रणघोष खास. समी अहमद
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने अपने ताजा बयान में कहा है कि कोविड के दूसरे दौर में अब तक 244 डॉक्टरों की जान चली गयी है। इसमें सर्वाधिक 78 डाॅक्टर बिहार के हैं। दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश है जहां इस दौरान 37 डॉक्टरों की मौत हुई है। आईएमए बिहार के सचिव डाॅक्टर सुनील कुमार ने सत्य हिन्दी से बातचीत में कहा कि बिहार में यह संख्या 78 से बढ़कर 83 हो गयी है।दूसरी चौंकाने वाली बात यह मालूम हुई कि केन्द्र सरकार और राज्य सरकार ने कोरोना से डॉक्टरों की मौत पर जिस सहायता राशि की घोषणा की है, वह 18 मई तक महज चार डॉक्टरों को मिल पायी है।आईएमए बिहार के सूत्रों के अनुसार कोविड से पहले और दूसरे दौर में अब तक 122 डॉक्टरों की मौत हो चुकी है। मेडिकल बिरादरी का कहना है कि लगभग इतने ही पैरामेडिकल स्टाफ की भी कोरोना से मौत हुई है। बिहार में 10 हजार से अधिक डाॅक्टर आईएमए के सदस्य हैं।
डॉक्टरों के पद रिक्त
डाॅक्टर सुनील कुमार कहते हैं कि बिहार में मेडिकल काॅलेज से लेकर अतिरिक्त स्वास्थ्य केन्द्रों तक पचास प्रतिशत से अधिक डॉक्टरों के पद रिक्त हैं। ऐसे में सरकारी सेवा वाले डॉक्टरों को बिना रुके काम करना पड़ रहा है। उनमें भी काफी डाॅक्टर उम्रदराज हैं जिससे उनके कोविड के शिकार होने का खतरा अधिक रहता है।उन्होंने बताया कि दूसरे राज्यों में 14 दिन की ड्यूटी के बाद डॉक्टरों को आराम के लिए छुट्टी देने की व्यवस्था है जबकि यहां लंबे समय से डाॅक्टर बिना छुट्टी के काम कर रहे हैं। एक डाॅक्टर ने बताया कि पिछले साल डॉक्टरों की छुट्टी कैंसिल करने का जो आदेश जारी हुआ, वह अब तक जारी है। डाॅक्टर किसी तरह एक-दूसरे से मैनेज कर बेहद ज़रूरी काम कर पा रहे हैं।
बचाव के साधन तक नहीं
आईएमए गया के सीनियर सदस्य और पूर्व अध्यक्ष डाॅक्टर फरासत हुसैन कहते हैं कि कोविड से लड़ने में फ्रंटलाइन वर्कर्स की जान तो वैसे ही खतरे में रहती है, लेकिन बिहार में इतनी संख्या में डॉक्टरों की जान जाने की वजह डॉक्टरों के पास ड्यूटी के दौरान बचाव के समुचित साधन का न होना है। उन्होंने दूसरी बड़ी वजह यह बतायी कि इस समय डाॅक्टर निर्धारित समय से अधिक काम कर रहे हैं। कई जगह तो छह घंटे की जगह बारह घंटे की ड्यूटी दे रहे हैं। इससे उनके संक्रमित होने का खतरा बढ़ता है जिसके वे शिकार हुए।