रणघोष खास. प्रदीप नारायण
महान स्वतंत्रता सेनानी महामना पंडित मदन मोहन मालवीय व पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न श्री अटल बिहारी बिहारी वाजपेयी की जयंति शनिवार को सुशासन दिवस के तौर पर मनाईं गईं। सुशासन दिवस मनाने की जरूरत आमजन का सरकार एवं प्रशासन के प्रति कम होते भरोसे को नए सिरे से मजबूत करना है। इस हिसाब से आने वाले दिनों में ईमानदारी दिवस, कर्तव्यनिष्ठा दिवस, चरित्रवान दिवस, सच बोलना दिवस, बड़े बुजुर्गों का सम्मान दिवस, मरीज का डॉक्टर्स, शिष्य का गुरु के प्रति विश्वास दिवस, बेहतर इंसान बनना दिवस, संस्कार दिवस, भारतीय होना दिवस, आज्ञाकारी दिवस, अपराध मुक्त दिवस, भ्रष्टाचार मुक्त दिवस, समय पर कार्य करना दिवस, एक दूसरे का सम्मान करना दिवस मनाना भी जरूरी हो जाएगा। जिस दिन साल के 365 दिनों में 365 दिवस मनाने का लक्ष्य पूरा हो जाएगा उस दिन गर्व के साथ कह पाएंगे हमारा देश महान है। अटल जी को याद कर सुशासन दिवस मनाने की जरूरत इसलिए पड़ी महाभारत बने सिस्टम में दु:शासन की तादाद बेहिसाब हो चुकी है। इसलिए विकास के नाम पर चला एक रुपया दु:शासन के हाथों में खेलता हुआ जमीन पर 10 पैसे के तौर पर ही नजर आता है। ऐसा नहीं है कि दु:शासन अदृश्य ताकत है। वह साफतौर से नजर आता है। डयूटी के नाम पर फाइलों को इधर उधर करना, जानबूझकर कमी निकलना, बेवजह परेशान कर घूस लेना यही दु:शासन का असली चरित्र है। जनता बेचारी द्रोपदी की तरह इन दु:शासन के हाथों चीरहरण होती रहती है। जब हद पार हो जाती है ओर उसकी चीख सुनकर भगवान कृष्ण की तरह कोई एकाध जिम्मेदार नेता, अधिकारी उसकी लज्जा की लाज रख लेता है। चूंकि सिस्टम में दु:शासन की संख्या बहुत ज्यादा है लिहाजा कृष्ण बने अधिकारी- नेता एक समय बाद या तो गायब हो जाते हैं या फिर दुशासन की टोली में शामिल होकर द्रोपदी चीरहण के हिस्सेदार बन जाते हैं। हालात यह बन चुके हैं कि द्रोपदी ने अब चिल्लाना एवं गुहार लगाना छोड़ दिया है। उसे अब आदत हो गई है। तकलीफ उस समय ज्यादा बढ़ जाती है जब सुशासन दिवस पर सिस्टम के दु:शासन भगवान कृष्ण का रूप बनाकर द्रोपदी के आस पास नजर आते हैं। द्रोपदी यह देखकर खुद से संतुष्ट हो जाती है कि चलो इसी बहाने 365 दिनों में एक दिन तो कम से कम उसकी लाज बच गईं। सोचिए जिस दिन हमारे सिस्टम में दु:शासनों की तादाद कम हो जाएगी उस दिन सुशासन दिवस मनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। यह दिन हमें अहसास कराता है कि हम किस दौर में जी रहे हैं।