हम अपने बच्चों का नाम क्या सोचकर रखते हैं पढ़िए डंके की चोट पर

द्रोण, कर्ण- भीष्म गलत के साथ थे, उन पर गर्व, जिसकी वजह से पापी रावण मरा, उस विभीषण पर शर्म..    


रणघोष खास. प्रदीप नारायण


बात रामायण से करते हैं। मंथरा अपनी रानी कैकेयी से भरत को अयोध्या का राजा बनाने के लिए नहीं उकसाती तो क्या राम का वनवास होता। रावण अपने मद में चूर होकर  अपने भाई विभीषण को राज्य से नहीं निकालते तो क्या उसका वध होता। मंथरा- विभीषण ऐसे दो किरदार है जिसकी वजह से रामायण संपूर्ण होती है। कोई अपनी बेटी का नाम मंथरा नहीं रखता वजह उसने अपनी रानी को खुश करने के लिए मर्यादा का उल्ल्घंन किया। यहां हम क्यों भूल जाते हैं कि अगर मंथरा नहीं होती तो भगवान राम महज अयोध्या का राजा बनकर रह जाते ओर इतिहास कुछ ओर ही होता। मंथरा सब की नजरों में खलनायिका बनकर रामायण की रचयिता भी है। इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए।  अब सवाल यह उठता है कि कोई अपने बेटे का नाम विभीषण क्यों नहीं रखता जबकि वे अधर्मी अपने बड़े भाई रावण के खिलाफ लड़ रहे मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के साथ खड़े थे। यहां हम रावण के बेटे इंद्रजीत पर गर्व करते हैं जिसने श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण को मुर्छित कर दिया था। यहां अधर्म कहां चला जाता है जब हम अपने बच्चों का नाम इंद्रजीत रखते हैं। अब आइए महाभारत में। गुरु द्रोणाचार्य मरते दम तक कौरवो के साथ खड़े रहे जबकि भगवान श्रीकृष्ण पांडवो के सारथी बनकर धर्म- कर्म के युद्ध में नजर आए। द्रोणाचार्य ने सर्वेष्ठ धनुर्धर एकलव्य का अंगूठा इसलिए मांग लिया कहीं वह स्वयं ओर अर्जुन की प्रतिष्ठा को पीछे ना धकेल दे। इसके बावजूद हमारे देश में उन गुरुजनों को खेल के क्षेत्र में सबसे बड़े सम्मान गुरु द्रोणाचार्य अवार्ड से नवाजा जाता है जिसकी बदौलत बेहतरीन खिलाड़ियों का जन्म हुआ। द्रौपदी चीरहण के समय भीष्म पितामाह समेत अनेक ऐसी हस्तियां मौजूद थी जिसके किरदारों में मर्यादा- प्रतिष्ठा और अनुशासन समाया हुआ था। उस समय वे द्रौपदी के चीरहरण को नजरें झुकाए स्वीकार करते नजर आए। उन्होंने महाभारत में अधर्मी पांडवों का साथ दिया।  समाज के लोग अपने बच्चों का नाम भीष्म रखते हुए इतराते हैं। कौरवो की तरफ से धुरंधर कर्ण ने अपने परम मित्र दुर्योधन का मरते दम तक साथ दिया जबकि वे जानते थे कि उसने पांडवो के साथ घोर अन्याय किया है। आज बच्चों का नाम कर्ण रखते हुए गर्व महसूस करते हैं लेकिन जिसकी वजह से पापी रावण का अंत हुआ उसे लंका भेदी बताकर विभीषण के नाम पर शर्म आती है। ऐसे बहुत से किरदार हमारे महान ग्रंथों में नजर आएंगे जिसे वर्तमान समाज की मानसिकता के साथ  सत्यता की कसौटी पर उतारने का  समय आ चुका है। इस लेख का मकसद किसी किरदार को छोटा बड़ा, सही गलत बताना नहीं ईमानदारी से अहसास करना है। आइए मंथन करें।

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