दक्षिण हरियाणा में अभी से 2024 चुनाव को लेकर हलचल शुरू..

आरपीएस के सीईओ मनीष राव ने अटेली से शुरू की अपनी दावेदारी, होमवर्क शुरू


रणघोष खास. अटेली से


2019 विधानसभा चुनाव में दक्षिण हरियाणा की अटेली विधानसभा सीट से भाजपा की टिकट पर अपनी मजबूत दावेदारी पेश कर चुके आरपीएस शिक्षण संस्थान के सीईओ मनीष राव ने एक बार फिर अपना होमवर्क शुरू कर दिया है। 15 अगस्त को दैनिक भास्कर में प्रकाशित विज्ञापन से मनीष राव ने पूरा बायोडाटा मजबूत इरादे के साथ सामने रख दिया। इस प्रोफाइल को तैयार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गईं। सबसे पहले यह बताया गया कि यह सीट उनके पृतक गांव कनीना के दायरे में आती हैं। सबसे बड़ा कनीना कस्बा व उससे जुड़े आस पास के गांव इस सीट की दावेदारी में हार- जीत का गणित तैयार करते रहे हैं।  जब चुनाव होता है तो चौधर के नाम पर अटेली-कनीना में शीत युद्ध चलता है। दूसरा आरपीएस विशेष तौर से दक्षिण हरियाणा के चारों तरफ शिक्षा के क्षेत्र में मजबूत आधार स्थापित कर चुका है। जैसा की विज्ञापन में विभिन्न राज्यों से36 हजार विद्यार्थी व 6500 कर्मचारी की टीम होने की बात कही गई है। उस हिसाब से मनीष राव की दावेदारी यह बताने के लिए काफी है कि वे जमीनी तौर पर भी शिक्षा के माध्यम से ही अपनी अलग ही हैसियत बना चुके हैं। जाहिर है जब शिक्षा का इतना बड़ा एंपायर खड़ा कर लिया तो समाजसेवा के लिए भी कहने को बहुत कुछ रहेगा। आर्थिक मजबूती किसी भी राजनीति करने वाले नेता के बढ़ने की रफ्तार को अच्छी खासी गति दे देती है। मनीष राव का सबसे मजबूत सकारात्मक पक्ष यह है कि वे अपने पेशे में कामयाब शख्सियत के तौर पर स्थापित हो चुके हैं। जो शख्स हजारों की संख्या में बच्चों की पढ़ाई की जिम्मेदारी संभाल सकता है उस हिसाब से राजनीति के गुणा गणित को समझना मुश्किल नहीं है। हालांकि राजनीति और शिक्षा का स्वरूप एक दूसरे से एकदम अलग है लेकिन पब्लिक डीलिंग का तौर तरीका एक जैसा है। मनीष राव ने अपने बायोडाटा में जिस तरह सभी वर्ग को अपने विश्वास में लेने की जो बात कहीं है उसमें जमीनी तौर पर मजबूत करने के लिए उन्हें अच्छा खासा पसीना बहाना पड़ेगा। जिन मतदाताओं के बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं या नौकरी करते हैं वे वोट में तब्दील हो जाएंगे यह सोचना सीधे तौर पर अपने प्रोफेशन की इमेज को भी दांव पर लगाने जैसा रहेगा। यदुवंशी स्कूल ग्रुप के चेयरमैन बहादुर सिंह पिछले कई सालों से यह प्रयोग लगातार कर रहे हैं। कभी वे इनेलो के साथ नजर आए तो कभी कांग्रेस के साथ। राजनीति और शिक्षा को साथ- साथ लेकर चल रहे हें लेकिन आज भी अपने वजूद को मजबूत करने के लिए संघर्ष करते नजर आ रहे हैं हालांकि राजनीति में व्यक्तित्व बहुत कुछ मायने रखता है। मनीष राव का रिपोर्ट कार्ड इस मामले में काफी मजबूत है। उनका सबसे बड़ा चैलेंज भाजपा के अंदरखाने तैयार होने वाले गणित को समझना है। इस सीट से भाजपा की टिकट पर विधायक बन चुकी पूर्व डिप्टी स्पीकर संतोष यादव की पार्टी में मजबूत पैठ है और 2024 में उनकी दावेदारी को इधर उधर कर पाना भी आसान नहीं होगा। जहां तक विधायक सीताराम की बात है। उनके पास खोने को ज्यादा कुछ नहीं है। 2019 में टिकट देकर भाजपा हाईकमान उसे एक समर्पित कार्यकर्ता का ईनाम दे चुकी है। सबसे बड़ी चुनौती यूरो इंटरनेशनल शिक्षण संस्थान जिसका फैलाव भी चारों तरफ है की डायरेक्टर स्वाति यादव की सक्रियता पर निर्भर करता है। स्वाति यादव ने पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान जेजेपी छोड़कर भाजपा में मजबूत जगह बना ली थी। यहां स्वाति यादव का  प्रोफाइल भी शिक्षा के प्लेटफार्म पर मनीष राव से मिलता जुलता है। महिला सीट का हिसाब चला तो स्वाति मजबूत दावेदारी में पीछे नहीं रहेगी। इस शिक्षण संस्थान की शाखाएं भी इस क्षेत्र में खुली हुई है और शिक्षा के क्षेत्र में दोनों के बीच अच्छी खासी प्रतिस्पर्धा भी है। दोनों का कुशल प्रबंधन है इसलिए बहुत कम समय में इस व्यसाय में तेजी से आगे बढ़ चुके हैं। मनीष राव को यह भ्रम भी खत्म करना होगा की जनता उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण किरदार के तौर पर  राजनीति में भी आंख मूंद कर स्वीकार कर लेगी। यह सबसे बड़ी गलती होगी। देश की चुनाव की तस्वीर बदलने वाले मुख्य सूचना आयुक्त टीएन शेषण आज भी बेहतरीन मिशाल के तौर पर चर्चा में रहते हैं 1997 में केआर नारायणन के खिलाफ राष्ट्रपति चुनाव लड़ा जिसमें वे हार गए। 1999 का गांधी नगर लोकसभा चुनाव भी लड़ा जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसी तरह 2021 में  केरल की पलक्कड़ सीट से बीजेपी के ई. श्रीधरन को चुनावी हार का सामना करना पड़ा है। मेट्रो प्रोजेक्ट्स को गति देने के चलते मेट्रो मैन के तौर पर पहचान रखने वाले श्रीधरन के लिए राजनीतिक प्रयोग कामयाब नहीं रहा है। कुल मिलाकर 2024 की तैयारी के मद्देनजर मनीष राव ने सही समय पर  समय रहते अटेली सीट पर अपनी मन की बात जनता व पार्टी के सामने रखनी शुरू कर दी है। वे इसमें कितने सफल होते हैं यह उनकी मेहनत- रणनीति एवं कुशल प्रबंधन पर निर्भर रहेगा।

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