यह घटनाक्रम बताता है कि कसाई की दुकान ओर अस्पताल के बीच सोच का फासला कम होता जा रहा है..

रेवाड़ी के दो अस्पतालों में जिंदगी से लड़ती दिल्ली में भर्ती हुई तो डॉक्टरों ने कहा देर कर दी..


-समझ में नहीं आ रहा आखिर देरी किसने की। क्या पहले वाले अस्पताल ने  या दूसरे वाले ने या फिर एंबुलेंस की रफ्तार ने। या फिर इलाज के समय स्टाफ एवं डॉक्टरों की संवेदहीन मानसिकता ने। अस्पताल में इलाज के दरम्यान उनके व्यवहार और तौर तरीकों एवं स्टाइल पर गौर करिएगा। ऐसा आभास होगा मानो मरीज का दर्द महज उनके लिए रूटीन की आवाज है। इस देरी  की वजह का इलाज करना बहुत जरूरी है नहीं तो सांत्वना देने के लिए आने वालों को हम चाची की मृत्यु उसकी बीमारी की कहानी बताकर देरी की असल वजह को दफन करते रहेंगे। चाची कभी लौटकर नहीं आएगी लेकिन देरी का जरूर पता करने की जिम्मेदारी देकर चली गईं।


रणघोष खास. एक पत्रकार की कलम से


कहने को अस्पताल किसी को नया जीवन देने का आधार होता है लेकिन इसकी बुनियाद ही खोखली हो जाए तो आधार का वजूद स्वत: खतम हो जाएगा। आमतौर पर अस्पतालों में भर्ती मरीज कई वजहों से दुनिया छोड़कर चले जाते हैं। हम इसे विधि का विधान, होनी बलवान जैसी परपंरागत सोच से उस पर पर्दा डालकर जीवन में आगे बढ़ जाते हैँ। यह सर्वाविदित है जो दुनिया में आया है उसे एक दिन जाना है। कब जाना है यह किसी को नहीं पता है  किस वजहों से चला गया उसे जानना जरूरी है। पिछले 24 घंटों में बीते एक घटनाक्रम से इसे समझने का प्रयास करते हैं। एक पत्रकार के तौर पर हमारा यह नैतिक धर्म बनता है कि हम अपनी आंखों के सामने हो रहे घटनाक्रम को बेहद जिम्मेदारी, ईमानदारी एवं जवाबदेही के साथ सामने  रखे ताकि सभी एक दूसरे से सबक लेते हुए खुद के प्रति ईमानदार होने के अहसास को जिंदा रख सके। जितना जरूरी इलाज के समय शरीर की किडनी, फेफडे ओर उसके महत्वपूर्ण अंगों को सुरक्षित करना होता है उतना ही जरूरी डयूटी करने वालों का मानसिक तौर पर मरीज के प्रति बेहद लगाव, समर्पण, अपनापन और बेहतर माहौल बनाना जरूरी होता है।

आमतौर पर अब शायद ही कोई अस्पताल में मिशाल के तौर पर सामने आता हो जहां मरीज व उसके परिजनों के प्रति मौजूद स्टाफ व डॉक्टर्स में आत्मियता नजर आती हो जबकि वे भूल जाते हैं उनकी आजीविका मरीज से मिलने वाली इलाज राशि से चलती है। मरीज- डॉक्टर्स एवं कर्मचारियों के बीच बढ़ते झगड़ों की वजह भी संवेदनहीन मानसिकता होती है। ऐसे बहुत कम उदाहरण सामने आते हैं जब स्टाफ की ईमानदार सोच एवं समर्पण भाव से मरीज को नई जिंदगी मिलती है और वह अस्पताल से छुटटी लेते समय सभी से ऐसे मिलता है जिस तरह बेटी शादी के समय विदा होती है। 24 घंटे पहले हमारी चाची की तबीयत बिगड़ी तो उसे आनन फानन में  रेवाड़ी शहर के सरकुलर रोड के एक अस्पताल में भर्ती करा दिया। करीब दो तीन घंटे भर्ती रहने के बाद बताया कि उसे अटैक पड़ा है शहर के फलां अस्पताल में ले जाओ। अच्छे खासे बिल का भुगतान कर बताए गए उसी अस्पताल में पहुंचे। यहां उन्हें भर्ती कर पूरी टीम इलाज में जुट गईं। दोपहर तक बताया कि हालत में सुधार है। आईसीयू में हैं। सबकुछ ठीक चल रहा था। अचानक रात 10-11 बजे स्टाफ व डॉक्टरों ने कहा स्थिति बिगड़ रही है दिल्ली- गुरुग्राम व जयपुर किसी अस्पताल में ले जाओ। रात एक बजे सभी कागजी कार्रवाई पूरी करते हुए तीन घंटे बाद दिल्ली पहुंचे वहां एक अस्पताल में भर्ती कराया जहां डॉक्टरों ने जवाब देते हुए कहा कि देरी कर दी..। बस इस देरी के शब्द ने झकझोर दिया। -समझ में नहीं आ रहा आखिर देरी किसने की। क्या पहले वाले अस्पताल ने  या दूसरे वाले ने या फिर एंबुलेंस की रफ्तार ने। या फिर इलाज के समय स्टाफ एवं डॉक्टरों की संवेदहीन मानसिकता ने। अस्पताल में इलाज के दरम्यान उनके व्यवहार और तौर तरीकों एवं स्टाइल पर गौर जरूर करिएगा। ऐसा आभास होगा मानो मरीज का दर्द महज इनके लिए रूटीन की आवाज है। दिल्ली वाले डॉक्टर का मरीज की मौत  का कारण देरी से आना है तो इस देरी की वजह का इलाज करना बहुत जरूरी है नहीं तो चाची की मृत्यु महज बीमारी की कहानी बनकर रह जाएगी। अस्पताल चलाने वालों से हाथ जोड़कर विनती है कि वे अस्पताल में मानवता एवं इंसानियत  को भी जिंदा रखे। यह घटनाक्रम बताता है कि कसाई की दुकान ओर अस्पताल के बीच सोच का फासला कम होता जा रहा है.।  रात को रेवाड़ी रेफर करते समय कुल 70 हजार के बिल में दो हजार कम होने पर अड़े रहना अस्पताल के  कसाईघर बनने का अहसास करा रहा था। यह तो संयोगवश अस्पताल में कार्यरत एक परिचित का नाम असर कर गया। इस घटना में चाची कभी लौटकर नहीं आएगी लेकिन देरी का जरूर पता करने की जिम्मेदारी देकर चली गईं।

One thought on “यह घटनाक्रम बताता है कि कसाई की दुकान ओर अस्पताल के बीच सोच का फासला कम होता जा रहा है..

  1. I don’t think the title of your article matches the content lol. Just kidding, mainly because I had some doubts after reading the article.

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