रणघोष खास. प्रदीप नारायण
हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड भिवानी ने शुक्रवार को बिना परीक्षा वाला 10 वीं का परीक्षा परिणाम घोषित कर दिया। हजारों विद्यार्थियों को प्रत्येक विषय में शत प्रतिशत अंकों का तोहफा मिला। यह सरासर धोखा है, शिक्षा के नाम पर छलावा ओर पांखड है। यह कैसे संभव है विद्यार्थी परीक्षा दिए बिना हिंदी, अंग्रेजी, साइंस, संस्कृत समेत अनिवार्य सभी विषयों में 100 में से100 अंक प्राप्त कर ले। माता- पिता से हाथ जोड़कर विनती है कि वे इन नंबरों को देखकर किसी सूरत में खुश नहीं हो। वे खुद को ठगा माने। जो स्कूल या शिक्षक उनके बच्चों को इस उपलब्धि पर बधाई दे उसे अपना और बच्चों का सबसे बड़े शत्रु घोषित कर दें। उनका मोबाइल नंबर तुरंत डिलीट कर दें। वजह वह आपके बच्चे को नंबरों की काल कोठरी में धकेल रहे हैं जहां घोर अंधेरे के अलावा कुछ नहीं है। 100 में से 100 नंबर देने वाले गुरुजनों से डरिए। ये शिक्षा के असली वायरस है। उन्हें ऐसा साबित करने के लिए कहिए। पूछिए ऐसा कौनसा फार्मूला या वैज्ञानिक प्रयोग है जिसने यह साबित कर दिया कि महज तीन घंटे की परीक्षा में या बिना परीक्षा लिए पिछले रिकार्ड के आधार पर कोई भी विद्यार्थी हर विषय में शत प्रतिशत अंक प्राप्त कर ले। हैरान करने वाली बात है। सीबीएसई एवं अलग अलग राज्यों में गठित शिक्षा बोर्ड में बैठे अधिकारी एवं विशेषज्ञों के दिलों दिमाग को क्या हो गया है। उन पर करोड़ों- अरबों रुपए क्या सोचकर खर्च किए जा रहे हैं। उनसे पूछा जाना चाहिए कि वे क्या सोचकर बोर्ड का रजल्ट तैयार करते हैं। वे देश की युवा पीढ़ी के बेहतर भविष्य की चिंता कर रहे हैं या उन्हें जड़ से खत्म करने में तुले हुए हैं। याद करिए बिहार की 2016 की इंटर मीडिएट आर्टस टॉपर रूबी राय को। जिसने बताया कि वह ‘प्रोडिकल साइंस‘ (पॉलिटिकल साइंस) विषय के साथ परीक्षा देकर टॉपर बनी है, जिसमें उसने ‘खाना बनाने की पढ़ाई‘ की है। इसके बाद मीडिया ने साइंस व कॉमर्स के टॉपरों से भी बातचीत की। जांच हुई तो परीक्षा व रिजल्ट घोटाले की परतें उघड़तीं चलीं गईं। रूबी ने बताया कि उसने उत्तर पुस्तिका में 101 फिल्मी गाने लिखे थे। उसने कॉपिया में ‘तुलसीदास प्रणाम‘ भी लिखे थे। बाद में उसकी कॉपियों को किसी और ने लिख दिया था। इसी तरह हर साल परीक्षा के समय प्रश्न पत्रों का लीक होना फैशन बन चुका है। परीक्षा में नंबरों की परपंरा विद्यार्थी की कड़ी मेहनत ओर लगन की आधारशिला होती है जिस पर उसके भविष्य का निर्माण होता है। हो रहा है एकदम उलटा। सोचिए घटिया सामग्री से क्या मजबूत भवन का निर्माण हो सकता है। यह कैसे संभव है गणित विषय अपवाद को छोड़कर अन्य सभी विषयों में हजारों लाखों विद्यार्थी 100 में से 100 नंबर प्राप्त कर ले। इन्हीं नंबरों के आधार पर देश की नामी शिक्षण संस्थानों में मैरिट सूची के आधार इन विद्यार्थियों का चयन होता है। आगे चलकर परीक्षा मे ये टॉपर कहां ठहरते हैं यह बताने की जरूरत नहीं हैं। हर साल खामोशी के साथ हजारों विद्यार्थी क्यों सुसाइड करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। क्या कभी किसी ने इस पर ईमानदारी से मंथन किया है। कोरोना ने हमारी शिक्षा प्रणाली के खोखलेपन को पूरी तरह से उजागर कर दिया है। 100 में से कुछ नंबर कम आते तो लगता कि उत्तर पुस्तिकां जांचने वाले शिक्षक ने अपने अंदर छिपे गुरु को अभी कोमा में नहीं भेजा है। सांसें चल रही है वह जिंदा है। 100 में से 100 नंबर लेने वाले विद्यार्थी को शिक्षा का ब्रांड बनाकर उसे अपने हिसाब से बेचने वाले शिक्षण संस्थानों के संचालकों एवं मुखियाओं को समझना होगा वह यह खेल खेलना बंद करें। बच्चों को काबिल बनाए कामयाबी खुद चलकर उनके पास आ जाएगी। अगर ऐसा नहीं करते हैं तो अभिभावक अलर्ट हो जाए वे अपने बच्चों की मानसिक और शारीरिक हत्या कर रहे हैं। उन्हें वहीं बनाए जो वे बनना चाहते हैं। कम ज्यादा नंबरों की दुनिया से जितना जल्दी हो सके अपने बच्चों को बाहर निकालिए नहीं तो वे आपकी हद से बाहर हो जाएंगे। शिक्षकों एवं स्कूल संचालकों से विनती है कि वे मौजूदा हालात से सबक लेते हुए शिक्षा की गरिमा को तार तार होने से बचा ले।