क्या कोरोना तांडव को अगले सौ दिनों में रोका जा सकता है?

रणघोष खास. सिद्धार्थ शर्मा


कोरोना वायरस की मारक दूसरी लहर झेलने के बाद आज भारत के लोग तीसरी लहर की उल्टी गिनती कर रहे हैं। ये तीसरी लहर कब और कितनी बड़ी आएगी, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम वायरस-वैक्सीन-व्यवस्था के त्रिकोण को कितने अच्छे से समझ पाते हैं।

वायरस की समझ

कोरोना वायरस दूसरे अन्य विषाणुओं की भाँति हर नए शरीर को संक्रमित करने पर रूपांतरित होता ही है। इसीलिए नहीं कि वायरस बुद्धिमान है, पर इसलिए कि यही प्रकृति का नियम है। अधिकाँश रूपांतरण या वैरिएंट निरुपद्रवी होते हैं, तो कुछेक रूपांतरण उपद्रवी भी। 2019 के चीन के वुहान का यह वायरस पिछले 18 महीनों में आल्फा, बीटा, एप्सिलोन, गामा, कप्पा होते हुए आज डेल्टा और डेल्टा प्लस तक रूपांतरित हो गया है जो वुहान के प्रारंभिक प्रारूप से अधिक संक्रामक भी है और संभवतः शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता को छकाने वाला भी।इन सबके बावजूद आरएनए वायरसों की अन्य श्रेणियों का इतिहास देखने से पता चलता है कि किसी भी वायरस के दीर्घजीवी होने की सबसे अच्छी स्थिति तब आती है जब वह संक्रमण तो बेतहाशा करे, पर मेजबान के लिए मारक न हो। क्योंकि मारक बनने पर मृत मेजबान के शरीर के साथ-साथ वायरस भी नष्ट हो जाता है, और नष्ट होना खुद वायरस के आगे के संक्रमण के लिए घाटे का सौदा साबित होता है। पूर्व के महामारी कारक वायरस -जैसे हेपेटाइटिस, हैजा, चेचक, रूबेला आदि में यह देखा गया है कि शुरुआत में अत्यधिक मारक होते हुए भी महामारी के बढ़ते चरणों में वायरस की संक्रमण क्षमता बढ़ती गई पर उसकी मारक क्षमता घटती चली गई। रोग प्रतिरोधक क्षमता को छकाने में भी वायरस को अधिक लाभ नहीं होता क्योंकि उससे लड़ने में शक्ति व्यय करने से पहले ही वायरस दूसरे शरीर को संक्रमित कर अपनी नस्ल आगे बढ़ा लेता है। कोरोना वायरस ने भी महामारी का रूप इसीलिए लिया क्योंकि अस्सी फ़ीसदी लोगों में यह संक्रमण बिना लक्षणों के गुजर भी जाता है और संक्रमित व्यक्ति को कोई दिक्कत नहीं आती, भले उस व्यक्ति से संक्रमित होकर दूसरे कई व्यक्ति बीमार पड़ जाएँ।तो लब्बोलुआब यह निकलता है कि किसी भी विषाणु के नए-नए रूप धारण करने की सीमा के चलते कोरोना के नए-नए रूप आने की गति अब धीमी होने की संभावना अधिक है। आने वाले समय में अधिक बलवती संभावना यह बनती है कि कोरोना सामान्य सर्दी-जुकाम-बुखार का कारक बननेवाला सामान्य से संक्रमण के रूप में मनुष्यों के साथ सदा के लिए रहने लगेगा।

