छात्रों को कॉलेज का भवन नहीं मिला, किसानों से जमीन ले ली, मुआवजा नहीं दिया, दोनों सड़कों पर सीएम साहब यह कैसा राज है..

 रणघोष खास. सुभाष चौधरी

साफ सुथरी बात है। मुख्यमंत्री मनोहरलाल की सरकार को स्पष्ट करना चाहिए। पहली 2015 में उनकी घोषणा पर रेवाड़ी शहर में सरकारी कॉलेज शुरू हुआ। शुरूआती चरण में बाल वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल के पांच कमरों में कक्षाएं लगनी शुरू हुईं। 400 से ज्यादा विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। कायदे से कॉलेज का अपना भवन बनकर तैयार हो जाना चाहिए था लेकिन उलटा जमीन नहीं मिलने की वजह बताकर उसे बंद करने की तैयारी चल रही है। ऐसे में विद्यार्थियों को सड़कों पर उतरना पड़ रहा है वो भी एबीवीपी के बैनर तले जिसे भाजपा सरकार की छात्र ईकाई कहा जाता है।  इन विद्यार्थियों का कहना है कि क्या सरकार की यह हालत हो चुकी है कि वह अपनी घोषणा से ही पीछे हट रही है। क्या इतना बजट भी नहीं है कि वह कॉलेज का भवन बना सके। ऐसे में विकास की अन्य घोषनाएं छलावा के अलावा कुछ नहीं है।  दूसरा 20 गांवों के वो किसान है जिसकी जमीन को पहले एमआरटीएस प्रोजेक्ट के तहत एचएसआईआईडीसी ने 2013-14 में सेक्शन 4 के तहत अधिग्रहित कर अपने कब्जे में ले लिया। चार साल बाद जमीन का अवार्ड कर आधे से ज्यादा किसानों को जमीन का मुआवजा देकर जमीन को रिकार्ड में अपने नाम करवा लिया। इसके बाद इन जमीनों पर बने स्ट्रक्चर का मुआवजा भी जल्द देने का भरोसा दिलाया। इसके लिए भी सितंबर 2020-21 को अवार्ड भी जारी कर दिया। इस भरोसे किसानों ने अपना व्यवसाय दूसरी जगह शुरू करने के लिए पूंजी लगा दी। अभी तक मुआवजा नहीं मिला है। 15 से ज्यादा बार जिला राजस्व विभाग मुआवजा को लेकर चंडीगढ़ पत्राचार कर चुका हैं। पिछले दो माह से किसान सड़कों पर करो या मरो की स्थिति में आंदोलन करने के लिए मजबूर है। इन किसानों का सिर्फ इतना कहना है कि उनका कसूर क्या है। बस सरकार यह बता दें। इतना बुरा तो भू माफिया नहीं करते जितना एचएसआईआईडीसी कर रही है। मुआवजा के नाम पर उन्हें भिखारी बना दिया गया है। मुआवजा नहीं मिलने पर वे कर्ज में डूबते जा रहे हैं। उन्हें नही पता था कि सरकार उनके साथ इतना बड़ा धोखा करेगी। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर सरकार चाहती क्या है। यहां के जनप्रतिनिधि  भी आखिर किस माटी के बने हैं कि सबसकुछ पता होते हुए भी वे जायज मांगों को पूरा करवाने में असफल रहे हैं।  यह किस तरह की विकास योजनाए हैं जिसकी वजह से विद्यार्थियों एवं किसानों पर अपने हक के लिए सड़कों पर उतरना पड़ रहा है। इस सवाल का ईमानदारी से जवाब देना चाहिए नहीं तो आमजन, किसान एवं विद्यार्थियों का सिस्टम के प्रति रहा सहा भरोसा भी खत्म हो जाएगा।

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