राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय बावल की छात्राएं बता रही हैं
मेरा नाम हिमांशी है। स्कूल में 10 वीं की छात्रा हूं। पिता का नाम सुरेंद्र कुमार एवं माताजी सुमित्रा देवी है। पिताजी एक साल पहले तक किसानी करते थे और मम्मी खेती बाड़ी में उनका सहयोग करती थी। मम्मी के दोनों पैरों में सीढ़ी से फिसलने के कारण गुम चोट आई थी। इसलिए वह ज्यादा दूर पैदल नहीं चल सकती। कुछ साल पहले पिताजी के हाथ- पैर में बहुत जोर से चोट आई थी। इसलिए वे भी ज्यादा काम नहीं कर सकते। दोनो वजन की वस्तु नहीं उठा सकते। पिताजी को खेती में ज्यादा दिक्कतें आई तो उन्होंने एक साल पहले तक उसे छोड़ दिया और ट्रक ड्राइवर बन गए। उन्हें जो वेतन मिलता है उसे ही घर चलता है। पिताजी- माताजी बचपन से लेकर अभी तक जीवन में संघर्ष ही कर रहे हैं। पारिवारिक हालातों के चलते पिताजी 9 वीं तक और मम्मी 8 वीं तक ही स्कूल जा पाईं। हम दो भाई बहन है। पिताजी ने एक साल पहले तक हम दोनों भाई बहन को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाया। हाथ- पैर में चोट लगने के कारण घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने से हमारा सरकारी स्कूल में दाखिला हो गया। यहां आकर लगा कि हमें तो बहुत पहले ही आ जाना चाहिए था। माता-पिता को इतना करीब से जानने का जीवन में ऐसा अवसर मिलेगा। इसका अहसास स्कूल के शिक्षकों ने कराया। सही मायनों में असल शिक्षा का मूल्य अब जाना। इससे पहले तक यह आभास ही नहीं हुआ कि मेरे माता-पिता का जीवन कितनी कठिनाईयों से होकर गुजर रहा है। मुझे सिर्फ इतना कहना है कि हो सके तो इसे संभालकर रखना ये माता-पिता का प्यार है बाजार में नहीं मिलता। रूलाना हर किसी को आता है। हंसाना भी हर किसी को आता है। रूला कर जो मना ले वो पिता है और जो रूला कर खुद भी रो पड़े वो मां है।