वैक्सीन की समझ

दुनियाभर की किसी भी चिकित्सा पद्धति ने आज तक किसी भी वायरस से स्थाई निदान की कोई औषधि का आविष्कार नहीं किया है। कारण है कि वायरस कोई जीवाणु न होकर विषाणु होता है जो शरीर की कोशिकाओं में घुसकर उनका ही घातक रूपांतरण करता है। इसीलिए वायरस से लड़ाई हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता ही सर्वोत्तम ढंग से कर पाती है। इसीलिए वैक्सीन में भी वायरस के ही निष्क्रिय रूप को हमारे शरीर में डाल दिया जाता है जिससे कि हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता डाले गए निष्क्रिय वायरस को सक्रिय ख़तरा मानकर उससे लड़ने के लिए नए रोग निरोधक तत्वों का निर्माण कर सके। पर चूँकि वैक्सीन समूचे जनसंख्या को दिया जाता है, और समस्त जनसंख्या में हर तरह के लोग होते हैं, तो वैक्सीन की मात्रा पहली खुराक में कम और दूसरी खुराक में पूर्ण दी जाती है ताकि वैक्सीन का कोई बुरा प्रभाव कमजोर या बीमार लोगों पर न पड़े।कोरोना से लड़ने वाली वैक्सीन की पहली खोज वायरस के आने के दो महीनों के भीतर ही मार्च 2020 में हो गई और व्यापक सुरक्षा एवं प्रभावशालिता के प्रयोगों के बाद ग्यारह महीनों के अंदर ही दिसंबर 2020 से जनता में टीकाकरण प्रारम्भ हो गया। मानव इतिहास में यह पहली बार हो रहा है कि किसी महामारी के समूचे विश्व में फैलने से पहले ही उसका टीका लगना प्रारम्भ हो गया हो।कोरोना महामारी में अब यह प्रमाणित हो गया है कि टीकाकरण से संक्रमण भी 50 प्रतिशत घटता है तथा गंभीर बीमारी से 95 प्रतिशत से अधिक सुरक्षा भी मिल जाती है। इजराइल, इंग्लैंड, अमेरिका आदि जैसे देशों ने अपनी दो तिहाई से अधिक जनसंख्या का टीकाकरण भी कर दिया है जिसके चलते वहाँ पर कोरोना का तांडव काफी हद तक घट भी गया है और वहाँ सामान्य सामाजिक जीवन भी तेजी से पुनः बहाल होने लगा है।भारत में दूसरी राक्षसी लहर आने का एक कारण प्रारंभ में धीमा टीकाकरण रहा। जहाँ दूसरे विकसित देश अपनी आबादी से दुगुनी तिगुनी अधिक मात्रा में कई निर्माताओं से वैक्सीन खरीदकर स्टॉकपाइल कर रहे थे वहीं हम आत्मनिर्भर मुग्धता में वैक्सीन के एडवांस ऑर्डर देने में विफल रहे।तो मकर संक्रांति के शुभ मुहूर्त में प्रारंभ हुए टीकाकरण अभियान को 130 करोड़ जनता तक तुरंत पहुँचाने की जो ठोस योजना नहीं बन पाई, उसका दंड कोरोना के डेल्टा प्रारूप ने भारत को दिया। यहाँ पर सनद रहे कि डेल्टा का सर्वप्रथम प्रारूप भारत ने ही अक्टूबर 2020 में ही सीक्वेंस -अर्थात क्रमबद्ध कर लिया था। यदि दुनिया के अन्य विकसित देशों की भांति भारत में भी दिसंबर 2020 से ही युद्धस्तर पर सभी ब्रांड के टीकों का लगना प्रारंभ हो जाता तो दूसरी लहर निश्चित रूप से इतनी मारक नहीं होती।बहरहाल, शनैः शनैः ही सही, अभी जून 2021 के अंत तक पहली खुराक टीकाकरण भारत में औसत 20 प्रतिशत तक पहुँच चुका है। यह शहरों में 50 प्रतिशत तथा ग्रामीण इलाक़ों में 15 प्रतिशत तक पहुँचा है। भारत में निर्मित होने वाली तीन वैक्सीन -कोविशील्ड, कोवैक्सीन तथा स्पुतनिक वी मिलाकर वर्तमान में रोजाना क़रीब 30 लाख खुराकों का निर्माण कर रहे हैं। इसके अलावा सीरम इंस्टीट्यूट के पास नोवावैक्स की 5 करोड़ खुराकें भी तैयार हैं जो भारत सरकार से उपयोग अनुमति के इंतज़ार में हैं। तीसरी लहर से बचने के लिए भारत को अपने समस्त 90 करोड़ वयस्क जनसंख्या को पहली खुराक टीका लगाने के लिए क़रीब सौ दिनों का समय शेष है। यह अभियान तभी सफल हो पाएगा जब भारत रोजाना क़रीब एक करोड़ लोगों का टीकाकरण करने लगेगा।

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