न्यूट्रिनों की वजह से कैसे विस्फोट करते हैं तारे

वैज्ञानिक जल्द ही इस बात का खुलासा करने की दहलीज पर पहुंच गए हैं कि कैसे तारों के विस्फोट में न्यूट्रिनों अहम भूमिका निभाते हैं जो कि ब्रह्माण्ड में सबसे प्रचुर मात्र में पाए जाने वाले कण हैं। इन छोटे परमाणु कणों की पहचान करना काफी मुश्किल होता है। ऐसा इसलिए है कि ये कण पदार्थों के साथ बेहद सीमित मात्रा में सक्रिय होते हैं। हालांकि सुपरनोवा या तारामण्डल में होने वाले विस्फोट को समझने में इन कणों की अहम भूमिका है। इसकी वजह यह है कि यह छोटे कण विस्फोट में शक्तिशाली कारक बनाते हैं। साथ ही यह तारों में होने वाले विस्फोट के पहले संकेत भी देते हैं। इस वजह से तारामण्डल में होने वाले विस्फोटों को समझने में यह वैज्ञानिकों की बड़ी मदद करते हैं।
मुंबई स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के डिपार्टमेंट ऑफ थियोरॉटिकल फिजिक्स के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. बासुदेब दासगुप्ता, उन 21 वैज्ञानिकों में से एक हैं, जिन्हें वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत स्वर्ण जयंती फेलोशिप मिली है। दासगुप्ता का अध्ययन प्रमुख रूप से मूल भौतिक विज्ञान को समझने में न्यूट्रिनो की भूमिका पर है। तारों के विस्फोट में न्यूट्रिनो के प्रभाव को समझने में एस्ट्रोफिजिक्स अहम कड़ी है। डॉ. दासगुप्ता यह पता लगा रहे हैं, कैसे प्रयोग के जरिए न्यूट्रिनो की पहचान की जा सकती है और उसकी सूचना का विश्लेषण किया जा सकता है। उनके अध्ययन को प्रमुख जर्नल “फिजिकल रिव्यू डी” में प्रकाशित किया गया है। जिसमें प्रमुख रूप से फास्ट फ्लेवर कन्वर्जन को खास तौर से जगह दी गई है जो कि किसी तारे में स्थित न्यूट्रिनो द्रव्यमान की उपस्थिति, मात्रा और उसके प्रभाव सहित तीनों मुद्दों को बताता है। डॉ. दासगुप्ता ने अपने अध्ययन से यह समझाया है कि कैसे कई सारे न्यूट्रिनो मिलकर, घने वातावण में कंपन के कारक बनते हैं। वह और उनके छात्रों ने एक साधारण मॉडल के जरिए समझाया है। उनके मॉडल के अनुसार जिस तरह पहाड़ी पर ऊंचाई से एक बाल तेजी से गिरती है और वह क्षैतिज रुप से दूरी तय करती है, उसी तरह तारों में तेज कंपन के बाद स्थिति उत्पन्न होती है। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे कंपन की वजह से कई सारे न्यूट्रिनो मिश्रित हो जाते हैं। इसकी वजह से सुपरनोवा में बड़ी मात्रा में ऊर्जा पैदा होती है। दासगुप्ता के आगामी प्रयोगों से तारों के विस्फोट के सिद्धांत को साबित करने में मदद मिलेगी, जो कि करीब 100 साल से रहस्य बना हुआ है।
दासगुप्ता ने इसके अलावा डार्क मैटर के कण वाली प्रकृति को पहचान करने में अहम भूमिका निभाई है। जिसमें सैद्धांतिक और प्रयोगात्मक तरीके शामिल है। जिससे कि इस सिद्धांत का परीक्षण किया जा सकता है। उनके हाल के कार्यों से न्यूट्रिनो, पॉजिट्रॉन के अध्ययन से ब्लैकहोल से लेकर बिगबैंग सिद्धांत के तहत अभी भी अनसुलझे डार्क मैटर को समझने में भी मदद मिली है। उनके महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए पिछले साल डॉ. दासगुप्ता को प्रतिष्ठित इंटरनेशनल सेंटर फॉर थियोरिटिकल फिजिक्स पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। यह पुरस्कार सुब्रमण्यम चंद्रशेखऱ के सम्मान में दिया जाता है जो कि ट्राइस्टी स्थित अबदुस सलाम इंटरनेशनल सेंटर फॉर थियोरिटिकल फिजिक्स द्वारा दिया जाता है।

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