रणघोष की सीधी सपाट बात : रेवाड़ी शहर के 6 किमी दायरे में 100 से ज्यादा अस्पताल, 90 फीसदी किराए पर, हर माह लाखों का खर्चा, शिकार की तरह देखा जा रहा मरीजों को

रणघोष खास. सुभाष चौधरी

रेवाड़ी शहर का 6 किमी का दायरा स्वास्थ्य के क्षेत्र में हरियाणा स्तर पर एक अनूठा रिकार्ड बनाने जा रहा है। इस परिधि में अस्पतालों की संख्या 100 से ज्यादा पार कर गई है। अकेले सरकुलर रोड पर 80 से ज्यादा छोटे- अस्पताल है। इससे डबल संख्या में मेडिकल स्टोर है। 90 प्रतिशत से ज्यादा किराए पर हैं जिनका हर महीने का किराया लाखों में हैं। इन अस्पतालों में मरीजों को अपने यहां भर्ती कराने के नाम पर इतना जबरदस्त कांपटीशन है कि आधे से ज्यादा डॉक्टर्स को मरीज एक शिकार की तरह नजर आता है। हर रेाज ऐसे केस सामने आ रहे हैं जहां सामान्य सी बीमारी होने पर भी उसे सीरियस दिखाकर लाखों रुपए वसूल किए जा रहे हैं।  कमाल की बात यह है कि एक डॉक्टर की रिपोर्ट को  दूसरा डॉक्टर सही नहीं मानता लेकिन न्याय के लिए वह आगे नहीं आता। ज्यादा नहीं जाकर पिछले दो माह में 20 से ज्यादा ऐसे केस ऐसे भी आए जब मरीज को कोरोना, डेंगू समेत डराने वाली बीमारी का डर दिखाकर अच्छा खासा लूटा गया। परिजनों ने शोर भी मचाया लेकिन कुछ नहीं हुआ।

सेक्टर तीन निवासी एक व्यवसायी की 62 साल  की पत्नी को दीवाली के बाद सांस लेने में दिक्कत आ रही थी। रूटीन चैकअप के नाम पर उसे सरकुलर रोड स्थित कुछ माह पहले खुले एक नए अस्पताल में भर्ती कराया गया। डॉक्टर्स ने सीरियस बताकर भर्ती कर लिया। कोरोना का मनोवैज्ञानिक डर अपना काम कर ही रहा था। कुछ दिन इलाज के बाद मरीज की हालात बिगड़ती चली गईं। उसे शहर के एक अन्य अस्पताल में भी  भर्ती कराया। वहां से भी बिल के अलावा मरीज में कोई सुधार नहीं हुआ। थक हारकर रोहतक पीजीआई भर्ती कराया जहां दो दिन इलाज के बाद हार्ट अटैक से उसकी मौत हो गईं। जिस भी डॉक्टर ने चैकअप किया वहीं सवाल किया पहले एडमिट क्यों नहीं कराया। पहले वाले डॉक्टर ने सही इलाज नहीं किया। हम क्या करें। मरीज के परिजन क्या जवाब देते। वह किसे सही और गलत बताए। इसी तरह सेक्टर चार निवासी एडवोकेट विकास शर्मा की 6 साल बेटी को हलके बुखार की शिकायत थी। उसने भी सामान्य अस्पताल के पास एक निजी अस्पताल में दिखाया तो चैकअप कराया गया। रिपोर्ट के हवाले से डॉक्टर्स ने बताया कि उसे डेंगू हैं। भर्ती करना पड़ेगा। चल रहे इलाज से परिजन संतुष्ट नहीं थे। बनाए गए अच्छे खासे बिल में कुछ ऐसे टेस्ट के रेट भी जोड़ दिए जो लिए नहीं गए।  बाद में शोर मचाने पर उसे कम किया गया। शाम को परिजनों ने  किसी तरह बच्ची को डिस्चार्ज कर रेलवे रोड स्थित एक निजी अस्पताल में भर्ती करा दिया। वहां पता चला कि बच्ची को डेंगू ही नहीं था। डॉक्टर ने दो दिन की दवा देकर उन्हें घर भेज दिया। उसके बाद वह बच्ची स्वस्थ्य भी हो गईं। एडवोकेट विकास शर्मा अब इस अस्पताल के खिलाफ कानूनी कार्रवाई में जुट गए हैं।

