अर्नब मामले में सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी: वैचारिक मतभिन्नता के कारण निशाना बनाना गलत

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारें वैचारिक मतभिन्नता के कारण यदि लोगों को निशाना बनाती हैं, तो उन्हें यह बात मालूम होनी चाहिए कि नागरिकों की आजादी की रक्षा के लिए देश का शीर्ष न्यायालय मौजूद है। वह इसे बर्दाश्त नहीं करेगा। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ कि पीठ ने कहा कि यदि इस तरह से किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित किया जाता है तो यह न्याय का मजाक बनाना होगा। पीठ ने रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी को अंतरिम जमानत देने का आदेश देते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया।

हाईकोर्ट आजादी रक्षा में विफल हो रहे हैं: 
पीठ ने कहा, हम देख रहे हैं कि एक के बाद एक ऐसा मामला आ रहा है, जिसमें हाईकोर्ट जमानत नहीं दे रहे हैं और वे लोगों की स्वतंत्रता, निजी स्वतंत्रता की रक्षा करने में विफल हो रहे हैं। कोर्ट ने राज्य सरकार से जानना चाहा कि क्या गोस्वामी को हिरासत में लेकर पूछताछ की कोई जरूरत थी। यह व्यक्तिगत आजादी से जुड़ा मामला है। भारतीय लोकतंत्र असाधारण तरीके से लचीला है और महाराष्ट्र सरकार को इन सबको (टीवी पर अर्नब के तने और व्यंग्य) नजरअंदाज करना चाहिए।

पसंद नहीं तो चैनल न देंखें :
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, उनकी जो भी विचारधारा हो, कम से कम मैं तो उनका चैनल नहीं देखता। लेकिन, यदि संवैधानिक न्यायालय आज इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा, तो हम निर्विवाद रूप से बर्बादी की ओर बढ़ रहे होंगे। सवाल यह है कि क्या आप इन आरोपों के कारण व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत आजादी से वंचित कर देंगे। आप टेलीविजन चैनल को नापसंद कर सकते हैं।

कोर्ट भी आलोचना भुगतते हैं: 
राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से पीठ ने सवाल किया, क्या धन का भुगतान नहीं करना, आत्महत्या के लिए उकसाना है। यह न्याय का उपहास होगा यदि प्राथमिकी लंबित होने के दौरान जमानत नहीं दी जाती है। उच्च न्यायालय इस तरह के मामलों में कार्यवाही नहीं करेंगे तो व्यक्तिगत स्वतंत्रता पूरी तरह नष्ट हो जायेगी। हम इसे लेकर बहुत ज्यादा चिंतित हैं। हम इस तरह के मामलों में कार्रवाई नहीं करेंगे तो यह बहुत ही परेशानी वाली बात होगी। जस्टिस चंद्रचूड ने कहा कि हमारी भी फैसलों के लिये तीखी आलोचना हो रही है। मैंरे ला क्लर्क कहते हैं कि सर कृपा करके ट्वीट्स मत देखें।

अर्नब के वकील ने क्या दलील दी :
अर्नब के वकील हरीश साल्वे ने कहा, यह सामान्य मामला नहीं था और संवैधानिक न्यायालय होने के नाते बंबई उच्च न्यायालय को इन घटनाओं का संज्ञान लेना चाहिए था। क्या यह ऐसा मामला है जिसमें अर्नब गोस्वामी को खतरनाक अपराधियों के साथ तलोजा जेल में रखा जाए ? मै आग्रह करूंगा कि यह मामला सीबीआई को सौंप दिया जाए और वह दोषी हैं तो उन्हें सजा दीजिए।

राज्य सरकार के वकील ने क्या दलील दी :  
राज्य सरकार की ओर से कपिल वरिष्ठ वकील सिब्बल ने कहा कि ऐसे मामलों में जमानत देने से गलत परंपरा स्थापित होगी। क्योंकि विस्तृत जांच कोर्ट के सामने नहीं है। उन्होंने कहा कि आप इस मामले में जमानत दे रहे हैं जबकि केरल एक मीडिया कर्मी को इलाहाबाद हाईकोर्ट भेज दिया गया था। ये मीडिया कर्मी हाथरस कांड कवर करने जा रहा था। महाराष्ट्र के दूसरे वरिष्ठ अधिवक्ता अमित देसाई ने कहा कि यह ऐसा मामला नहीं है, जिसमें न्यायालय को अंतरिम स्तर पर जमानत देने के लिए अपने असाधारण अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करना चाहिए।

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