राजनीति का मिजाज समझने के लिए इस लेख को जरूर पढ़े…दक्षिण हरियाणा में भाजपा के दो चेहरे, कौनसा सही यह दिल्ली तय करेगी

बाहरी तौर पर देखा जाए तो हरियाणा भाजपा में सबकुछ सामान्य चल रहा है। हकीकत से पर्दा हटाए तो पार्टी के अंदर दो चेहरे नजर आ रहे हैं। कौनसा सही है यह दिल्ली दरबार तय करेगा।  प्रदेश भाजपा के नए प्रभारी महाराष्ट्र के विनोद तावड़े एवं सह प्रभारी झारखंड की अन्न पूर्णा   इन दिनों संगठन मजबूत करने के लिए तुफानी दौरे पर है। दोनों प्रभारियों का जहां तक सवाल है। उन्हें हरियाणा की राजनीति का मिजाज जानने के लिए पार्टी की जड़ से अभी तक जुड़े कार्यकर्ताओं की बातों पर भरोसा करना पड़ेगा। यह भाजपा का काम करने का तौर तरीका भी रहा है। इसलिए संगठन को मजबूत करने के लिए वह जातिगत कार्ड को दूर रखती है। दोनों ही प्रभारी ऐसे हैं जिनका हरियाणा की राजनीति से कोई सीधा संबंध नहीं रहा और ना ही वे अपना प्रभाव रखते हैं। एक निर्धारित एजेंडे को लेकर वे खाका तैयार कर रहे हैं। दक्षिण हरियाणा में केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह एवं भिवानी- महेंद्रगढ़ लोकसभा सांसद धर्मबीर सिंह मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्‌टर के काम करने के तौर तरीकों से खुश नहीं है। इसलिए वे मौका लगते ही अपनी नाराजगी दिखाने में पीछे नहीं हटते। विनोद भावड़े के रिपोर्ट कार्ड में इन दोनों नेताओं का दर्द दर्ज हो चुका है। राव इंद्रजीत सिंह जातिगत समीकरण में महेंद्रगढ़, रेवाड़ी एवं गुरुग्राम अपना अच्छा खासा प्रभाव रखते हैं। इसी तरह चौधरी धर्मबीर सिंह जाट नेता के तौर पर भिवानी बैल्ट में अपनी मजबूत जमीन के साथ खड़े हैं। दोनों नेताओं की समानता यह है कि ये अपनी मिजाज की राजनीति करते हैं। इसलिए कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए थे कि उनकी बातों का वजन कम नहीं होगा लेकिन यहां भी उनके लिए कांग्रेस वाली स्थिति बनती जा रही है। इसलिए भ्रष्टाचार एवं अफसरशाही को लेकर उनका हमला उसी तरह रहा जिस तरह एक समय में कांग्रेस में रहकर किया था। जब हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा सीएम थे उस समय भी राव उनसे सीधे दो दो हाथ करते थे। 2019 के विधानसभा चुनाव में इसी अंदरूनी लड़ाई की कीमत भी भाजपा को चुकानी पड़ी। बेशक आज भाजपा ने जेजेपी से मिलकर सरकार बना रखी है लेकिन जोश और उत्साह पार्टी के भीतर की लड़ाई में डर के मारे छिपा हुआ है। खंड- जिला स्तर पर कार्यकर्ताओं की हालत यह है कि वे धड़ों में बंट चुके हैं। कहने को भाजपा ने जिला मुख्यालय पर आलीशान कारपोरेट पार्टी कार्यालय बना दिए हैं लेकिन वहां बैठकर सभी को साथ लेकर चलना किसी के लिए आसान नहीं है। लोकतांत्रिक प्रणाली में किसी पार्टी में ऐसा होना बड़ी बात नहीं है। सभी में अपने-अपने मिजाज को लेकर धड़े बने हुए हैं जिसकी कीमत भी किसी ना किसी को चुकानी पड़ती है। आने वाले दिनों मे हरियाणा में नगर निकाय एवं पंचायत के चुनाव सिर पर है। संगठन और पार्टी को जमीनी तौर पर मजबूत और कमजोर करने में ये चुनाव विधानसभा एवं लोकसभा से सभी ज्यादा मायने रखते हैं। इसकी वजह इसमें वोटर सीधे तौर पर उम्मीदवार से जुड़ा है। यहां मोदी या पार्टी की विचारधारा का असर कम रहता है। सरकार की सहयोगी बनकर जेजेपी ने एक साल में जबरदस्त ढंग से अपना प्लेटफार्म तैयार कर लिया है। देश की राजनीति में ऐसा बहुत कम देखने का मिलता है जब दो साल पुरानी 10 विधायकों वाली कोई पार्टी अपनी शानदार मैनेजमेंट से गांव की चौपाल से लेकर शहर के वार्ड में अपना आधार बना ले। बरौदा से मिली हार के बाद भाजपा के लिए आने वाला समय चुनौतीपूर्ण है। वह अंदर और बाहर से बराबर संघर्ष करती नजर आएगी। पार्टी के लिए इतना बेहतर समय भी नहीं है कि वह अपने दम पर राजस्थान की तरह  पार्टी सिंबल से चुनाव लड़ने के लिए पूरी तरह तैयार रहे। कुल मिलाकर विशेष तौर से दक्षिण हरियाणा में भाजपा अपनों के बीच हिचकोले खाने लगी है। यह वो बैल्ट है जिसके बूते पर सरकार बनने में भाजपा को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी। अब देखना यह है कि इसका कितना असर छोटे और बड़े असर डालने वाले पंचायत- नगर निकाय चुनाव पर पड़ेगा।

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