 इसलिए नहीं होती कार्रवाई

शहर में अधिकांश अस्पताल की मैनेमेंट एक तरह से मरीजों को क्लाइंट के तोर पर देखती हैं। उनके अस्पताल में मरीज कैसे भर्ती हो इसके लिए एक कमीशन की चेन बनी हुई है। जिसमें गांव- कस्बों में खुले छोटे अस्पताल से लेकर, एंबुलेंस एवं सरकारी पीएचसी- सीएचसी और नागरिक अस्पताल में कार्यरत कुछ कर्मचारी अपनी भूमिका निभाते हैं। इन्हें मरीज भेजने के नाम पर कमीशन मिलता है। ऐसे में जाहिर है कि मरीज को भर्ती करने से पहले ही कमीशन के नाम पर उसकी बीमारी का टेंडर हो चुका होता है। इसलिए चालाकी से तरह तरह के टेस्ट या बीमारी का डर दिखाकर भारी भरकम बिल बना दिया जाता है। पीड़ित और बेबस मरीज के परिजन उनके सामने गिड़गिड़ाने के अलावा कुछ नहीं कर सकते।

 खुलासा होते ही उसके नाम पर भी हो जाती है सौदेबाजी

 इलाज के नाम पर हो रही लूट का जब पर्दाफाश किया जाता है तो उस पर भी आगे चलकर कार्रवाई के नाम पर सौदेबाजी हो जाती है। इसलिए किसी भी साल का रिकार्ड उठा लिजिए। मजाल इतना सबकुछ होने के बाद भी बड़ा एक्शन हुआ हो। अगर कोई अधिकारी ऐसा करता है तो प्रभावशाली नेताओं का दबाव उन्हें ऐसा करने से रोक देता है। ऐसा करने वाले भूल जाते हैं कि अगर यही उनके परिवारिक सदस्यों के साथ हुआ होता तो क्या वे बर्दास्त करते। इसलिए अधिकांश केस आगे चलकर माफी नामें एवं समझौते में तब्दील हो जाते हैं।

डर है कि कहीं  कोरोना का बाजार खड़ा ना हो जाए

 इन दिनों अस्पताल में भर्ती हो रहे मरीजों के दिलो दिमाग में कोरोना का जरूरत से ज्यादा डर कायम किया जा रहा है। चैकअप के नाम पर अनाप शनाप वसूली हो रही है। परिजन  मरीज की जान बचाने के लिए सबकुछ बर्दास्त करते हें। ऐसे में डर है कि आने वाले कुछ दिनों में कोरोना बेशक कंट्रोल में आ जाए लेकिन डॉक्टर्स उसका अच्छा खासा बाजार खड़ा ना कर दें। जैसा आमतौर पर डेंगू जैसी बीमारी में होता रहा है।

बेहतर डॉक्टर्स बिना शोर के दे रहे अपनी सेवाएं

 ऐसा भी नहीं है कि सभी डॉक्टर्स ऐसा कर रहे हैं। अभी भी कुछ डॉक्टर्स इस पेशे की गरिमा को बचाए हुए हैं। उनकी संख्या बहुत कम हो रही हैं। इसमें अधिकांश पुराने हैं। ऐसे डॉक्टर्स बिना शोर मचाए, अस्पताल को ब्यूटी पार्लर की तरह दिखाने की बजाय मरीज की बीमारी पर ज्यादा ध्यान देते हैं। ऐसे डॉक्टरों की तरफ से लिखी गई दवाइयां किसी भी मेडिकल स्टोर पर मिल जाती है। इसलिए अच्छे डॉक्टर का सबसे बड़ा प्रमाण उनकी लिखी दवाइयों का किसी भी स्टोर पर मिलने से मिल जाता है।

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