रणघोष की सीधी सपाट बात

सिस्टम- नौकरशाही- राजनीति- समाज अशोक कुमार गर्ग को डीसी मानता है,


….. यह शख्स खुद में  बेहतर इंसान तलाश रहा है


रणघोष खास. प्रदीप नारायण


किसी भी मंच पर विशेषतौर से मीडिया में सार्वजनिक तोर पर किसी शख्स की तारीफ करना पत्रकार के लिए अपने अनुभव- दृष्टिकोण से निकले भावों को जोखिम में डालना है। वजह इंसान की प्रवृति और मानसिकता हर पल मौजूदा माहौल के हिसाब से बदलती रहती है। चार दिन पहले रेवाड़ी उपायुक्त की जिम्मेदारी संभालने वाले अशोक कुमार गर्ग ने ऐसा विशेष कुछ नहीं किया। फिर भी हर किसी की जुबां पर उनकी चर्चा शोर मचा रही है। उपायुक्त ने सिर्फ इतना किया कि अधिकारियों के कार्यालय में बने निजी टॉयलेट को बंद कर उसे सार्वजनिक स्थानों पर बने कॉमल टायलेट से जोड़ दिया। यानि अधिकारी आमजन की तरह इन शौचालयों का प्रयोग करेंगे। नतीजा साहब को देखकर सलामी मारने वाले को यह अहसास हो जाएगा कि यह अधिकारी भी हमारी तरह इंसान ही है। ऐसे स्थानों पर हमारे साथ नजर आने पर उन्हें भी अव्यवस्थाओं के बीच वहीं तकलीफ व परेशानी होगी जिसका वे हर समय सामना करते हैं। ऐसा हो जाने से इंसान की इंसान के प्रति अहमियत और इज्जत फिर अपनी जगह लौट आएगी। पत्रकारों से बातचीत में अशोक कुमार गर्ग की जुबान से निकल रहे शब्द बार बार यही समझा रहे थे कि वे डीसी बाद में है पहले इंसान है। बेशक उनके शरीर पर अधिकारी के लिबास ने कब्जा कर रखा है लेकिन जब वे खुद से रूबरू होते हैं तो उन्हे खुद के अलावा शरीर पर कुछ नजर नहीं आता। हिसार से जब डीसी अशोक कुमार गर्ग तबादला होकर रेवाड़ी के लिए चले तो उनकी विदाई में वे लोग उनसे गले मिलते रोते नजर आए जिन्हें हम गंदगी- कचरा उठाते, सीवरेज के मेनहॉल में गंदगी साफ करते हुए देखते हैं। इसलिए रेवाड़ी में कदम रखते हुए इस शख्स ने सबसे पहले वहीं किया जो इंसान को इंसान होने का अहसास करा दे। उनकी असली लड़ाई सिस्टम में पारदर्शिता, भ्रष्ट्राचार से नहीं उस मानसिकता से है जो किसी ना किसी चेहरे में आकर उन्हें जिले का सबसे ताकतवर, प्रभावशाली और आम इंसान से बड़ा होने का अहसास कराकर चली जाती है। इसलिए अलग अलग समाज के लोग, नेता, नौकरशाह और सिस्टम उन्हें डीसी समझकर सम्मानित  करने के लिए आ रहा है और अशोक कुमार गर्ग खुद में एक बेहतर इंसान होने का संघर्ष करते नजर आ रहे हैं। इस मानसिकता की जंग में जीत डीसी की होगी या अशोक कुमार गर्ग के अंदर छिपे इंसान की। यह आने वाला समय बताएगा। इतना जरूर है कि डीसी, विधायक, सांसद, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति बनना फिर भी आसान है लेकिन एक बेहतर इंसान बनना उतना ही मुश्किल..।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *