राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय बावल की छात्राएं बता रही हैं
अपने माता-पिता के जीवन से जुड़ी संघर्ष की कहानियां
रणघोष खास. बुलबुल की कलम से
मेरा नाम बुलबुल है और 10 वीं की छात्रा हूं। पिताजी का नाम प्रकाश सिंह चौहान ओर माता जी का नाम अनिता देवी है। मेरी मम्मी जब छोटी थी उस समय मेरी नानी की मृत्यु हो गई थी। मेरे नानाजी और मामाजी के होते हुए भी मम्मी अपनी ताई के पास रहती थी। घर का सारा काम मम्मी करती थी। मम्मी का बचपन बहुत ही संघर्ष में बीता। उसे याद नहीं कि उसे कभी बाल अवस्था में एक टॉफी भी मिली हो। मम्मी को सिर में एलर्जी हो गई थी इसलिए उसे बार बार बाल कटवाने पड़ते थे। स्कूल में मम्मी को मैडम से बहुत स्नेह मिला। घर की हालात आर्थिक तौर पर बहुत कमजोर थी। नानाजी इतना ही कमा पाते कि घर में चावल ही बनता था। कई बार तो भूखा भी सोना पड़ा। मम्मी ने कभी किसी खेल में भाग नहीं लिया। समय के साथ मम्मी की शादी हो गईं। उसे ससुराल में भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। हम पांच बहनें हुई जिसमें एक की मृत्यु हो गई थी। पापा और मम्मी 8 वीं तक ही पढ़ पाए थे। पापा मजदूरी करते। किसी तरह घर का गुजारा और हमारी पढ़ाई होती रही। मम्मी अक्सर बीमार रहती है लेकिन हमेशा हमें पढ़ने के लिए कहती रहती है। पापा चिंता में रहते थे। वे धूम्रपान करने लगे जिससे मम्मी ने उनसे बोलना बंद कर दिया। पापा ने अपनी गलती मानी और यह बुरी आदतें छोड़ दी। मेरी मम्मी- पापा का पूरा जीवन संघर्ष में तपता रहा। दैनिक रणघोष की पहल और मेरे प्राचार्य अशोक कुमार के मार्गदर्शन में जीवन में पहली बार अपने माता-पिता के संघर्ष को इतनी करीबी से जानने का अवसर मिला। हमारी आंखें खुल गईं। मेरे माता-पिता महान है। उन्होंने कभी अपनी पीडा को हमें नहीं बताया। अगर माता-पिता के जीवन के संघर्ष की कहानी की यह पहल शुरू नहीं होती तो सच मानिए हम ऐसी दिशा में चल रहे थे जिसकी आगे चलकर कोई दिशा- दशा नहीं थी। उनके जीवन को जानकर लगा कि हमारे असली हीरो और आदर्श तो हमारे माता-पिता है। स्कूल प्रबंधन की इस पहल को मेरा नमन। जिसकी वजह से मुझे जीवन की असल तस्वीर से रूबरू होने का अवसर मिला।