तबादला होकर आए शिक्षकों का स्वागत ऐसे हो रहा मानो बॉर्डर से जंग जीतकर आए हो

रणघोष खास. एक शिक्षक की कलम से


 एक सरकारी शिक्षक ने रणघोष को फोटो के साथ अपने अनुभव सांझा करते हुए सरकारी शिक्षकों की मानसिकता और तौर तरीकों पर अपनी पीड़ा जताईं। शिक्षक ने बताया कि पिछले दिनों ऑन लाइन तबादला नीति से हरियाणा के करीब 30 हजार शिक्षकों के तबादले हुए हैं। शिक्षकों का विदाई सम्मान तो समझ में आता है कि एक लंबे समय से विद्यार्थी एवं स्टाफ के बीच पारिवारिक संबंध हो जाने पर एक दूसरे के प्रति सम्मान की भावना व्यक्त करने के लिए सम्मान कार्यक्रम होता है। लेकिन शिक्षक तबादला होकर डयूटी ज्वाइन करें और उसका पूरे शान शौकत के साथ इस तरह स्वागत किया जाए मानो वह देश की सीमा पर जंग जीतकर आया हो।  कहीं ना कहीं गुरु का शिक्षा के प्रति गंभीरता कम दिखावा की मानसिकता ज्यादा नजर आती है। इस शिक्षक के मुताबिक  जिस तरह अखबारों में तबादला होकर आए शिक्षकों के स्वागत की खबरें छप रही है। उसे देखकर आप समझ ही गए होंगे कि हमारी शिक्षा व्यवस्था किस रास्ते जा रही है। आने वाले समय में इसका क्या हश्र होने जा रहा है। एक व्यक्ति को ज्वाइन कराने के लिए 20 स्कूलों से प्राध्यापक पढ़ाई छोड़ कर अन्य साथियों की पढ़ाई छुड़वा कर स्वागत करने के लिए पहुंचे हैं। यह खबर है हसला राज्य प्रधान सतपाल सिंह सिंघु की। शिक्षा विभाग के निर्धारित वेतनमान मापदंड की बात करें तो इन सभी शिक्षकों की औसत प्रति दिन की आय 4 हजार रुपए से कम या ज्यादा है। लगभग 30 के आस पास शिक्षक स्वागत में पहुंचे है। यही शिक्षक 31 अगस्त को इसी प्रकार से लगभग सभी शिक्षकों को उनके पुराने विद्यालयों से रिलीव करवाने पहुंचे थे। औसत रूप से एक शिक्षक के साथ 4 शिक्षक उसके पुराने विद्यालय से रिलीव करवाने के लिए अपने कर्तव्य से विमुख हुए। तथा अगले दिन 1 सितंबर को  नए विद्यालय में ज्वाइनिंग कराने के लिए भी लगभग 4 शिक्षक एक शिक्षक के साथ मौजूद थे। कल्पना कीजिए कि 30 हजार ट्रांसफर हुए हैं। इन शिक्षकों ने 2 दिन इसी तरह अपनी झूठी शान का  यह नजारा दिखाया है। इन 2 दिनों में राजकोषीय घाटे पर कितना बोझ आया है तथा विद्यार्थी इन 2 दिनो में इनकी मंदबुद्धिता का शिकार हुए हैं। उनके घाटे का तो आप आकलन ही नहीं कर सकते। 4 हजार प्रतिदिन वेतनमान के हिसाब से 30 हजार शिक्षकों के तबादले पर बनी इस तरह की स्थिति में 12 करोड़ का नकद नुकसान जरूर हुआ है। इसके अलावा जो वाहन राज्य की सड़कों पर  शिक्षकों के एक दूसरे के आयोजन में भाग लेने के लिए दौड़ते रहे हैं वह खर्च, माला, बुके एवं मिठाई व अन्य खानपाल अलग है। कोई इनसे पूछे तबादला होकर  ऐसा कौन सा तीर मार दिया जिसकी वजह से यह ड्रामा या दिखावा करना पड़ा। क्या पिछले विद्यालय में इनकी उपलब्धियां इतनी शानदार रही कि उसकी  खुशी में इस तरह के आयोजन हो रहे हैं। कुल मिलाकर तबादला होने पर स्वागत की इस तरह की नई संस्कृति से शिक्षा का स्तर कितना बेहतर होगा। यह कार्यक्रम करने वाले और उसका आनंद लेने वाले ही बता सकते हैं। इतना जरूर है कि ऐसा स्वागत आए दिन सीमा पर दुश्मनों से दो दो हाथ करने वाले किसी फौजी का घर पर छुटटी पर आने से नहीं होता जितना सरकारी स्कूलों के शिक्षकों ने महज तबादला होने पर ही कर दिखाया।

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