रणघोष की सीधी सपाट : अधिकारी गैर जिम्मेदार है यह सच है, हम कितने जिम्मेदार, इस सवाल का जवाब कौन देगा

अधिकारी- कर्मचारियों  के लिए ये समस्याएं कमाई का जरिया बनती है। इसमें कोई शक नहीं है। लेकिन अपने घरों के आगे लेवल ऊंचा करना, अवैध कब्जे कर निकासी रोकने की प्रमुख वजह के लिए भी हम अपनी जिम्मेदारी से कब तक भागेंगे। समस्याएं समाज के संपूर्ण सहयोग से खत्म होती है। 


रणघोष खास. सुभाष चौधरी

 इन दिनों सोशल मीडिया पर एक गजब का ट्रेंड चल पड़ा है। जब कोई समस्या या चुनौतियां आती हैं समाज का एक तबका तुरंत सक्रिय होकर प्रशासन, सरकार, नेता एवं मीडिया पर धड़ाधड़ हमला करना शुरू कर देता है। कई बार लगता है कि इंसान अपनी कुंठा निकालने के लिए भी मौके की तलाश में रहता है। दो दिन पहले तक बारिश के लिए हवन यज्ञ हो रहा था। जैसे ही बारिश ने सावन का अहसास कराना शुरू किया यह समस्या नजर आने लगी। वजह शहर हो या गांव पानी की सही निकासी नहीं होने की वजह से जगह जगह जलभराव की स्थिति बन जाती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि सावन आने से पहले तैयारियों के नाम पर महज कागजी दावें ज्यादा किए जाते हैं। प्रशासनिक स्तर के बड़े अधिकारियों को जिले व शहर की पूरी जानकारी नहीं होती वजह एक- दो साल में उनका तबादला होता रहता है। जिन कर्मचारियों एवं मंझले अधिकारियों पर व्यवस्था संभालने का जिम्मा होता है। वे कई सालों तक एक ही जगह जमें रहते हैं।  वे स्थिति बेकाबू होने पर चुप्पी साध जाते हैं। बड़ी चालाकी से अधिकारियों को गुमराह करते हैं। अगर ऐसा नहीं है तो पानी निकासी के लिए जब करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे थे उस समय यहीं अधिकारी जिम्मेदारी संभाल रहे थे। उसके बाद ऐसा क्यों हो जाता है कि सड़कों की मरम्मत व पानी निकासी के नाम पर खर्च करोड़ों का बजट पानी में बहता हुआ नजर जाता है। घरों में घुसता पानी, टूटी सड़कों से होते हादसे आमजन की जिंदगी से खिलवाड़ है। इसका दूसरा सच यह भी है कि यहीं समस्याएं अधिकारियों एवं ठेकेदारों के लिए बारिश का पानी नहीं अच्छा खासा कमाई का जरिया होती है। आनन फानन में बजट बनता है, तुरंत पास होता है। फटाफट निर्माण सामग्री लगती है। सबकुछ इतनी तेजी से होता है कि बाद में ऑडिट टीम भी चाहकर इस पानी के नाम पर किए गए खेल में कुछ नहीं कर पाती। हालांकि ऑडिट टीम हो या किसी तरह की जांच उस पर भी भरोसा लगभग खत्म हो चुका है। इसलिए हर सावन में यह हालत रूटीन की तरह नजर आते हैं।

खुद के घर के आगे लेवल ऊंचा करके क्या साबित करना चाहते हैं

 शहर हो गांव की गलियां, जहां जल भराव ज्यादा है उसकी प्रमुख वजह लेवल का एक समान नहीं होना। लोगों ने देखा देख अपने घरों के आगे का लेवल इसलिए ऊंचा कर लिया ताकि बरसात का पानी उसके घर के आगे ठहरे नहीं। यह कहां भी जाकर ठहरे उसे इससे मतलब नहीं। नतीजा जगह जगह गली मोहल्लों की सड़कों का लेवल ऊंचा नीचा होता चला जाता है। समझाने पर झगड़े की स्थिति बन जाती है। ऐसे में सवाल उठता है कि इसके लिए हम प्रशासन को जिम्मेदार किस आधार पर माने। कार्रवाई की जाती है तो विवाद की स्थिति बन जाती है। पूरे शहर का कोई ऐसा मोहल्ला या कोई गांव ऐसा नहीं है जहां अवैध कब्जे या लेवल को अपने हिसाब से ऊंचा नहीं किया हुआ  हो। अगर प्रशासन निष्पक्षता से कार्रवाई करे तो उसे लेवल समतल करने एवं अवैध कब्जा हटाने में कई साल लग जाएंगे। इसलिए सोशल मीडिया पर प्रशासन, मीडिया पर उंगल उठाने वाले महानुभावाअें को चाहिए कि वे ज्यादा नहीं थोड़ा थोड़ा अपने गिरेबां भी झांके ताकि सभी की एक दूसरे के प्रति जवाबदेही या जिम्मेदारी बन जाए। वाटसअप या सोशल मीडिया पर मन में जो आया वहीं लिखने से जिम्मेदारी पूरी नहीं होती। समस्याएं समाज के संपूर्ण सहयोग से खत्म होती है।  

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