माता-पिता के संघर्ष की कहानी की प्रेरणा नहीं मिलती तो आज हम बहुत गंवा चुके थे

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राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय बावल की छात्राएं बता रही हैं


Nehaरणघोष खास. नेहा की कलम से


मेरा नाम नेहा है। स्कूल में 10 वीं की छात्रा हूं। पिता का नाम सत्यनारायण एवं माताजी का नाम शकुंतला देवी है। पारिवारिक जिम्मेदारियों एवं हालातों के चलते मम्मी 8 वीं तक और पिताजी 12 वीं तक स्कूल की पढ़ाई कर पाए। पापा होमगार्ड की नौकरी करते हैं। डयूटी पर उन्हें पूरे समय खड़ा रहना पड़ता है। जब वे घर लौटते हैं तो अपनी थकावट हमारी हंसी और मुस्कान में छिपा लेते हैं। मम्मी घर का सारा काम संभालती है। दोनों ने हमें कभी किसी चीज के लिए मोहताज नहीं होने दिया। पापा घर आने के बाद भी आराम से नही बैठते। वे कुछ ना कुछ ऐसा काम करते रहते हैं जिससे घर में दो पैसे आए और वे अपने बच्चों की बेहतर परवरिश पर खर्च कर सके। जब हमें अपने माता-पिता के जीवन संघर्ष पर लेख लिखने के लिए शिक्षकों ने प्रेरित किया तो जीवन में पहली बार लगा कि हमने समय पर बहुत कुछ खोने से खुद को बचा लिया। अगर यह पहल शुरू नहीं होती तो यकीन मानिए हम आगे पढ़ाई के लिए बाहर जाते और अपने माता-पिता की बचपन से लेकर आज तक के संघर्ष के सफर को समझ नहीं पाते। यह हमारी जिदंगी का वह नुकसान था जिसकी भरपाई आसान नहीं थी। मै धन्यवाद करती हूं अपने शिक्षकों का और दैनिक रणघोष समाचार का।

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