7 वीं के बच्चे को बेहरमी से पीटने की घटना पर रणघोष की सीधी सपाट बात

बच्चे अगर गलत है तो मार स्कूल को पड़नी चाहिए


— संस्कार- मूल्य– अनुशासन बाजार में नहीं मिलते


रणघोष खास. सुभाष चौधरी


गांव लाखनौर स्थित विवेकानंद स्कूल के संचालक सुधीर यादव एडवोकेट के खिलाफ अपने ही स्कूल की कक्षा 7 वीं में पढ़ने वाले छात्र को बेरहमी से पीटने पर मामला दर्ज किया गया है। जैसा सुधीर यादव का कहना है कि इस छात्र ने किसी छात्रा का नाम पूछा था ओर वह उसका पीछा करता था। सुधीर यादव की मनोस्थिति को समझे तो यह छात्र गलत दिशा में जा रहा था उसे सही रास्ते में लाने के लिए लाठी- थप्पड़ मुक्कों का इस्तेमाल जरूरी था ताकि स्कूल में डर के नाम पर अनुशासन बना रहे ओर कोई इस तरह की हिम्मत नहीं दिखा सके। छात्र को बेहरहमी से मारा गया। शरीर पर नजर आ रही चोटें यह बताने के लिए काफी थी। अब सवाल यह उठता है कि क्या किसी छात्रा का नाम पूछना अपराध है। दूसरा अगर वह उसका पीछा करता था तो कायदे से छात्र के माता-पिता को बुलाकर समझाना चाहिए था। छात्र की काउंसलिंग हो सकती थी।  सबसे बड़ी बात क्या 7 वीं में पढ़ने वाले छात्र के दिलों दिमाग में गलत सोच या इरादे का जन्म हो सकता है।

 दरअसल मासूम बच्चों को बेरहमी से मारने की घटनाएं नहीं नई नहीं है। इसके पीछे कई कारण होते हैं जो सीधे तौर पर मनोस्थिति से संबंध रखते हैं। मौजूदा शिक्षा प्रणाली पर गौर करिए। आधे से ज्यादा प्राइवेट स्कूलों के संचालक वे हैं जिन्हें अपना शैक्षणिक रिकार्ड बताते हुए शर्म आती है। वे जुगाड़ करके बीए, एमए एवं पीएचडी की उपाधि हासिल कर अपनी खामियों को छिपा लेते हैं। इसके अलावा स्कूल संचालकों में प्रोपर्टी डीलर्स, शराब के ठेकेदार या अन्य व्यवसायों के व्यापारी भी होते हैं। शिक्षा ऐसा पेशा बन चुका है जिसमें शोहरत के साथ साथ कमाई पर विशेष फोकस रहता है। दूसरे लहजे में कहे तो यह शिक्षा के नाम पर जगह जगह खुले ब्यूटी पार्लर की तरह होते हैं जिसकी चमक में शिक्षा के मूल्य, संस्कार एवं बेहतर इंसान बनाने की संस्कृति पर अलग ही तरह की पालिश कर दी जाती है। बच्चों को एक प्रोडेक्ट की तरह तैयार किया जाता है जिसमें काफी हद तक माता पिता भी जिम्मेदार है। सुधीर यादव एडवोकेट ने अपने स्कूल का नाम महान विचारक, युवाओं के प्रेरणास्त्रोत स्वामी  विवेकानंद के नाम से रखा हुआ है लेकिन इस घटना से स्कूल का चरित्र दूसरा पारिभाषित हो गया। सुधीर कुमार भूल गए कि इस मार से बच्चे की मनोस्थिति पर कितना गहरा असर पड़ा होगा। बेहरमी से पीटने के बाद भी  उनका अपने बचाव के लिए मासूम छात्र के चरित्र को घसीटना एक तरह से कुंठाग्रस्त मानसिकता का प्रमाण है। कायदे से इस घटना के बाद छात्र से ज्यादा सुधीर यादव को मनोचिकित्सक के पास जाकर अपनी रिपोर्ट तैयार करानी चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाएं दुबारा नहीं हो। स्कूल संचालक को नहीं भूलना चाहिए कि बच्चे कच्ची मिटटी की तरह होते हैं जिसे बेहतर स्वरूप देने का जिम्मा स्कूल शिक्षक एवं बेहतर माहौल से तय होता है। अगर यह छात्र मार्ग से भटक भी रहा था इसके लिए स्कूल पूरी तरह से जिम्मेदार है माता-पिता नहीं। स्कूल संचालकों को यह हरगिज नहीं भूलना चाहिए कि 24 घंटे में बच्चे का अधिकांश समय स्कूल प्रांगण के साथ साथ संगति, शिक्षा, अनुशासन एवं  वातावरण में गुजरता है। यह घटना गुरु- शिष्य की गरिमा को कलकिंत करती है जिसके लिए गुरु पूरी तरह से जिम्मेदार है। दुर्भाग्य से स्कूल ना कभी फेल होते हैं और नाहीं ही शिक्षा के गिरते स्तर  के लिए जवाबदेह। सारा दोष चालाकी से बच्चों एवं उनके माता पिता पर थोप दिया जाता है।      

6 thoughts on “7 वीं के बच्चे को बेहरमी से पीटने की घटना पर रणघोष की सीधी सपाट बात

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