रणघोष की सीधी सपाट बात : मरीज़ के परिजन क्यों खो रहे आपा? इस सवाल पर शोर मचना चाहिए

रणघोष खास. सुभाष चौधरी


सवाल ख़ुद से पूछना चाहिए कि क्या हम हर हाल में हिंसा की संस्कृति के ख़िलाफ़ हैं. अगर हैं तो क्या सभी प्रकार की हिंसा के ख़िलाफ़ बोल रहे हैं. आख़िर क्यों है कि पुलिस और अदालत के रहते हुए कई संगठन गले में पट्टा डालकर खाने से लेकर पहनावे की तलाशी लेने लगते हैं. क्यों लोग इलाज में चूक होने पर सीधा डॉक्टरों को ही मारने लगते हैं. कानून अपने हाथ में लेने लगते हैं. क्या उन्हें पुलिस की जांच में भरोसा नहीं है. भीड़ बनाकर पुलिस पर दबाव डालने का विरोध और भीड़ बनकर अस्तपालों पर हमला करने का विरोध, दोनों होना चाहिए. वर्ना एक जगह डॉक्टर डरेंगे और दूसरी जगह लड़कियां. हालत ये है कि सड़क पर चलती कार में ख़रोंच आने पर चालक दूसरी कार के चालक को मार मार कर अधमरा कर देता है. ये गुस्सा कहां से आ रहा है. बता रहा है कि हम बीमार हैं. सामाजिक रूप से भी राजनीतिक रूप से भी. भीड़ की हिंसा को जब मान्यता देने लगते हैं तो अकेला आदमी भी खुद को भीड़ समझने लगता है. उन्हें पता है कि उनके पास भीड़ है. जो पार्टी के नाम पर, धर्म के नाम पर या संस्कृति के नाम पर जमा हो जाएगी और पुलिस वैसे ही देखते रहेगी जैसे वो देखते रहती है.क्या हम सामूहिक रूप से हिंसा और भीड़ की संस्कृति के ख़िलाफ हैं? क्या हम हिंसा से पहले कारण को समझने की प्रक्रिया में विश्वास रखते हैं? दरअसल किसी के पास इतना धीरज नहीं बचा है समझने सुनने का. बस मारो. मार कर गुस्सा निकालो. भारत के कई अस्पतालों में आए दिन ऐसी घटनाएं होती रहती हैं. इसलिए एम्स के डाक्टरों ने हेल्मेट पहनकर अपना विरोध जताया था। ऐसे में .डाक्टरों को हड़ताल या सामूहिक अवकाश पर नहीं जाना चाहिए. दूसरी तरफ इस बात को भी समझना होगा कि क्यों मरीज़ बेसब्र हो रहे हैं. क्या महंगे इलाज के कारण, क्या इलाज की तत्काल सुविधा नहीं होने के कारण. हम मरीज़ों की तरफ से यह सवाल क्यों नहीं पूछ रहे हैं.सरकार, अदालत और मरीज़ों के परिजनों की प्रतिक्रिया देखकर यही लगता है कि पब्लिक में डाक्टरों के प्रति किस प्रकार का विश्वास कायम है. इस बहस में यह सवाल भी ज़रूरी है कि कहीं मरीज़ और उसके परिजन महंगी इलाज और अस्पतालों में भीड़ के लिए डाक्टर को तो दोषी नहीं मान रहे हैं. क्यों डाक्टर अपनी एकता का प्रदर्शन सिर्फ सुरक्षा के सवाल को लेकर करते हैं. दूसरे सवालों को लेकर वे क्यों नहीं आगे आते हैं. क्या डाक्टर के विवेक पर होता है कि किस मरीज़ को सबसे पहले आपरेशन या आईसीयू की ज़रूरत है, इसके बाद भी आईसीयू खाली न हो तो उसे क्या करना चाहिए, क्या ये सब तय है, क्या अस्पताल जनता को यह बात बताता है. बहुत सी वजह  सूचनाओं की कमी से भी हो सकती है।

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