाज में जब भी किसी शख्सियत पर बहस होगी यह चेहरा अपनी अलग मजबूत मौजूदगी अहसास करा देगा। अपने दिलो- दिमाग से फैसले लेकर सामाजिक- राजनीति के मैदान में कूदते रहे पूर्णचंद भट्‌टेवाला खुद को बुजुर्ग कहलाए जाना पंसद नहीं करते थे। इसलिए अक्सर सुपारी सुट में अपने छोटे से कद के साथ, आंखों पर शानदार चश्मा लगाकर शहर में स्कूटी पर घूमते इधर उधर बतियाते उन्हें कभी भी देखा जा सकता था। उनकी उम्र से 10-15 साल छोटी उम्र वाले भी उनके अंदाज के सामने बुजुर्ग नजर आते थे। यह शख्स अपनी कार्यप्रणाली से जितनी चर्चा बटोरता उतना ही विवादों को भी सहज भाव से लेता था। किसी भी तरह की चुनौती में रजल्ट क्या होंगे इसकी परवाह कभी नहीं की। इसलिए अलग अलग चुनाव में हार के साथ भी उतना इंजवाय किया जितनी जीत पर महसूस किया जाता है। चाहे नगर परिषद चुनाव में पार्षद लड़ने की बात हो, नई अनाज मंडी व्यापार मंडल में प्रधान को लेकर उतरना हो। लाला पूर्णचंद खुद पर भरोसा करते हुए मैदान में उतर जाते थे। उनके विरोधी हैरान थे कि इस शख्स में लड़ने की ऊर्जा कहां से आती है। चुनाव में उनसे आधी उम्र के उम्मीदवार भी भट्‌टेवाला को देखकर असहज हो जाते थे। कुछ माह पहले पब्लिक एजुकेशन बोर्ड में तमाम विरोध के बावजूद प्रधान पद के लिए खड़े होना पूर्णचंद भट्‌टेवाला को भीड़ से अलग खड़ा करती रही है। अपने जीवन काल में विवादों से भी दोस्ती रखी तो लोकप्रियता को भी सहजकर रखा। बच्चों के साथ बच्चा, जवान के साथ जवान बने रहने के अंदाज ने लाला पूर्णचंद को कभी उम्र दराज नहीं होने दिया।  

  2003 में पत्नी ने साथ छोड़ दिया, खुद को कमजोर नहीं होने दिया


2003 में पत्नी कलावती देवी साथ छोड़कर चली गई तो दो बेटे चार बेटियों की जिम्मेदारी पूरी उनके कंधों पर आ गईं। हालांकि उस समय सभी बच्चो की शादियां हो गई थी। उसके बावजूद व्यवसाय के साथ साथ समाज के सभी वर्ग के सामाजिक कार्यों में उनकी मौजूदगी यह बताती रही की इंसान हालातों व उम्र से बुजुर्ग नहीं होता, सोच में दृढ़ता व निडरता उसे हमेशा जवान रखती है।

 राजनीति- सामाजिक रंगों में खुद  को रंगते रहे


2004 से पहले चौटाला सरकार में लाला पूर्णचंद भट्‌टेवाला नगर सुधार मंडल के चेयरमैन रहे। भारत विकास परिषद पर कई सालों तक प्रधान रहते हुए सामाजिक कार्यों की अलख को जलाए रखा। शहर में असरदार के सामने आमजन बनकर मैदान में उतरना पूर्णचंद भट्‌टेवाला की खास शैली रही है। इसलिए नगर परिषद चुनाव में अचानक कूद पड़े। इसी तरह नई अनाज मंडी व्यापार मंडल के चुनाव में एक दिन पहले ही नामाकंन भरकर सभी को हैरान कर दिया। पीईबी, आरडीएस गर्ल्स कॉलेज प्रबंधन समिति चेयरमैन पद को बखूबी निभाया तो चुनौतियों के सामने भी झुकना पंसद नहीं किया। वर्तमान में उनके बेटे मुकेश भट्‌टेवाला अपने पिता की सामाजिक- राजनीति विरासत को आगे बढ़ाते हुए आरडीएस गर्ल्स कॉलेज समिति के अध्यक्ष है। पलवल से विधायक दीपक मंगला उनके दूसरे बेटे राजेश के सगे साले हैं।   

  

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