हरियाणा भाजपा में यह रिश्ता कुछ कहता है..

 गांव के रिश्ते में यह सीएम मनोहरलाल के भांजे लगते है, नाम अशोक तंवर


 रणघोष खास. प्रदीप हरीश नारायण

हरियाणा की राजनीति में अशोक तंवर ऐसा चेहरा बन चुके हैं जिसकी भाजपा में एंट्री बतौर मुख्यमंत्री मनोहरलाल खटटर भांजे के तौर पर हुई हैं। मामा- भांजा का रिश्ता हिंदू परिवारों की परपंरा में बेहद ही मजबूत ओर भरोसे वाला रहा है। इसलिए सीएम मनोहर लाल जितने गर्व से अशोक तंवर को अपना भांजा बताते हुए अपने भाषण की शुरूआत करते हैं। उतनी ही अदब से अशोक तंवर सीएम को अपना मामा कहते हुए सम्मान में झुकते चले जाते हैं।

 रविवार को पंचकूला के भाजपा मुख्यालय में अशोक तंवर ने अपने हजारों साथियों को भाजपा में शामिल कराया तो मंच पर सीएम मनोहरलाल ने अपने भांजे के सम्मान में  गंगा बहा दी। प्रदेश अध्यक्ष नायब सैनी भी पीछे नहीं रहे। वे सीएम आने से पहले अशोक तंवर के एक एक साथियों के पास खुद चलकर पहुंचे। तंवर परिचय कराते रहे सैनी पटका पहनाकर, गले लगाकर उन्हें भाजपा में शामिल करते रहे। ऐसा कहीं महसूस नहीं होने दिया कि इस आयोजन में कोई छोटा बड़ा है। सीएम जब तक आते नायब सैनी के सादगी भरे अंदाज ने अपना काम कर दिया था। इस आयोजन से एक दिन पहले भाजपा मुख्यालय का प्रबंधन अशोक तंवर की तरफ से आने वाले साथियों की संख्या को महज 200 से 300 मानकर चल रहा था। उसी हिसाब से कुर्सियां लगाई गईं। अशोक टीम के सदस्यों ने कहा कि तादाद ज्यादा होगी तो उन्होंने कहा कि हमारा रोज का काम है। जितना बोलते हैं उससे कम ही आते हैं। अगर संख्या बढ़ी तो पीछे से कुर्सियां लगनी शुरू हो जाएगी।  रविवार सुबह 10.30 बजे प्रदेश अध्यक्ष नायब सैनी मुख्यालय में पहुंचे तो महज 30-40 लोग पहुंचे थे। ऐसा लग रहा था कि कुर्सियां ही नहीं भर पाएगी। महज दो घंटे बात तस्वीर ही बदल गईं। मंच के सामने हजार से ज्यादा कुर्सियां भर गई तो प्रथम तल पर बने मंच पर तंवर के साथियों को भेजना पड़ा। सीएम मनोहरलाल ने जब कदम रखा तो यह मुख्यालय भीड़ में पूरी तरह बदल गया। सीएम जिस अंदाज में दिखे उससे साफ जाहिर हो रहा था कि उनके फैसलों में अब समझदारी इतरा रही है। सीएम के भाषण ने यह भी बता दिया कि भाजपा आने वाले दिनों में अशोक तंवर का भरपूर उपयोग दिल्ली व चंडीगढ़ को मजबूत करने के लिए करने जा रही है। इसका खाका भी लगभग तैयार हो चुका है। इसमें भी कोई दो राय नहीं सीएम इस नेता का रोडमैप पहले ही बना चुके हैं इसलिए आने वाले कुछ दिनों में अशोक तंवर को संगठन या सरकार में बड़ी जिम्मेदारी मिल जाए तो बड़ी बात नहीं होगी। कुल मिलाकर अशोक तंवर को ऐसे घर की तलाश थी जिसमें वह अपने साथियों  को सुरक्षित कर सके ओर भाजपा की ऐसी जमीन की तलाश थी जिस पर वह चाहते हुए भी खेती नहीं कर पा रही थी।  मामा- भांजे की यह जोड़ी आने वाले चुनाव में कितना असर दिखाती है यह देखने वाली बात होगी।

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