क्या बाबा साहेब ने ऐसा कहा था मेरी जयंती पर महामारी छुट्टी पर रहेगी.. कुछ भी करो..
रणघोष खास. सुभाष चौधरी की रिपोर्ट
बुधवार को देश के कोने- कोने में संविधान निर्माता बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर को उनके जन्म दिवस पर याद किया गया। कोरोना काल में बाबा साहेब अपने जन्मदिन के बहाने दो बार याद आए। हमें ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है। आस पास ईमानदारी से नजर दौड़ाइए। एक ऐसी तस्वीर की तलाश करिए जिसमें बाबा साहेब की प्रतिमा के सामने कोरोना वायरस को कंट्रोल करने के लिए जारी गई गाइड लाइन की पूरी तरह से पालना की गई हो। इससे उलट बाबा साहेब के नाम पर इतना बखान किया गया ऐसा लगा मानो बाबा साहेब उनके रगों में दौड़ रहे है। हम भारतीयों का यह दोगला चरित्र क्या सच में संविधान की गरिमा और पवित्रता को सुरक्षित रख पाएगा या ऐसे ही चलता रहेगा। एक तरफ सरकार इस वायरस को लेकर तरह तरह की सख्ती लागू कर रही है। बुधवार को पीएम नरेंद्र मोदी की सहमति लेकर शिक्षा मंत्रालय ने एक ही झटके में 10 वीं की सीबीएसई की परीक्षा को रद्द कर दिया और 12 वीं की परीक्षा को वैनटिलेटर पर छोड़ दिया। दिन रात कड़ी मेहनत कर परीक्षा की तैयारी में जुटे विद्यार्थी हैरान है कि जो शिक्षा उन्हें अभी तक चुनौतियों से सामना करने की हिम्मत नहीं दिला पाई उससे हम आगे चलकर किस अनुशासन और बेहतर भविष्य की उम्मीद कर सकते है। माता-पिता अब पूरी तरह से कुंठा की कढाई में उबल रहे हैं। अपना एक- एक रुपया जुटाकर अपने बच्चों की पढ़ाई और टयूशन पर इसलिए खर्च किया ताकि वे उनके भविष्य में अपना शेष जीवन सुरक्षित कर ले। हमें लगा कि बाबा साहेब की जंयती के बहाने ही सही हम कर्तव्य- अधिकार को जिंदा रख पाएंगे। अफसोस जिन्हें संविधान की सुरक्षा और गरिमा की जिम्मेदारी दी गई वहीं कोरोना के इस माहौल में इस पवित्र ग्रंथ की धज्जियां उड़ाते रहे। अधिकारों की बात आती है तो संविधान को सबसे आगे रखकर सड़कों को जाम कर दिया जाता है। जब कर्तव्य निभाने का समय आता है तो दुम हिलाकर गायब हो जाते हैं। बाबा साहेब को आत्मा से मानने वाले ईमानदारी से बताए कि जब उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया उस समय सभी को अपना कर्तव्य क्यों याद नहीं आया कि हमारी एक कोताही परिवार के साथ साथ समाज को भी परेशानी में डाल सकती है। इससे पहले हरिद्वार में शाही स्नान के नाम पर यह तमाशा पूरा विश्व मजाक के तौर पर देख चुका है। मजाल किसी ने एक्शन लिया हो। महज बाबा साहेब की प्रतिमा के सामने फोटो सेशन कराने और बड़ी बड़ी बातें करने वालों को इस बार कोरोना के बहाने ही सही ईमानदारी से यह जवाब देना ही पड़ेगा कि क्या आत्मा से वे बाबा साहेब को चाहते हैं। अगर चाहते तो उनकी प्रतिमाओं के आस पास जमावड़ा करने की क्या जरूरत थी। क्या यह सोचकर भीड़ जुटाई की बाबा साहेब की जयंती पर कोरोना भी सरकारी छुट्टी पर है। जैसा उत्तारखंड के सीएम कह चुके हैं कि गंगा मैया के सामने कोरोना की क्या मजाल है। हकीकत में यह दिन बाबा साहेब के बहाने खुद को संभलने और संभालने वाला अवसर था जिसे हमने अपनी नादानी और दोगली मानसिकता के चलते गवां दिया। ऐसे में कोरोना से लड़ने के लिए लगाई जा रही वैक्सीन अपना क्या असर दिखाएगी। यह समय बताएगा क्योंकि अभी तक सबकुछ राम भरोसे चल रहा है।